शादी के डेढ़ महीने बाद देशसेवा के लिए हुए न्यौछावर, 6 माह की बेटी लेने अाई अवॉर्ड

punjabkesari.in Monday, Feb 20, 2017 - 04:20 PM (IST)

अंबाला:पंजाब के पठानकोट में एयरबेस कैंप पर हुए आंतकी हमले में अंबाला के शहीद हुए गरुड़ कमांडो गुरसेवक सिंह को रविवार को मरणोपरांत विक्रम संवत-2073 एक्सिलेंस अवॉर्ड से नवाजा गया। शहीद गुरसेवक की पत्नी जसप्रीत कौर अपनी 6 माह की बेटी के साथ चंडीगढ़ के सेक्टर-23 में अायोजित कार्यकर्म में अवॉर्ड लेने पहुंची। इनके अलावा चार और लोगों को इस अवॉर्ड से नवाजा गया। अापको बता दें कि शादी के मात्र डेढ़ महीने बाद ही कमांडो गुरसेवक एयरबेस पर हुए अांतकी हमले में शहीद हो गए थे।

बात 2-3 जनवरी 2016 की रात की है, जब पठानकोट एयरबेस पर आतंकियों ने कब्जा कर लिया था। करीब 80 घंटे चले मुकाबले और सर्च ऑपरेशन में अंबाला के गुरसेवक सिंह समेत 7 जवान शहीद हो गए थे। उनसे डेढ़ माह पहले ही ब्याहकर आई जसप्रीत के हाथों की मेहंदी भी नहीं उतरी थी कि आतंकी हमले में कमांडो पति शहीद हो गया। शहीद गुरसेवक का पार्थिव शरीर एम.एच. से उनके उनके पैतृक गांव गरनाला लाया गया। गुरसेवक के पार्थिव शरीर को देखकर घर वालों का रो-रो कर बुरा हाल था तो वहीं उसकी नई-नवेली दुल्हन समझ ही नहीं पा रही थी कि उसके साथ आखिर हो क्या गया। वह बार-बार बेहोश हो रही थी। 

जब पत्नी जसप्रीत ने गुरसेवक के पार्थिव शरीर पर चूड़ा चढ़ाकर उसे अंतिम विदाई दी तो ये देख पूरे गांव का दिल बैठ गया। पठानकोट एयरबेस में हुए आतंकी हमले में पहली बार गरूड़ फोर्स का कोई कमांडो शहीद हुआ था। 5 गोलियां लगने के बावजूद गुरसेवक डटा रहा और करीब एक घंटे तक दुश्मनों से भिड़ता रहा। 1 जनवरी को अंबाला जिले के गरनाला गांव के रहने वाले गरुड़ कमांडो गुरसेवक सिंह को हरियाणा के आदमपुर से पठानकोट भेज दिया गया। रात में डेढ़ महीना पहले ब्याही पत्नी जसप्रीत कौर से बात कर रहे गुरसेवक सिंह ने यह कहकर फोन काट दिया, बाद में फोन करूंगा और अगर फोन नहीं आया तो सो जाना। इसके बाद फोन नहीं आया, क्योंकि उसी रात को ही गुरसेवक सिंह देशसेवा के लिए न्यौछावर हो चुके थे। पता भी तब चला जब जसप्रीत कौर ने अपना फेसबुक अकाउंट खोला और गुरसेवक के एक दोस्त की पोस्ट मिली। कमांडो गुरसेवक को शहीद हुए 1 साल से उपर हो गया है। रविवार को जब उनकी पत्नी चंडीगढ़ में अपनी 6 माह की बेटी के साथ अवॉर्ड लेने पहंची तो वे अपने अासुओं को रोक न पाई। गुरसेवक भले ही पंचतत्व में विलीन हो गया लेकिन उसकी शहादत देश कभी भूल नहीं पाएगी।


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