किसान का कमाल, एक ही जगह उगाए 4 किस्म के रंग-बिरंगे तरबूज

punjabkesari.in Tuesday, May 09, 2017 - 06:03 PM (IST)

भिवानी(अशोक भारद्वाज):अगर आप को शुद्ध आर्गेनिक खेती के तरबूज का स्वाद चखना है तो भिवानी का रूख कीजिए क्योकि वहां के किसान ने रंग बिरंगे तरबूज पैदा कर के एक मिसाल कायम की है। किसान रामेहर व उसका बेटा अरविन्द ने बिना किसी यूरिया और कीटनाशक दवाइयों के ये रंग बिरगे तरबूज उगाए है। जिसकी चर्चा दूर दूर तक हो रही है और तरबूजों को देखने के लिए खेत में अन्य किसान भी आ रहे है। भिवानी के गांव धनासरी जोकि राजस्थान सीमा से सटा हुआ है, वहां अगर पानी की बात करे तो यहां के किसानों को ज्यादातर बारिश पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जमीन का पानी भी इतना नीचे जा चुका है कि परंम्परागत खेती करना मुश्किल होती जा रहा है। इसलिए रामेहर ने ड्रिप सिस्टम लगाकर खेती करने का प्रयास किया है जो काफी कामयाब है।
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बिना यूरिया एंव कीटनाशक दवाइयों की खेती
गांव धनासरी के प्रगतिशील किसान अरविन्द व रामेहर सिंह का कहना है कि वह 2000 में भिवानी के कृषि विज्ञान केन्द्र से जुडें थे और सबसे पहले उन्होनें गोबर गैस प्लांट लगाया और उसके बाद कंपोसिट खाद(केचूआं खाद ) बनाने के लिए प्लांट लगाया। गत वर्ष भी उन्होंने तरबूज की खेती की थी लेकिन उतनी सफलता नहीं मिली लेकिन हिम्मत नहीं हारी और इस वर्ष भी उन्होंने तरबूज की खेती करने का निर्णय लिया। जिसमें उनका सहयोग डा.अत्तर सिंह ने किया। उन्होंने बताया कि तरबूज को बचाने के लिए खेत में मक्का की बिजाई भी की गई ताकि लू एवं तेज धूप से तरबूज को बचाया जा सके।
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चार किस्म के है तरबूज
रामेहर ने अपने खेत में तरबूज की चार किस्में उगाई हैं, जिसमें अनमोल, विशाल , सिमरन एंव नामधारी मुख्य किस्में है। अनमोल नाम के तरबूज का रंग बाहर से हरा होता है लेकिन अन्दर से लैमन रंग का होता है। इसी तरह विशाल नाम के तरबूज की किस्म में बाहर से पीला रंग होता है तो अन्दर से लाल सुर्ख और बिल्कुल मीठा जो खाने में अति स्वादिष्ट होता है। वहीं सिमरन किस्म में बेबी तरबूज होता है जो काफी अधिक मात्रा में बोया जाता है और चौथी किस्म होती है नामधारी जो की आम तौर पर बाजार में पाया जा सकता है। लेकिन अनमोल और विशाल की किस्म एक नई किस्म है।
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नहीं मिल रही मार्केट
लेकिन किसान को मलाल है कि जो तरबूज अनमोल व विशाल किस्म का है उसको बेचने में काफी दिक्कत है। वह मार्केट में नया है लेकिन यह दिल्ली की मार्केट में आसानी से बेचा जा सकता है क्योकि जो तरबूज रामेहर ने उगाए है उनको ज्यादातर बड़ी दुकानो व फाइव स्टार होटलों में देखा जा सकता है। उनका कहना है कि जो भी तरबूज व मक्का की खेती है वह यूरिया एंव कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग के बिना उगाई गई है। कीटनाशक के रूप में उन्होनें खेत में एक ऐसी मशीन लगाई है जिससे कीट खुद ब खुद उसकी ओर आकर्षित हो जाता है और उसमें कैद होकर रह जाता है, जिससे खेती कीटों के प्रकोप का शिकार नहीं हो पाती है। इसी तरह यूरिया की जगह वह कम्पोजिट खाद यानि केंचुआ खाद का प्रयोग करते है जो कि वह अपने खेत में ही तैयार करते है।
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क्या कहते है कृषि बैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक केन्द्र के डा.अत्तर सिंह का कहना है कि जिस तरह से रामेहर सिंह और उनके परिवार ने मेहनत की है उसकी मेहनत का फल उसे मिल रहा है और समय समय पर आकर कृषि वैज्ञानिक की टीम खेती का निरक्षण करती रहती है। उन्होंने बताया कि जो खेती किसान ने की है वह आसपास के क्षेत्र में मिसाल बन गई है और गत वर्ष राज्य सरकार की ओर से रामेहर को एक लाख रुपए की राशि प्रोत्साहन राशि दी गई थी। उनका कहना है कि यदि किसान परंपरागत खेती को छोड़ कर इस तरह की खेती करता है तो अच्छा मुनाफा कमा सकता है। वहीं रामेहर ने पानी की सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम अपनाया हुआ है जिसमें पानी की बचत होती है।


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