सीबीएसई टर्म-2 के मात्र 2 महीने शेष, स्कूलों में सिलेबस ख़त्म करने की रेस : डॉ. सितांशु सिंह

punjabkesari.in Tuesday, Dec 21, 2021 - 08:03 PM (IST)

गुड़गांव ब्यूरो: सीबीएसई ने वर्तमान शैक्षणिक सत्र से बोर्ड परीक्षा आयोजित करने के तरीके में बदलाव किया है। टर्म -1 बोर्ड परीक्षा नवंबर-दिसंबर में आधे पाठ्यक्रम के आधार पर आयोजित की गई थी। टर्म -2 मार्च में आयोजित किया जा सकता है और दोनों परीक्षाओं के अंकों का उपयोग अंतिम मार्कशीट को सारणीबद्ध करने के लिए किया जाएगा। चूँकि सीबीएसई टर्म -2 परीक्षा वार्षिक पाठ्यक्रम के सिलेबस का 50% हिस्सा कवर करता है और परीक्षा होने में मात्र 2 महीने का ही समय शेष बचा है , इसलिए स्कूलों में अब टर्म -2 परीक्षा के लिए कोर्स पूरा करने होड़ मची है।

कैर्रिएर काउंसलर और थिंकफिनिटी एजुकेशन के संस्थापक डॉ. सितांशु सिंह बताते हैं कि, "टर्म -2 पाठ्यक्रम के दूसरे आधे हिस्से को कवर करता है लेकिन  कई स्कूल सिलेबस ख़त्म करने में पिछड़ रहे हैं। एक सामान्य वर्ष में, दसवीं और बारहवीं कक्षा का पाठ्यक्रम  दिसंबर या अधिकतम जनवरी के मध्य तक पूरा हो जाता है। लेकिन इस साल, छात्र ऑफ़लाइन मोड में शामिल नहीं हुए, जिससे कक्षाओं के संचालन में बहुत समस्याएँ पैदा हुईं। ऑनलाइन कक्षाओं का वैसा प्रभाव नहीं है जैसा सबने सोंचा था।” साल 2020 से ऑनलाइन कक्षाएं चल रही हैं, इससे लोकमान्यता यह बनी कि, इतने लम्बे वक्त में शिक्षक और छात्र दोनों को इसकी आदत हो गई है। इस बात का कटाक्ष करते हुए सितांशु ने बताया की यह सोंच सच्चाई से बहुत दूर है। 

उन्होंने कहा कि, "अभ्यस्त होने का अर्थ है कि यह शिक्षण के रूप में स्वीकृत हो गया है। लेकिन यह प्रभावी शिक्षण से अलग है। मैं एक कैमरे के सामने खड़ा हो सकता हूं और और अपना पाठ्यक्रम भी समय से पहले पूरा कर सकता हूं। लेकिन एक ईमानदार शिक्षक जो यह सुनिश्चित करना चाहता है कि उसके सभी छात्र समझ सकें कि, आखिर क्या पढ़ाया जा रहा है, उसे अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। ऑनलाइन मोड में यह बहुत मुश्किल है।"  सीबीएसई स्कूलों के लिए एक और चिंता टर्म -1 और टर्म -2 बोर्ड परीक्षाओं के बीच सबसे बड़े अंतर को लेकर है। डॉ. सितांशु सिंह बताते हैं कि, “टर्म -1 एक एमसीक्यू प्रारूप परीक्षा थी, जबकि टर्म -2 पारंपरिक सब्जेक्टिव टाइप का प्रारूप होगा। छात्रों को अब लिखने की आदत नहीं है और यह उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी। दो से तीन घंटे बैठना और घड़ी के सामने सरपट लिखना अब  हालात में मुश्किल है। इसके साथ पाठ्यक्रम को स्वयं पूरा करने का प्रेशर,  इसलिए परीक्षा में छात्रों के शानदार प्रदर्शन की उम्मीद एक सुनहरा सपना ही हो सकता है। ”


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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