लिम्फोमा पीड़ित महिला की बचाई जान

punjabkesari.in Sunday, Sep 19, 2021 - 08:59 PM (IST)


गुडग़ांव, (संजय): फोर्टिस अस्पताल में लिम्फोमा पीड़ित 28 वर्षीय एक महिला की अत्याधुनिक इलाके के जरिए जान बचाई। 4 साल पहले लिम्फोमा बीमारी के लक्षण महसूस होने लगे थे। हालांकि महिला का पहले दूसरे अस्पताल में टीबी का इलाज किया जा रहा था। लेकिन जब उसे आराम नही मिला तो फोर्टिस में जांच के बाद लिम्फोमा पीड़ित बताया गया। जिसकी आधुनिक तरीके से किए गए इलाज के बाद बीमारी से मुक्ति मिली।
इस बारें में जानकारी देते हुए फोर्टिस अस्पताल के बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) व हिमैटोलॉजी के निदेशक डा.  राहुल भार्गव ने बताया महिला जब अस्पताल आई तो उसकी जांच की गई। जांच में टीबी के वजाय उसे लिम्फोमा पीड़ित पाया गया। जबकि इससे पूर्व दूसरे अस्पताल में उसका ऑटो इम्यून बीमारी (सारकॉइडोसिस) बताकर 6 महीने तक इलाज किया गया। वही महिला के परिजनों की मानें तो ढ़ाई साल तक महिला का गलत इलाज चला। अक्टूबर 2019 में जब वह डा. राहुल भार्गव से मिली तो उनके लक्षणों को सही पहचानकर लिम्फोमा की बीमारी का पता चला। डा. भार्गव ने बताया निकिता की तरह कई मरीज दूसरी बीमारियां समझकर गलत इलाज कराते रहते है। लेकिन फोर्टिस अस्पताल में आनेे के बाद महिला की जांच की गई। जिसमें उसे लिम्फोमा पीड़ित पाया गया। अप्रैल-2021 तक अस्पताल में उसका इलाज चला तकरीबन 5 महीने बाद उसे रोगमुक्त घोषित किया जा चुका है। अब वह पूरी तरह से सेहतमंद जीवन बिता रही है। 
क्या होता है लिम्फोमा
लिम्फोमा एक रक्त कैंसर है। जो सफेद रक्त कोशिकाओं में विकसित होता है। आमतौर पर इसे चिकित्सकीय भाषा में  लिम्फोसाइट्स कहते हैं। लिम्फोमा भी 2 तरह का होता है। जिसमें पहला (होजकिन्स) इसमें शरीर के ऊपरी भाग जैसे कि गर्दन, छाती व कांख में होता है। दूसरा (नॉन होजकिन्स) इसमें लिम्फ नोड शरीर के किसी भी हिस्से में विकसित हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर लिम्फोमा का समय पर पता चल जाए। तो दवाइयों, कीमोथेरेपी, रेडियेशन थेरेपी (स्टेम सेल) व बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) से सफलता पूर्वक इलाज किया जा सकता है। 
ये जांच होती है जरूरी
मरीज को इसमें सबसे पहले लिम्फनोड की बायोप्सी कराने की सलाह दी जाती है। होजकिन्स व नॉन होजकिन्स के बीच के अंतर और इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए स्पेशल टेस्ट की ज़रूरत होती है। इसे इम्यूनहिस्टेकेमिस्ट्री कहा जाता है। लिम्फनोड बायोप्सी कराना बहुत ज़रूरी है। ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके। कई बार लिम्फोमा को ट्यूबरकलोसिसस (टीबी) समझ लिया जाता है। 
वर्जन-
‘‘निकिता के इलाज में हमने बीएमटी के बाद दवाइयों व कीमोथेरेपी शामिल की। अब तो 5 महीने से ज़्यादा हो चुके हैं और वह न सिर्फ  कैंसर मुक्त है। बल्कि सामान्य जीवन बिता रही है। लिम्फोमा इलाज में बीमारी की जल्दी पहचान होना सबसे महत्वपूर्ण है।’’ डा. राहुल भार्गव, डायरेक्टर (बीएमटी) फोर्टिस अस्पताल 
 


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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