वायु प्रदूषण से कम नही है ध्वनि प्रदूषण

punjabkesari.in Wednesday, Mar 02, 2022 - 08:36 PM (IST)

गुडग़ांव, (संजय): कोरोना काल में धीरे धीरे पाबंदिया हटने के बाद फिर से दैनिक दिनचर्या बढ़ गई है। वाहनों के तेज हार्न, कल कारखानें की आवाजें, लाउड स्पीकर व मोबाइल की तिब्र ध्वानि से लोगों की सुनने की आदत कमजोर हो रही है। विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना काल में पाबंदियों में मिली छूट के बाद से ध्वनि प्रदूषण के मामलों में इजाफा हुआ। 60 डेसीबल की ध्वनि सामान्य होती है। जबकि 90 खतरनाक मानी जाती है जबकि 180 डेसीबल की ध्वनि बेहद खरतनाक करार दी गई है। 
विशेषज्ञों की मानें तो सुनने की कम क्षमता (हियरिंग लॉश) के बारें में 60 फीसदी लोगों को इसके मूल कारणों के बारें में पता नही है। यही वजह है कि दिनों दिन लोग जवानी में ही लोग बहरेपन के शिकार हो रहे है। उन्होने बताया आमतौर पर लोग आंख, कान व नाक पर ज्यादा ध्यान नही देते। जबकि शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा आंख, कान व नाक भी बेहद जरूरी अंग है। बताया गया है कि दिनों दिन आधुनिक होती जीवन शैली व अत्याधुनिक संसाधनों के प्रयोग से ध्वनि प्रदूषण के मामलों में इजाफा हो रहा है। 
मोबाइल बना रहा बहरा
चिकित्सकों की मानें तो लगातार 30 घंटे से अधिक मोबाइल का प्रयोग करने से युवाओं की श्रवण शक्ति (हियरिंग ) की समस्या पैदा हो रही है। लंबे समय तक इयरफोन लगाकर तिब्र ध्वनि में सुनना कानों को नुकसान पहुंचा रहा है। जबकि मोबाइल को बेहद करीब से देखने से आंखों पर इसका असर पड़ रहा है। इसके अलावा बेचैनी, घबराहट, अनिद्रा व ध्यान लगाने में दिक्कत देखी जा रही है। 
तिब्रता कितनी ठीक कितनी नही 
चिकित्सा परामर्श के मुताबिक 60 डेसीबल सामान्य, 90 खतरनाक, 180 डेसीबल घ्वनि बेहद खतरनाक होती है। जो आपके सुनने की क्षमता को हमेशा के लिए खो सकती है। इयरफोन के आदती लोगों में सबसे ज्यादा अनिद्रा व बेचैनी की शिकायतें देखी जा रही हैं। ईयरफोन से संगीत सुनने वालों के दिमाग में झनझनाहट जैसी प्रतिक्रियाएं मिली हैं। 
वर्जन-
‘‘ खराब होती जीवनशैली तिब्र ध्वनि, लाउडस्पीकर, मोबाइल का प्रयोग बढ़ा है। यही वजह है कि बुजूर्गो व युवाओं की तरह अब बच्चों में भी सुनने की क्षमता में कमी (हियरिंग लाश) देखा जा रहा है।’’ डा. रिता प्रकाश, ईएनटी हेड विवेकानंद अरोग्य केन्द्र
वर्जन-
‘‘नार्मल बातचीत करने के लिए 60 डेसीबल काफी है। जबकि कई बार 70 से 80 डेसीबल तक आवज कुछ लोग सुनते है। लेकिन इसकी तिब्रता जब 120 डेसीबल के उपर पहुंच जाए तो सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।’’ डा. अमिताभ मलिक, ईएनटी चीफ पारस अस्पताल
 


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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