''6 महीने वाली अनिवार्यता'' के बावजूद टाला जा सकता है बरोदा उपचुनाव, आयोग के पास है पूरी पावर

punjabkesari.in Tuesday, Jul 21, 2020 - 06:23 PM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी): सवा तीन माह पूर्व 12 अप्रैल 2020 को मौजूदा 14 वीं हरियाणा विधानसभा के सदस्य एवं सोनीपत जिले के बरोदा विधानसभा हलके से कांग्रेस पार्टी के विधायक श्री कृष्ण हुड्डा के निधन के बाद 90  सदस्यी हरियाणा विधानसभा की सदस्य संख्या एक घटकर 89 हो गई, वहीं कांग्रेसी विधायकों की संख्या 31 से घटकर 30 हो गई है। बीती 15 अप्रैल को हरियाणा विधानसभा सचिवालय ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिवंगत श्रीकृष्ण हुड्डा की बरोदा सीट को 12 अप्रैल से रिक्त घोषित कर दिया। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 150 के तहत राज्य विधानसभा में मौजूदा विधायक की मृत्यु, त्यागपत्र अथवा उनका निर्वाचन रद्द होने अथवा उसके अयोग्य घोषित होने के कारण आदि कारणों से रिक्त हुई सीट पर भारतीय चुनाव आयोग द्वारा उपचुनाव करवाया जाता है।

इसी संबंध में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट  हेमंत कुमार ने बताया कि धारा 151 ए के अनुसार ऐसा उपचुनाव करवाने की समय सीमा रिक्त घोषित की गई विधानसभा सीट के छ: माह के भीतर होती है, अगर रिक्त हुई विधानसभा सीट की शेष अवधि एक वर्ष से कम हो, तो उपचुनाव नहीं करवाया जाता है। इसके अतिरिक्त अगर कुछ विशेष परिस्थितियों (जैसे मौजूदा कोरोना-वायरस महामारी) में अगर  निर्धारित छ: माह की अवधि में  चुनाव करवाना संभव न हो तो चुनाव आयोग केंद्र सरकार के परामर्श से उपचुनाव को आगे भी टाल सकता है। 

हेमंत ने बताया कि उक्त धारा 151 ए को भारतीय संसद द्वारा वर्ष 1996 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में डाला गया था एवं यह 1 अगस्त 1996 से प्रभावी हुई। उन्होंने बताया कि इस धारा से पहले चुनाव आयोग को किसी संसदीय सीट एवं किसी विधानमंडल/विधानसभा की सीट के चुनाव को स्थगित करने की शक्ति का स्पष्ट उल्लेख तो उक्त कानून में नहीं था परन्तु अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग कर आयोग यह कर सकता है। ऐसा चुनाव आयोग मतदान से पहले और बाद में भी कर सकता है, जैसे हरियाणा में वर्ष 1990 में रोहतक जिले की महम विधानसभा सीट का उपचुनाव दो बार चुनाव आयोग द्वारा अलग अलग कारणों से रद्द किया गया था। 

हालांकि एक रोचक तथ्य के बारे में हेमंत ने बताया कि आज से करीब 30 वर्ष पूर्व 19 अप्रैल 1991 को चुनाव आयोग ने पंजाब विधानसभा के आम चुनावों की घोषणा कर दी, जिनके लिए मतदान 22 जून 1991 को मतदान करवाया जाना था। परन्तु दो दिन पूर्व 20 जून को प्रदेश में आतंकवाद के माहौल के कारण बिगड़ती कानून-व्यवस्था के दृष्टिगत आयोग ने मतदान को 25 सितम्बर 1991 के लिए स्थगित कर दिया। हालांकि इस संशोधित तिथि के कुछ दिनों पहले ही तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा संसद के दोनों सदनों से एक कानून- पंजाब में आम चुनावों को रद्द करने सम्बन्धी अधिनियम, 1991 पारित करवाकर प्रदेश के विधानसभा आम चुनावों के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी की गई नोटिफिकेशन्स को ही रद्द करवा दिया जिससे सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया रुक गई और अंतत: इसके अगले वर्ष फरवरी, 1992 में राज्य में विधानसभा आम चुनाव करवाए गए। 


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Shivam

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