कई मामलों में सुर्खियों में रहे, सियासी जमीन को उर्वरा बनाने में विज ने बहाया खूब पसीना

punjabkesari.in Monday, Nov 22, 2021 - 11:55 AM (IST)

अम्बाला : आधा दर्जन बार अम्बाला वनों से विधायक बने गृहमंत्री अनिल विज ने केवल अपने हलके अम्बाला सावनी ही नहीं बल्कि प्रदेश में भी अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने में जमकर मेहनत की। मौजूदा सरकार में यह मुख्यमंत्री के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय मंत्री हैं। उन्होंने एक दबंग मंत्री के आलावा एक आम आदमी मंत्री के तौर पर भी अपनी पहचान बनाई। उनके इस रुतबे से उनका सियासी दो बड़ा हो साथ- साथ पार्टी की साख भी बढ़ी है।

विज ने भारतीय जनता युवा मोर्चा से अपने सियासी सफर की शुरुआत को उन्हें पार्टी ने संगठन में जो जिम्मेदारी सौंपी उसे बखूबी निभाया। युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष होते हुए उन्होंने तत्कालीन सरकार के खिलाफ कई धरने-प्रदर्शन किए और पार्टी में एक दबंग युवा नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। इससे पहले कालेज जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में रहते हुए उन्होंने छात्रों के लिए लम्बीलड़ाई लड़ी। अम्बाला में सुषमा स्वराज व सूरजभान जैसे दिग्गज नेताओं को होते भाजपा में यहां किसी और नेता के आगे आगे निकलने उम्मीद नहीं की जा सकती थी।

भाजपा में उस समय विज का न तो कोई गॉड फादर था और न ही कोई अपना वजूद किसी को उम्मीद भी नहीं भी कि आगे जाकर वह सुषमा का विकल्प बनेंगे और सरकार के सबसे अहम महकमे गृह की जिम्मेदारी संभालेंगे। 1990 में अम्बाला छावनी की विधायक व हरियाणा में कैबिनेट मंत्री रहीं सुषमा स्वराज को राज्यसभा के जोखिम मोल लेने का रहा शौक लिए चुने जाने के बाद पार्टी में सवाल खड़ा हुआ कि इस सीट के उपचुनाव पर यहां से किस दमदार भाजपा नेता पर दांव खेला जाए।

हालांकि, उस समय यहां पार्टी में कई पुराने नेता मौजूद थे। जबकि विज गिनती दूसरी कतार के नेताओं में होती थी। पार्टी ने कांग्रेस के बृजआनंद जैसे बड़े कद के कांग्रेसी नेता के मुकाबले में विज को उतारकर एक जोखिम मोल लिया, लेकिन विज पार्टी के कसौटी पर खरे साबित हुए। इसके बाद उनकी जीत का सिलसिला जारी रहा। वह 1996, 2000, 2009, 2014 व 2019 यहां से विधायक बने।

संघर्ष के बलबूते पर बने आम आदमी के नेता
2014 में मंत्री बनने से पहले उन्होंने विपक्ष के विधायक को भूमिका भी बेहतर तरीके से निभाई। कहते हैं उस समय उनके पास एक पुरानी मारुति-800 कार होती थी, जिसमें वह हमेशा एक दरी रखा करते थे। जहां भी उन्हें अपने विधानसभा सीको साथ कोई ज्यादती होती नजर आती तो सड़क पर दरी कर धरने पर बैठ जाते थे। धीरे-धीरे उनकी छवि एक संघर्षशील नेता को बनने सगी जनता से उनके मुहाव का अंदाजा इस बात से जाता है कि भाजपा ने 2 बार उन्हें यहाँ से टिकट नहीं दिया। इसके बावजूद लोगों ने उन्हें निर्दलीय तौर पर विधायक बना दिया।

जोखिम मोल लेने का रहा शौक
2014 में पहली बार उन्हें स्वास्थ्य और खेल मंत्री बनाया गया। स्वास्थ्य और खेल विभाग में कई बड़े बदलाव किए, जिससे वह सुर्ख़ियों में आए। 2019 में जब प्रदेश दोबारा भाजपा की सरकार बनी तो पार्टी के सबसे सबसे वरिष्ठ विधायक होने के नाते उन्हें सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय गृह सहित अन्य कई विभागों का जिम्मा दिया गया। पुलिस विभाग को पटरी पर लाने के लिए उन्होंने कड़े कदम उठाए, जिसके चलते उन्हें गब्बर सिंह के नाम से भी पहचाना जाने लगा। कहते हैं कि विज को जोखिम मोल लेने का शौक है। स्वास्थ्य मंत्री होते हुए नवम्बर 2020 में उन्होंने आगे आकर प्रदेश में सबसे पहले कोरोना पैक्सीन की परीक्षण डोज लगवाई, जिसकी उन्हें बाद में बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। जो बात उन्हें सही नहीं लगी उसका उन्होंने खुलकर विरोध किया, चाहे और जो सही लगा उसके साथ ताकत से खड़े रहे। कुछ मामलों में तो अपने अड़ियल रवैये को लेकर यह सुर्ख़ियों में छाए रहे।



 


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Content Writer

Manisha rana

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