सरकार ने की है प्रोत्साहन राशि की घोषणा, बावजूद भी धान से तौबा नहीं कर रहे किसान

punjabkesari.in Saturday, May 22, 2021 - 10:38 PM (IST)

ऐलनाबाद (सुरेन्द्र सरदाना): चावल उत्पादन में अहम भूमिका निभाने वाले हरियाणा के अम्बाला, यमुनानगर, कैथल, करनाल व सिरसा जिला में मुख्य रूप से बासमती धान की खेती होती है। हरियाणा सरकार ने गिरते भूजल स्तर को ले कर प्रदेश के धान उत्पादक जिलों के अनेक खण्डों को चिह्नित कर डार्क जोन घोषित कर दिया है। कुछ विशेष क्षेत्र में धान की खेती पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है। सिरसा जिला का खंड ऐलनाबाद सरकार द्वारा कुछ वर्ष पहले ही यह डार्क जोन घोषित कर दिया गया था और किसानों को दी जाने वाली बिजली संबंधित सरकारी सुविधाओं पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।

गिरते भूजलस्तर को देखते हुए प्रदेश सरकार ने गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी घोषणा कर दी है कि जो किसान धान की खेती का परित्याग करेगा या फिर अपना खेत खाली रखेगा उस किसान को 7 हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि देगी, लेकिन क्षेत्र के किसान बासमती धान की 1401 किस्म की काश्त करने की तौबा कर नहीं कर रहे हैं। अधिकांश किसानों ने अपने खेतों में 1401 किस्म के धान की रोपाई के लिए नर्सरी भी तैयार करनी शुरू कर दी है।

इस प्रकार क्षेत्र के किसान सरकार के उस अलार्म की तरफ ध्यान नहीं कर रहे हैं, जिस में सरकार द्वारा पानी बचाने को लेकर जो भविष्य की चिंता की जा रही है। कोई दो राय नहीं की धान की पीबी-6 (1401 ) की किस्म लंबे समय में पकने वाली फसल है, जिसमें अधिक पानी की मात्रा खर्च होती है । किसानों को भविष्य के लिए पानी बचाने की परवाह नहीं बल्कि वर्तमान में अधिक आर्थिक लाभ को लेकर अधिक चिंता है। चूंकि बासमती की 1401 किस्म ही वह किस्म है जो कि एक बहुत बड़ा जुआ है। इस से या तो किसान आर्थिक रूप से टूट जाता है या फिर इस प्रकार मालामाल हो जाता है कि किसान के वारे न्यारे हो जाते हैं।

अलबत्ता कुछ भी हो बेशक सरकार 7 हजार रुपए प्रति एकड़ अनुदान दे या फिर न दे। क्षेत्र का किसान धान की खेती करने में बिल्कुल किनारा करने के मूड में नहीं लगता। चूंकि घग्घर नदी के साथ लगती कृषि योग्य भूमि की तासीर में मक्का, बाजरा, आदि के बीज का जर्मीनेशन ही नहीं हो सकता, और किसान द्वारा ऐसी भूमि को खाली रखने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। 

इसलिए अगर सरकार को पानी बचाना है तो या तो फिर सरकार को यह कदम उठाना होगा कि सरकार लंबे समय में पकने वाली धान की किस्म जो अधिक पानी लेती हो उस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए और कम समय वाली पकने वाली धान की 1509 किस्म की धान की फसल जो 60 से 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है का एक तो 4 से 5 हजार रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य निर्धारित कर देना चाहिए। इसके अलावा इसकी रोपाई का समय भी सरकार को निर्धारित कर देना चाहिए कि जब चौमासे की बरसात शुरू हो जाती है और पानी का वाष्पीकरण भी कम हो जाता है, तब ऐसी किस्म लगाने का सरकार को नोटिफिकेशन जारी कर देना चाहिए। इस से सरकार को दो फायदे होंगे। एक तो प्रकति की धरोहर पानी को बचाया जा सकेगा दूसरा जो सात हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से भुगतान का सरकार दावा कर रही है, इसका अतिरिक्त भार भी नहीं पड़ेगा। अलबत्ता कुछ भी हो सरकार की घोषणाओं का किसान पर कोई असर नहीं है।
 

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Content Writer

Shivam

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