बुझ गया लोहिया युग का चिराग,  नहीं रहे मुलायम

punjabkesari.in Monday, Oct 10, 2022 - 07:00 PM (IST)

गुड़गांव,(ब्यूरो): समाजवादी पार्टी के संरक्षक व यूपी के पूर्व सीएम, राम मनोहर लोहिया युग के चिराग मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन हो गया। मुलायम सिंह यादव केंद्र में रक्षा मंत्री रहे थे और तीन बार यूपी के सीएम रहे। नेताजी ने 82 साल की उम्र में गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में सोमवार की सुबह 08.16 पर अंतिम सांस ली। अस्पताल में नेताजी की निगरानी खुद मेदांता समूह के निदेशक डॉ. नरेश त्रेहन कर रहे थे। लेकिन, हालत बिगड़ने के बाद उनका जीवन नहीं बचाया जा सका।

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उनके निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी ने गुजरात के भरूच में जनसभा कर रहे थे। वहां उन्होंने सबसे पहले मुलायम सिंह यादव को याद करते हुए कहा कि मुलायम सिंह का चले जाना देश के लिए बहुत बड़ी क्षति है। मेरा उनके साथ विशेष प्रकार का नाता रहा। 2014 में जब भाजपा ने मुझे प्रधानमंत्री पद के लिए चुना तो मैंने विपक्ष में अपने परिचित लोगों को फोन करके आशीर्वाद लिया था। उस दिन नेताजी का वह आशीर्वाद, सलाह के दो शब्द आज भी मेरी अमानत है। वहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल सोमवार को श्रद्धांजलि देने के लिए मेदांता भी पहुंचे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राजद चीफ लालू यादव समेत तमाम बड़े नेताओं ने नेताजी को श्रद्धांजलि दी।

तीन बार यूपी के रहे सीएम:
मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मु यमंत्री रहे। उन्होंने 1989 में यूपी के 15वें सीएम के रूप में शपथ ली, उसके बाद से आज तक राज्य की सत्ता कांग्रेस के पास नहीं गई है। 1989 के विधानसभा चुनाव के बाद मुलायम पहली बार भाजपा के बाहरी समर्थन से मु यमंत्री बने। 1993 में सपा नेता के रूप में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, इस बार उन्हें कांशीराम के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का समर्थन हासिल था। जबकि 2003 में वह तीसरी बार सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के नेता के रूप में  मुख्यमंत्री  बने। उनके तीनों कार्यकाल की अवधि करीब छह साल और 9 महीने थी।

राजनीति विज्ञान में हांसिल की मास्टर डिग्री:
पहलवान से शिक्षक बने मुलायम का जन्म 22 नवंबर, 1939 को इटावा जिले के सैफई में हुआ था। उनकी पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा में हुई। उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए की वहीं बी.एड भी की। मुलायम कुछ दिन तक मैनपुरी के करहल में जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक भी रहे। पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर मुलायम सिंह की दो शादियां हुईं। पहली पत्नी मालती देवी का निधन मई 2003 में हो गया था। अखिलेश यादव मुलायम की पहली पत्नी के ही बेटे हैं।

1967 में पहली बार बने विधायक:
वह 1967 में पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में इटावा के जसवंतनगर से विधायक चुने गए थे। हालांकि 1969 के चुनाव में कांग्रेस के विशंभर सिंह यादव से हार गए थे। 1974 के मध्यवर्ती चुनाव से पहले मुलायम सिंह चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) में शामिल हो गए थे। उन्होंने बीकेडी के टिकट पर जसवंतनगर सीट से चुनाव लड़ा और जीता। वर्ष 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर जसवंतनगर सीट को फिर से जीता। 1970 के दशक के अंत में वह राम नरेश यादव सरकार में सहकारिता और पशुपालन मंत्री भी बने। 1980 के चुनावों में जब कांग्रेस ने वापसी की तो मुलायम अपनी सीट बलराम सिंह यादव (कांग्रेस नेता) से हार गए। बाद में वह लोकदल में गए और राज्य विधान परिषद के उ मीदवार के रूप में चुने गए। 1985 के विधानसभा चुनाव में मुलायम जसवंतनगर से लोकदल के टिकट पर चुने गए और विपक्ष के नेता बने।

जनता दल में शामिल होने के बाद सीएम बने:
1989 में 10वीं यूपी विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले मुलायम सिंह वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल में शामिल हो गए। उन्हें यूपी इकाई का प्रमुख नियुक्त किया गया। प्रमुख विपक्षी चेहरे के रूप में उभरने के बाद उन्होंने राज्यव्यापी क्रांति रथ यात्रा शुरू की। उनकी रैलियों में एक थीम गीत बजता था, नाम मुलायम सिंह है, लेकिन काम बड़ा फौलादी है। इस चुनाव में जनता दल 421 सीटों में से 208 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। हालांकि यह सं या बहुमत के आंकड़े से कम था। भाजपा को 57 और बसपा को 13 सीटों पर जीत मिली थी। मुलायम सिंह यादव एक बार फिर जसवंत नगर से चुने गए थे। उन्होंने 5 दिसंबर 1989 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।

एक साल भी नहीं चली सरकार:
नवंबर 1990 में जब जनता दल वीपी सिंह और चंद्रशेखर के नेतृत्व में दो गुटों में बंटा, तो कांग्रेस ने केंद्र में चंद्रशेखर सरकार और यूपी में मुलायम सिंह सरकार का समर्थन किया। बाद में कांग्रेस ने दोनों सरकारों से समर्थन खींच लिया, जिसके कारण यूपी और केंद्र में नए सिरे से चुनाव हुए।

1992 में सपा बनाकर बने सियासत के महारथी:
मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्टूबर 1992 को लखनऊ में समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की थी। मुलायम सपा के अध्यक्ष, जनेश्वर मिश्र उपाध्यक्ष, कपिल देव सिंह और मोह मद आजम खान पार्टी के महामंत्री बने। मोहन सिंह को प्रवक्ता नियुक्त किया गया। इस ऐलान के एक महीने बाद 4 व 5 नवंबर को बेगम हजरत महल पार्क में उन्होंने पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया। इसके बाद नेताजी की पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्थायी मुकाम बना लिया। 1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 176, सपा ने 108 और बसपा ने 68 सीटों पर जीत हासिल की थी। मुलायम शिकोहाबाद, जसवंतनगर और निधौलीकलां से चुनाव लड़े और तीनों सीटों से जीते थे। भाजपा ने सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सरकार बनाने का दावा पेश किया। वहीं मुलायम ने सभी गैर-भाजपा दलों और कुछ निर्दलीय विधायकों को मिलाकर 242 सदस्यों के समर्थन का दावा किया।

बसपा की वजह से फिर सीएम बने:
मुलायम सिंह यादव बसपा की मदद से दूसरी बार 4 दिसंबर, 1993 को मु यमंत्री बने। 29 जनवरी, 1995 को कांग्रेस ने इस सरकार से समर्थन वापस ले लिया। 1 जून 1995 को बसपा ने भी सरकार से नाता तोड़ लिया। राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने मुलायम से इस्तीफा देने को कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। 3 जून 1995 को वोरा ने मुलायम सरकार को बर्खास्त कर दिया। 2002 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिली। बसपा ने भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई। मायावती मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि अगस्त 2003 में मायावती ने इस्तीफा दे दिया और इस तरह मुलायम सिंह यादव को तीसरी बार सीएम के रूप में शपथ लेने का मौका मिला। मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान वह अपने सहयोगी अमर सिंह से खूब प्रभावित दिखे। सिंह ने ही मुलायम और उनकी पार्टी को कॉर्पोरेट और फिल्मी हलकों से जोड़ा। 2012 के विधानसभा चुनाव में जब सपा ने बहुमत हासिल किया और अपनी सरकार बनाई, तो मुलायम ने अपने बेटे अखिलेश यादव को नेतृत्व की कमान सौंप दी।

छह दशक सक्रिय राजनीति में की भागीदारी:
मुलायम सिंह यादव ने करीब 6 दशक तक सक्रिय राजनीति में हिस्सा लिया। वे पहली बार 1996 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव पहली बार सांसद चुने गए। वह एचडी देवगौड़ा और बाद में आईके गुजराल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकारों में रक्षा मंत्री रहे। वो कई बार यूपी विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य रहे। इसके अलावा उन्होंने संसद के सदस्य के रूप में सात बार हिस्सा लिया। मुलायम सिंह यादव 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में कुल 8 बार विधानसभा के सदस्य बने। इसके अलावा वह 1982 से 1985 तक यूपी विधानसभा के सदस्य भी रहे।

लालू की वजह से पीएम बनते-बनते रह गए:
माना जा रहा है कि जनता दल की जीत के बाद मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बनने वाले थे, लेकिन बिहार के लालू यादव व शरद यादव ने उनके इस मंसूबे पर पानी फेर दिया। वीपी सिंह को पीएम का ताज मिला। नेताजी पहलवान थे और दांव-पेच जानते थे। जब 1989 में बोफोर्स विरोध के दम पर वीपी सिंह ने गैर कांग्रेसी सरकार बनाई तो मुलायम सिंह यादव जैसे क्षेत्रों का रसूख भी बढ़ा। लोकसभा चुनाव के ठीक बाद जब यूपी में चुनाव हुए तो जनता दल जीत गई। वीपी सिंह ने अजित सिंह को सीएम और मुलायम सिंह यादव को डिप्टी सीएम घोषित कर दिया। मुलायम ने सियासी दांव खेलते हुए अजित सिंह के पाले के विधायक तोड़ लिए और विधायक दल के नेता बन बैठे।

कवि को धौंस जमाने पर दरोगा का लगाया धोबी पछाड़:
राजनीति में एंट्री करने से पहले मुलायम कुश्ती लड़ते थे। वे परीक्षा को छोड़कर कुश्ती लड़ने चले जाते थे। 26 जून 1960 को मैनपुरी के करहल का जैन इंटर कॉलेज के कैंपस में कवि सम्मेलन चल रहा था। यहां उस वक्त के मशहूर कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही भी मौजूद थे। वो मंच पर पहुंचे और अपनी लिखी कविता दिल्ली की गद्दी सावधान पढ़ना शुरू की। कविता सरकार के खिलाफ  थी। इसलिए वहां तैनात यूपी पुलिस का इंस्पेक्टर मंच पर गया और उन्हें कविता पढ़ने से रोकने हुए माइक छीन लिया।इसीबीच दर्शकों के बीच बैठा 21 साल का मुलायम सिंह मंच पर पहुंचा और 10 सेकेंड में इंस्पेक्टर को उठाकर मंच पर पटक दिया।

गोलीबारी चलने समर्थकों से कराई मरने की घोषणा:
4 मार्च 1984 को नेताजी की इटावा और मैनपुरी में रैली थी। जब वे अपने एक दोस्त से मिलकर वापिस जा रहे थे तो उनकी गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। गोली मारने वाले छोटेलाल और नेत्रपाल नेताजी की गाड़ी के सामने कूद गए। करीब आधे घंटे तक छोटेलाल, नेत्रपाल और पुलिसवालों के बीच फायरिंग चलती रही। छोटेलाल नेताजी के ही साथ चलता था, इसलिए उसे पता था कि वह गाड़ी में किधर बैठे हैं। यही वजह है कि उन दोनों ने 9 गोलियां गाड़ी के उस हिस्से पर चलाई, जहां नेताजी बैठा करते थे। लेकिन लगातार फायरिंग से ड्राइवर का ध्यान हटा और उनकी गाड़ी डिसबैलेंस होकर सूखे नाले में गिर गई। नेताजी ने जान बचाने के लिए अपने समर्थकों से शोर मचवा दिया कि नेताजी मर गए। हमलावरों को लगा कि नेताजी मर गए तो वे वहां से भागने लगे, लेकिन पुलिस की गोली लगने से छोटेलाल की उसी जगह मौत हो गई और नेत्रपाल बुरी तरह घायल हो गया। इसके बाद सुरक्षाकर्मी नेताजी को एक जीप में 5 किलोमीटर दूर कुर्रा पुलिस स्टेशन तक ले गए।


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Content Writer

Pawan Kumar Sethi

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