हुड्डा का खुला खत: आलोचना से उपर उठकर सरकार सबके सहयोग से कोरोना पर करे फतेह

punjabkesari.in Sunday, May 16, 2021 - 10:48 PM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी): प्रजातंत्र में सरकार लोगों द्वारा चयनित एक ऐसी संस्था है जो उनकी सुख-समृद्धि, सुरक्षा तथा समाज में शांति व सौहार्द की व्यवस्था करती है। इस शासन पद्धति में सरकार के पास सर्वोच्च शक्ति ही नहीं होती बल्कि उसके ऊपर जिम्मेदारी भी सबसे बड़ी होती है। मुझे बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आपकी सरकार उन जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में पूर्णतया विफल साबित हुई है। फलस्वरूप जनता का विश्वास खो चुकी है। आपकी सरकार में संवेदना, संवाद और सरोकार की कमी है जिसकी कीमत हरियाणा की जनता चुका रही है।

 मैं यह प्रतिपक्ष के नेता होने के नाते आपकी सरकार की कमियों को उजागर करने या दोषारोपण के लिए नहीं लिख रहा हूँ। आपकी सरकार की विफलताओं और उनके कारणों की सूची बहुत लम्बी है, यह समय उनको गिनाने या भुनाने का नहीं है। मैं यह पत्र यह प्रदर्शित करने के लिए भी नहीं लिख रहा हूँ कि मैं लोगों के इस दु:ख की घड़ी में आपसे ज़्यादा चिन्तित हूँ। मैं इस महामारी के विरूद्ध संघर्ष में मेरे तथा मेरे दल के सभी साथियों के सम्पूर्ण सहयोग का आश्वासन देने के लिए लिख रहा हूँ। हरियाणा के एक नागरिक होने के नाते मैं यह खुला पत्र इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मैं सह-निवासियों की पीड़ा से आहत हूं जो और इस संकट में सभी की सहभागिता व सहयोग चाहता है। मैं यह पत्र कुछ आधारभूत बातों पर, जो मैं कहने जा रहा हूँ, आपकी स्वीकार्यता और सहमति की अपेक्षा के साथ लिख रहा हूँ।

सर्वप्रथम, सरकार पर्याप्त तथा उपयुक्त तैयारी न करने के अपराध-बोध और आलोचना के भय से ही मुक्त हो, प्रदेश में मौजूदा स्थिति की गम्भीरता और कठिनाइयों को साफ मन से स्वीकारना होगा। इससे सरकार का नैतिक बल बढ़ेगा और लोगों का मनोबल। यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि कोरोना महामारी में पीड़ितों को ऑक्सीजन, दवाईयाँ, टीके, अस्पतालों में बिस्तर तक नहीं मिले। यहाँ तक कि मरोणोपरांत श्मशानों में भी जगह नहीं मिली। ऐसी दर्दनाक परिस्थितियों में भी ऑक्सीजन व आवश्यक दवाईयों की कालाबाजारी हो रही है। उपचार इतना महँगा है कि गरीबों की पहुँच से बाहर है।

आंकड़ों में न उलझें, ना उलझाएं
आप यह तो स्वीकार करते हैं कि कोरोना महामारी के संकट का राजनीतिकरण नहीं मानवीयकरण होना चाहिए। यदि आप ऐसा मानते हैं तो सरकार को वास्तविकता का खंडन, तथ्यों को नकारना, आँकड़ों से छेड़छाड़ करना, कोरोना महामारी से मरने व पीड़ितो की संख्या कम बताना, तैयारियों का भ्रम फैलाना तथा इस आशय के बयान और विज्ञापन आदि तुरंत बंद कर देने चाहिए। ऐसा करने से समस्या का हल नहीं होगा, बल्कि इससे लडऩे की तैयारी पर कुप्रभाव पड़ता है। ऐसा करके सरकार लोगों का नुकसान कर रही है और उनकी जान को खतरे में डाल रही है। ऐसे में सरकार की साख भी नहीं रहती।

अत: सरकार यह आधारभूत सच भी स्वीकार करे कि इस संक्रमण काल में पारदर्शिता, सत्यता और परानुभूति कोरोना वायरस के परीक्षण व उपचार जितना ही महत्वपूर्ण है। इससे लोगों का साहस बढ़ेगा और सरकार में भरोसा भी पैदा होगा और जब लोग सुरक्षित, आशान्वित व अपनत्व अनुभव करेंगे तो अद्भुत परिणाम सामने आएँगे। यह बात याद रखनी चाहिए कि आपने क्या कहा, लोग भूल जाएँगे। आपने क्या किया, ये भी लोग भूल जाएँगे लेकिन आपने लोगों को कैसा महसूस कराया, ये वो कभी नहीं भूलेंगे। आप ये बात भी अवश्य मानेंगे कि कोरोना की बीमारी इतनी गम्भीर और व्यापक है कि इसके विरूद्ध लड़ाई को केवल सरकार और राजनेताओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।

टॉस्क फोर्स का गठन हो
मानवता के अस्तित्व की इस लड़ाई में सभी को प्रतिभागिता के साथ विशेष प्रबंध और असाधारण प्रयास करने होंगे। इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि इस बीमारी का प्रबंधन, नियन्त्रण, परीक्षण, उपचार, संसाधन संवर्धन तथा तत्काल अस्थाई ढ़ाँचा खड़ा करने आदि की सभी जि़म्मेवारियाँ एक 8-10 सदस्यीय करोना कमांडर्स की उच्चस्तरीय टास्क फोर्स को सौंप दिया जाए जो पूरी एकाग्रता और निर्बाधता से इस कार्य का निरंतर निर्वहन व निष्पादन करें। सरकार इस टास्क फोर्स को सम्पूर्ण प्रशासनिक शक्तियाँ, संसाधन तथा अनावश्यक हस्तक्षेप सहित, पारदर्शी वातावरण प्रदान करे। इस टास्क फोर्स में अनुभवी डॉक्टर, प्रख्यात स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञ, प्रबंधन प्रशासन, राजनैतिक प्रतिनिधि, न्यायाधीश आदि शामिल हों, जिनकी निष्ठा, क्षमता, निष्पक्षता और योग्यता प्रमाणिक हो। इससे प्रदेश के लोगों में नयी आशा और विश्वास पैदा होगा और तभी उनका सहयोग भी प्राप्त होगा। जनसहयोग के बिना सरकार इस जंग को नहीं जीत सकती। कोरोना संक्रमण काल में सरकार, समाज, पंचायत और परिवार - सभी की साझेदारी जरूरी है। सरकार केवल टास्क फार्स की अनुशंसाओं केे अनुपालन की निगरानी रखे।

इस प्रकार टास्क फोर्स को जि़म्मेवारी सौंपकर सरकार दूसरे महत्वपूर्ण विषयों जैसे कानून व्यवस्था, शिक्षा, जनस्वास्थ्य आदि पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित कर सकेगी। आप इस बात से भी सहमत होंगे कि प्रदेश सरकार का मुखिया होने के नाते सभी प्रदेशवासियों की प्रतिभागिता सुनिश्चित करने तथा उनका भरोसा जीतने की प्राथमिक जि़म्मेदारी आपकी है। आप जानते ही हैं कि हरियाणा-दिल्ली की सीमाओं और प्रदेश के अन्य स्थानों पर हजारों किसान नये कृषि कानूनों के विरूद्ध पिछले 6 महीनों से सत्याग्रह कर रहे हैं। करोना महामारी की दूसरी लहर के ग्रामीण अंचलों में अनपेक्षित प्रसार, गहनता और विस्तार तथा वहां चिकित्सा सेवाओं के अभाव के मद्देनजऱ किसानों की समस्या का समाधान शीघ्रतिशीघ्र होना अनिवार्य है। अन्यथा सरकार द्वारा इस महामारी के फैलाव को रोकने के लिए किए जाने वाली कोशिशें सफल नहीं होंगी।

आंदोलनकारी किसानों से बातचीत की सकारात्मक पहल हो
जिन अमानवीय परिस्थितियों में आंदोलनरत किसान वहां पर रह रहे हैं, उनसे कोविड-19 के प्रोटोकॉल तथा लॉकडाउन के अनुशासन की अनुपालना की अपेक्षा नहीं की जा सकती। उनके घर-परिवार खेत-खलिहान को संभालने के लिए गांव में आने-जाने से संक्रमण के फैलाव की संभावना बढ़ती है। ग्रामीण अंचलों में उपचार सुविधाओं की कमी के बारे में आप जानते ही हैं कि स्वास्थ्य केंद्रों अस्पतालों में 1000 लोगों के बीच में सिर्फ आधा बिस्तर उपलब्ध है। ऑक्सीजन तो है ही नहीं। इन तथ्यों को स्वीकार न करना सरकार में संवेदना, समझ, सही सूचना, सरोकार तथा सदनीयत के अभाव का संकेत देता है। अंत: जनता की जान बचाने के लिए किसानों से बातचीत करना अनिवार्यता बन गई है। इसके लिए सकारात्मक व सार्थक पहल करना आपका कत्र्तव्य है। इसमें हम आपके साथ हैं।

इस तथ्य को सरकार क्या अन्य सभी जानते हैं कि किसान वर्ग आपकी सरकार से नाराज़ और निराश ही नहीं, नाउम्मीद भी हो गया है। इसका कारण सरकार के कथन, कार्यकलाप और कार्यशैली है। लेकिन यह बात यदि आप स्पष्टता और सहृदयता में स्वीकार कर लेंगे तो परस्पर संदेह व वैमनस्य व दुराव कम होगा और बातचीत के दरवाजे खुलेंगे। अत: आपको जनता की जान बचाने के लिए राजनैतिक व नैतिक साहस दिखाना होगा और किसानों के प्रतिनिधि बन उनकी पैरवी करके यह गतिरोध खत्म कराना होगा। इसके लिए मैं पुन: दोहराता हूँ कि मेरा और मेरे दल के सभी साथियों का संपूर्ण सहयोग आपको मिलेगा।

असहमति या मतभेद का अर्थ टकराव या मनभेद नहीं होता। प्रजातंत्र में यह लाजमी है। लोकतंत्र में लोगों के सिरों को गिना जाता है, उन्हें फोड़ा नहीं जाता। आप स्वीकार करें कि हम सबको मिलकर इस महा संकट का दृढ़ता तथा सहजता से सामना करना है। 

तूफां है तेज, कश्तियां भंवर में हैं,
सबको मिले किनारा, आओ मिलकर दुआ करें। 


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Content Writer

Shivam

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