पुंछी आयोग के सूचिबद्ध महत्वपूर्ण दिशा निर्देश हैं,पूर्व गठबंधन को एक राजनीतिक दल माना है: राम नारायण यादव

punjabkesari.in Sunday, Feb 20, 2022 - 06:00 PM (IST)

चंडीगढ़ (चन्द्रशेखर धरणी): पुंछी आयोग के सूचिबद्ध महत्वपूर्ण दिशा निर्देश हैं, आयोग ने चुनाव पूर्व गठबंधन को एक राजनीतिक दल माना है, तथा हंग-हाउस की स्थिति में राज्यपाल द्वारा निर्णय अंतिम होगा।पंजाब विधानसभा का मतदान कल सम्पन्न हो चुका है। सभी राजनीतिज्ञ दलों ने सत्ता हासिल करने के लिये पूरी ताकत झोंक दी है। सत्ता कौन पाता है यह ईवीएम में बंद जनता के मतों में छिपा है, जिसकी तस्वीर 10 मार्च 2022 को सामने आ सकेगी। नतीजों के बाद की स्थिति कैसी होगी और इन परिस्थितियों में सरकार बनाने, सदस्य व सदन की संविधान के अंर्तगत क्या भूमिका होगी इसे जानने के लिये हमारे ब्यूरो प्रमुख चन्द्र शेखर धरणी ने विभिन्न पहलुओं पर बात की संविधान व संसदीय प्रणाली के जानकार, पंजाब में रहे विधानसभा अध्यक्ष के सलाहकार व पूर्व अतिरिक्त सचिव, हरियाणा विधानसभा राम नारायण यादव से। जानते हैं मतपेटियों में जो छिपा है उसका पंजाब विधानसभा, इसके सदस्यों व राज्यपाल महोदय की चुनाव नतीजों के बाद क्या भूमिका होगी। 


प्रश्नः राम नारायण जी, विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद पंजाब मंत्रीपरिषद् के गठन की क्या प्रक्रिया अपनायी जायेगीघ् उत्तरः संविधान के अनुच्छेद 168 में विधानसभा का प्रावधान है, जिसका गठन जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के सेक्शन-73 के अंतर्गत चुनाव आयोग की अधिसूचना से होता है। मंत्रीपरिषद् का प्रावधान अनुच्छेद 163 में है और इसका गठन अनुच्छेद 164 के अंतर्गत राज्यपाल महोदय मुख्यमंत्री की नियुक्ति करके अन्य मंत्रीयों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर करते हैं। प्रश्नः मुख्यमंत्री के पद पर किस व्यक्ति की व किस आधार पर नियुक्ति की जाती है।
उत्तरः
सदन में सभी प्रश्नों पर निर्णय अनुच्छेद 189 के प्रावधानों के अंतर्गत बहुमत से होता है। इसलिये राज्यपाल ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करते हैं जो सदन का सदस्य हो या सदस्य बनने की शर्तें पूरी करता हो और सदन में सदस्यों के बहुमत का नेतृत्व करने की क्षमता रखता हो।   


प्रश्नः यादव जी, यदि चुनाव के नतीजों से किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो उस स्थिति में मंत्रीपरिषद् के गठन की क्या संभावनाऐं होंगी?
उत्तरः
यह एक बहुत महत्व का प्रश्न है। संविधान या कानून में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधन नहीं है कि राज्यपाल किस व्यक्ति विशेष को मुख्यमंत्री नियुक्त करेंगे। यह परिस्थिति विशेषकर तब और जटिल हो जाती है जब किसी दल या दलों के गठबंधन को आम चुनाव में सदन में स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता। ऐसे में राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं। इसके बारे में कुछ प्रथाऐं-दिशानिर्देश निर्धारित किये जाते रहे हैं। मुख्यमंत्री की नियुक्ति पर विभिन्न समितियों व आयोगों के निर्णय आऐ हैं। इनमें वर्ष 1970 की राज्यपालों की समिति के निष्कर्ष हैं, जिन्हें सरकारिया आयोग ने उन्नत रूप दिया। अन्तिम रूप एम.एम. पुंछी आयोग के सूचिबद्ध महत्वपूर्ण दिशानिर्देश हैं। आयोग ने चुनाव पूर्व गठबंधन को एक राजनीतिक दल माना है, तथा हंग-हाउस की स्थिति में राज्यपाल द्वारा निर्णय लेने के लिए क्रम निर्धारित किये

सबसे बडे़ पूर्व मतदान गठबंधन वाले समूह को बुलाऐं जो सबसे बड़ी संख्या को कमांड करता है; उसके बाद दूसरों का समर्थन प्राप्त सबसे बड़े दल को अवसर दें; इसके बाद आवश्यक हो तो चुनाव के बाद सभी दलों के गठबंधन को जो सरकार में शामिल होते हैं, और अंत में चुनाव के बाद गठबंधन को जिसके कुछ दल जो सरकार में शामिल हो रहे हैं तथा शेष निर्दलीय सहित जो बाहर से समर्थन करते हैं; उनको सरकार बनाने का आमंत्रण दें। अन्य परिस्थिति में एक और सरल विधि है कि राज्यपाल केवल विधानसभा को अपना नेता चुनने के लिए संदेश भेजें ताकि वह नेता मुख्यमंत्री नियुक्त किया जा सके। इससे राज्यपाल आलोचना से बच सकते हैं। यह सुझाव नेशनल कमिशन टू रिव्यू दी वर्किंग आफ कंस्टिट्यूशन के सदस्य डा. सुभाष कश्यप का भी है जिसे जगदंबिका पाल फरवरी 1998 मामले में उच्चतम न्यायालय की मंजूरी कहा जा सकता है। रामेश्वर प्रसाद ऐ.आइ.आर. 2006 में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी भी विशेष है।


प्रश्नः यदि राज्यपाल जी इन रास्तों को अपनाने पर भी मुख्यमंत्री नियुक्त करने के लिये संतुष्ट नहीं होते, उस स्थिति में वह क्या कदम उठा सकते हैं?
उत्तरः
इस स्थिति में राज्यपाल महोदय राष्टृपति शासन की शिफारिश कर सकते हैं और राज्य में राष्टृपति शासन लागू रह सकता है साथ ही राज्यपाल सरकार बनाने की संभावनाऐं तलाश करेंगे। यदि सरकार बनाने की संभावना नहीं दिखती और राज्यपाल संतुष्ट हैं कि सरकार संविधान के अनुसार नहीं चल सकती तो वह अनुच्छेद 174 की शक्तियों का इस्तेमाल कर विधानसभा भंग कर सकते हैं।

प्रश्नः राष्टृपति शासन की स्थिति में, सदस्य व विधानसभा की स्थिति क्या रहेगी। सदस्य शपथ नहीं लेंगे, सदन चलेगा नहीं, सदस्यों के भत्ते व अधिकार, फिर नज़दीक भविष्य में राज्य से राज्यसभा के चुनाव होने हैं, आदि प्रश्न उत्पन्न हो सकते हैं।
उत्तरः
जी, यह प्रश्न भी विशेष महत्व का है। एक सदस्य को अपनी शक्ति व अधिकारों को प्राप्त करने के लिये तीन संविधानिक स्टेज़िज को पूरा करना होता है; प्रथम उसे चुनाव जीतना है, दूसरे चुनाव आयोग की अधिसूचना से सभा का गठन होना है जैसे पहले बताया गया है, व तीसरे अनुच्छेद 188 के अंतर्गत सदस्य को शपथ लेनी होगी। आम चुनावों के बाद यदि कोई दल या गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है तो उस स्थिति में राज्यपाल राष्टृपति शासन की शिफारिश कर सकते हैं तथा विधानसभा सस्पैंडिड एैनिमेशन में रखी जा सकती है। एैसे कई उदाहरण हैं; वर्ष 1965 का केरल में, 1996 व 2002 के उत्तर प्रदेश, आदि। चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद बिना शपथ लिये सदस्यों को वेतन, भत्ते व अन्य अधिकार प्राप्त हैं, राज्यसभा के चुनाव में भी उन्हें मत का अधिकार है, ऐसा निर्णय माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पशुपति नाथ सुकुल केस में 1984 में दिया है। हां, बिना शपथ लिये सदस्य को सदन में बैठने का अधिकार अनुच्छेद 193 नहीं देता।


 


 


                                  


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Isha

Recommended News

Related News

static