धान ने कुछ किसानों को किया मालोंमाल तो कुछ किसान हुए बेहाल

punjabkesari.in Thursday, Dec 10, 2020 - 03:43 PM (IST)

ऐलनाबाद (सुरेंद्र सरदाना) : बासमती धान की पैदावार में हरियाणा को अवल नम्बर पर माना जाता है। जिसके चलते तरावड़ी में अनेकों धान की फैक्ट्रियां लगी हुई है जहां से भारत देश का चावल अरबियन कंट्री में निर्यात होता है। पिछले दो सालों में बासमती धान किसानों के लिए तो घाटे का सौदा रहा है लेकिन निर्यातकों की इस में बल्ले बल्ले रही है। इस के पीछे क्या कारण है यह तो कह पाना मुश्किल है लेकिन चावल निर्यातकों का मानना है कि इस मंदी का सब से बड़ा कारण ईरान देश द्वारा भारत के चावल के आयात पर पाबंदी लगाना रहा है व दूसरा कारण यह माना जाता है कि भारत के निर्यातकों का  धान का मोटा रुपया ईरान में रुकना रहा है। 

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अगर बासमती धान के इस वर्ष के दामों की बात करे तो नवम्बर के प्रथम सप्ताह से ले कर नवम्बर के अंतिम सप्ताह तक बासमती धान के दामो में भारी उछाल आया है। दिसम्बर माह के पहले सप्ताह में बासमती धान 3400 रुपए से ले कर 3500 रुपए प्रति क्विंटल बिका है जो कि नवम्बर माह में 2400 रुपए से ले कर 2500 रुपए प्रति क्विंटल था। इस प्रकार एक माह के अंदर बासमती धान 1401 किस्म में आई 1000 रुपए प्रति क्विंटल की तेजी से उन किसानों के वारे न्यारे हो गये है जिन्होंने धान को मंडियों में नही बेचा है और ऐसे किसान मालामाल हो गए है  लेकिन वह किसान बेहाल भी है जिन्होंने धान की कटाई करते ही अपने धान का मंडीकरण कर दिया है और अपना यह धान 2400 या 2500 रुपए प्रति क्विंटल बेच दिया है।

इस का सीधा सीधा फायदा बिचौलियों को हुआ है यानी दूसरे शब्दों में यह फायदा पूँजीपति वर्ग को हुआ है जिन्होंने किसान द्वारा छह महीने दिन रात एक कर मेहनत से धान को तैयार कर पूंजी के दम पर ओने पोने दामो पर खरीद लिया। यह पहले मर्तबा नहीं हुआ बल्कि यह हर वर्ष ही होता है कि जब धान किसान के हाथ में होता है तो धान की कीमत कम होती है और जब यह धान व्यपारी वर्ग या पूंजीपति वर्ग के हाथ में आ जाता है तो ऐसे धान के दाम आसमान को छूने लगते है। लेकिन गत वर्षों में जो तेजी आती है वह तेजी फरवरी या मार्च माह में ही आती है।लेकिन इस वर्ष यह दामों में तेजी दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में ही आ गई है और ऐसा माना जाता है कि आगामी दिनों में यह आंकड़ा 5000 को भी पार कर सकता है। इसके पीछे निर्यात का मानना है कि गत दो वर्षों से ईरान द्वारा आयात पर लगाई गई पाबंदी हटा दी गई है और ईरान में रुके हुए रुपयों का भुगतान भी हो गया है। अलबत्ता कुछ भी हो किसान को तो सदैव मार पड़ती ही है बेशक सूखे की या बाढ़ की या फिर उसकी फसल के दाम की । फिर भी किसान सदैव खुशहाल ही नज़र आता है।


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Manisha rana

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