हरियाणा का सियासी इतिहास, बहुत कम नेत्रियां ही पहुंची हैं बड़े सियासी पदों तक!

punjabkesari.in Friday, May 28, 2021 - 03:05 PM (IST)

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : राजनीतिक लिहाज से सियासत में एक बड़ा रुतबा रखने वाले हरियाणा प्रदेश में यूं तो सभी सियासी दल महिलाओं को राजनीति में बराबर का हक देने की वकालत करते रहे हैं, मगर प्रदेश का राजनीतिक इतिहास देखा जाए तो साफ नजर आता है कि इस राज्य में महिला नेत्रियों को बड़े सियासी पदों पर पहुंचने का मौका बहुत कम ही मिला है। प्रदेश के 55 वर्षों के राजनीतिक सफर में अभी तक कोई महिला नेत्री मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री की कुर्सी तक तो नहीं पहुंच पाई है, मगर केवल मात्र एक महिला नेत्री को विधानसभा अध्यक्ष, तीन महिलाओं नेत्रियों को तीन राष्ट्रीय दलों का प्रदेशाध्यक्ष, एक महिला नेता को नेता प्रतिपक्ष व हरियाणा से संबंधित दो महिला नेत्रियों की दूसरे राज्यों का उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री बनने का अवसर जरूर मिला है।

राज्य की इन भाग्यशाली नेत्रियों में शन्नो देवी, चंद्रावती, सुषमा स्वराज, कमला वर्मा व कुमारी सैलजा शामिल हैं । जिससे जाहिर है कि राजनीति में महिलाओं को बराबर का हक देने का दम भरने वाले राजनीतिक दलों ने  कभी महिलाओं को राजनीति में अहम स्थान देना उचित नहीं समझा। उल्लेखनीय है कि चन्द्रावती, डा. कमला वर्मा व सुषमा स्वराज सहित ऐसी अनेक महिला नेत्रियों को राज्य में मंत्री बनने का अवसर जरूर मिला है । 

शन्नो देवी बनी थीं पहली विधानसभा अध्यक्ष
हरियाणा का सियासी इतिहास देखा जाए तो प्रदेश के अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद शन्नो देवी पहली ऐसी महिला थीं, जो 1966 से 1967 तक विधानसभा की अध्यक्ष रहीं। उसके बाद से लेकर अब तक किसी महिला को इस महत्वपूर्ण पद तक पहुंचने का सौभाग्य नहीं मिला। हरियाणा के अब तक के 55 वर्ष के राजनीतिक सफर में दस ऐसे नेता हैं जो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे, लेकिन किसी भी महिला लीडर को मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला और न ही कोई महिला नेत्री राज्य की उप मुख्यमंत्री रही। इसके अलावा चंद्रावती को 1977 में पहली बार राज्य से प्रथम महिला सांसद बनने का गौरव हासिल हुआ।

उन्होंने उस समय कांग्रेस के कद्दावर नेता चौ. बंसी लाल को भिवानी संसदीय सीट से पराजित किया था। हरियाणा के अब तक के 55 वर्ष के सियासी सफर पर नजर डालें तो राज्य से 6 महिलाओं को ही देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में पहुंचने का अवसर मिला है।  चंद्रावती के अलावा  कुमारी सैलजा चार बार लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुईं। इनैलो से कैलाशो सैनी दो बार कुरुक्षेत्र से सांसद चुनी गईं तो भाजपा से डा. सुधा यादव एक बार और कांग्रेस की श्रुति चौधरी भिवानी से सांसद रह चुकी हैं। इसी प्रकार से वर्तमान में सुनीता दुग्गल सिरसा से सांसद हैं। इन गिनी-चुनी महिलाओं के अलावा न तो किसी महिला को किसी पार्टी की अध्यक्ष बनने का मौका मिला, न ही कोई महिला मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच सकी। चंद्रावती हरियाणा की एक ऐसी महिला नेत्री भी हैं , जो 1982 में  विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष  बनने के अलावा पुड्डुचेरी की उपराज्यपाल भी रहीं। 

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सुषमा स्वराज पहुंची दिल्ली सी.एम की कुर्सी तक
हरियाणा से सियासी सफर शुरू करने वाली सुषमा स्वराज बेशक हरियाणा की मुख्यमंत्री नहीं बन पायीं, मगर वे अपने बड़े सियासी कद के चलते दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक अवश्य पहुंचने में सफल रहीं। वे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहीं। 1977 में जनता पार्टी से अम्बाला कैंट से विधायक निर्वाचित हुई। 25 बरस की सुषमा स्वराज चौधरी देवीलाल की कैबीनेट में सबसे युवा मंत्री बनाई गई। 14 फरवरी 1952 को जन्मी सुषमा स्वराज 1987 से लेकर 1990 तक भी देवीलाल सरकार में मंत्री रहीं। उसके बाद 1990 के दशक में सुषमा स्वराज केंद्र की सियासत में सक्रिय हो गई।1990 में राज्यसभा की सदस्य चुनी गई। 1996 में दिल्ली साऊथ से सांसद बन गई और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहीं। 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। 2000 से लेकर 2003, 2003 से 2004 और 2014 से 2019 तक केंद्रीय मंत्री रहीं। 2009 से लेकर 2014 तक सुषमा स्वराज ने लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपना प्रभाव छोड़ा। गजब की वाकपटुता और राजनीतिक कौशल के चलते सुषमा स्वराज देश की सियासत में एक बड़ा चेहरा बनकर सामने आई।

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चार बार मंत्री बनीं व कांग्रेस अध्यक्ष बनी हैं शैलजा
सुषमा स्वराज के बाद हरियाणा से कुमारी शैलजा ने केंद्र की सियासत में अपनी एक पहचान बनाई। सैलजा पहली ऐसी महिला नेत्री हैं जो कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल के प्रदेशाध्यक्ष के पद तक पहुंची है। पिता चौ. दलबीर सिंह के निधन के बाद उन्हें सियासत में आना पड़ा। 1988 में सिरसा संसदीय सीट पर उपचुनाव हुआ। कांग्रेस से कुमारी शैलजा को उम्मीदवार बनाया गया। वे जनता दल के हेतराम से चुनाव हार गई। साल 1991 के संसदीय चुनाव में कुमारी शैलजा सिरसा लोकसभा से पहली बार सांसद बनीं। उस समय सैलजा मात्र 29 साल की थीं। वे नरसिम्हा राव सरकार में राज्य शिक्षा मंत्री बनाई गई। इससे पहले साल 1990 में कुमारी सैलजा को हरियाणा महिला कांग्रेस की प्रधान भी चुना गया।

1996 में कुमारी शैलजा फिर से सिरसा सीट से सांसद निर्वाचित हुई और केंद्र में मंत्री बनी। साल 1998 में वे इनैलो के डा. सुशील इंदौरा से चुनाव हार गई। इस हार के बाद कुमारी शैलजा ने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल लिया। साल 2005 के संसदीय चुनाव में उन्होंने अम्बाला संसदीय क्षेत्र से भाजपा के रत्तनलाल कटारिया को हराया। 2009 के संसदीय चुनाव में वे फिर से अम्बाला से सांसद चुनी गईं। 2005 में मनमोहन सरकार में वे आवास एवं गरीब उन्मूलन मंत्री रहीं। 2009 से 2012 तक वे सामाजिक अधिकारिता जबकि 2012 से 2014 तक परिवहन मंत्री रहीं। 2014 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया। शैलजा की गिनती कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के अत्यंत विश्वासपात्रों में होती हैं। 

तीन नेत्रियों को मिला प्रदेशाध्यक्ष बनने का मौका
हरियाणा की केवल महिला नेत्रियों को ही राष्ट्रीय दलों के प्रदेशाध्यक्ष बनने का अवसर मिला है । सबसे पहले चंद्रावती को जनता पार्टी की प्रदेश इकाई का प्रधान नियुक्त किया गया । वे 1977 से लेकर 1979 तक तक इस पद पर रहीं । उनके बाद डा. कमला वर्मा भाजपा की राज्य इकाई की अध्यक्ष रहीं और वे इस पद पर 1980 से 1983 तक रहीं । अब वर्तमान में पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ऐसी महिला नेत्री हैं ,जो कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष हैं। कुमारी शैलजा को 2019 में विधानसभा चुनाव से पहले सितंबर में पार्टी की कमान सौंपी गई थी ।


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Content Writer

Manisha rana

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