हुड्डा-शैलजा की गुटबाजी पर विराम लगाने के लिए हरियाणा में बनाए जा सकते हैं 2 कार्यकारी अध्यक्ष

punjabkesari.in Tuesday, Jul 20, 2021 - 05:18 PM (IST)

चंडीगढ़( चंद्रशेखर धरणी): पंजाब कांग्रेस की तर्ज पर हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी में भी जल्द ही कार्यकारी अध्यक्ष पद बनाकर नई नियुक्तियां हो सकती हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हरियाणा प्रदेश कांग्रेस में संतुलन बनाने और गुटबाजी को समाप्त करने के लिए कांग्रेस आलाकमान इस फार्मूले पर काम करने पर विचार बना रहा है। हरियाणा में इस फार्मूले से जहां इन दो वरिष्ठ नेताओं के बीच का वाद-विवाद कम होगा, वहीं कार्यकारी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी कर जातीय व क्षेत्रीय संतुलन को भी साधा जाएगा। हरियाणा में कांग्रेस आलाकमान दो कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर सकता है। अतीत में भी कांग्रेस पार्टी हरियाणा में इस फार्मूले पर काम कर चुकी है। कई ऐसे चेहरे हैं जो प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके हैं।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हरियाणा कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा के खिलाफ पिछले दिनों नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट के 22 विधायकों द्वारा कांग्रेस आलाकमान के दरबार में शक्ति प्रदर्शन भी किया गया था। कांग्रेस आलाकमान यह भली-भांति जानती है कि नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा तथा उनके राज्यसभा सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा की टीम हरियाणा में मजबूत पकड़ रखती है। पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की जेल से रिहाई के बाद जाट बहुल क्षेत्रों में इनेलो की बढ़ती सक्रियता तथा किसानों में ओमप्रकाश चौटाला के प्रति लगाव को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान हरियाणा में पंजाब की तर्ज पर समानांतर गुटबाजी को हवा देने की बजाए बीच का रास्ता ढूंढ रही है। कांग्रेस पार्टी इस समय जोखिम को लेने के मूड में बिल्कुल नहीं दिख रही है। इसलिए कांग्रेस कुमारी शैलजा और हुड्डा में से किसी को भी नाराज करने के मूड में नहीं है।

कांग्रेस आलाकमान कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति के एक पद पर जाट वर्ग और दूसरे पद पर खत्री (पंजाबी) वर्ग को देकर जातीय व क्षेत्रीय संतुलन बिठाने की कोशिश कर सकता है। प्राप्त संकेतों के अनुसार हरियाणा कांग्रेस की भूमिका आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली व हिमाचल प्रदेश के चुनावों में अहम रह सकती है।पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट बिरादरी का दबदबा होने के कारण कांग्रेस इस क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे दमदार नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतार सकती है। दो कार्यकारी अध्यक्षों के पद पर किसकी ताजपोशी होगी यह तो अभी भविष्य के गर्भ में ही मौजूद है। कांग्रेस आलाकमान बिना जोखिम उठाए जहां हरियाणा में कुमारी शैलजा को मजबूती प्रदान करना चाहती है। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में हरियाणा की यह गुटबाजी खत्म करने पर मंथन चल रहा है। 

बता दें कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्रदेश कांग्रेस में आज के दिन सबसे बड़ा चेहरा है और नेता प्रतिपक्ष हैं। इन्हें मुख्यमंत्री बनाने से पहले जाट समाज कांग्रेस पार्टी को बिल्कुल पसंद नहीं करता था। लेकिन हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाए जाने और ओम प्रकाश चौटाला के जेल जाने के बाद कांग्रेस जाटों की पसंदीदा पार्टी बनी। इनेलो से बड़ी संख्या में जाट नेता कांग्रेस में  शामिल हुए। साथ ही देश में कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ हुए सम्मेलन जी- 23 मे भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी शामिल हुए थे। हालांकि उनके इस कदम से प्रदेश कांग्रेस के अन्य हुड्डा विरोधी नेताओं ने कांग्रेस आलाकमान के सामने इनकी ताकतों को छीनने को लेकर कई कोशिशें की थी। हालांकि कांग्रेस आलाकमान इस बात से काफी नाराज भी था। लेकिन नाजुक हालातों को समझते हुए सभी बातों को अनदेखा किया था। साथ ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा बिना कांग्रेस के झंडे-बैनर के एक बड़ी रैली आयोजन किया गया था। जिसमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट के लगभग सभी विधायक, पूर्व विधायक और भारी भीड़ एकत्रित हुई थी। हुड्डा की इस रैली में लगे बैनरों पर कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता की फोटो नहीं लगाई गई थी।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इसके रैली के जरिए कांग्रेस आलाकमान को अपनी शक्ति का एहसास करवाया था। चर्चाएं उस समय जोरों पर थी कि रैली में भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी की घोषणा कर सकते हैं। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा मौका संभालते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस में ही रहने के लिए राजी कर लिया गया था। अब ऐसे हालातों में जब हुड्डा 22 विधायकों के साथ प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं तो ऐसे में कांग्रेस पार्टी किसी भी प्रकार का जोखिम लेने के मूड में नहीं है। मौके की नजाकत को समझते हुए कांग्रेस अपना एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। साथ ही कुमारी शैलजा और उनके साथी नेताओं- विधायकों को भी पार्टी नाराज करने के मूड में नहीं है। बता दें कि कुमारी शैलजा एक ताकतवर दलित महिला नेता है। कांग्रेस की जल्दबाजी और छोटी सी गलती से कांग्रेस को बड़ी क्षति हो सकती है। क्योंकि पहले दलित नेता अशोक तंवर को भी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया जा चुका है। जिसकी नाराजगी के चलते अशोक तंवर ने पार्टी को ही त्याग दिया। अगर अब इस दलित नेत्री को भी दरकिनार किया गया तो प्रदेश में दलित वोट बैंक कांग्रेस की झोली से पूरी तरह से खिसक सकता है। ऐसे में कांग्रेस के लिए आलाकमान को कार्यकारी अध्यक्ष पद ही डूबती नैया का सहारा दिख रहा है।

 

 


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Content Writer

Isha

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