भाभी देवर की करती है रस्सी से पिटाई, आज भी प्रचलित है हरियाणा में हाड़ तोड़ होली
punjabkesari.in Monday, Mar 29, 2021 - 07:07 PM (IST)
चरखी दादरी (नरेन्द्र): तौर तरीके बदले हैं और जमाना भी बदला है मगर आज भी परंपराएं जिंदा हैं। खास कर त्यौहारों के मौके पर हरियाणा में जिस तरह लोक संस्कृति के दर्शन होते हंै शायद ही किसी दूसरे प्रांत में होते होंगे। मजबूत रस्सी से युवाओं की पिटाई महिलाओं द्वारा किया जाना कोई लड़ाई नहीं है, बल्कि ऐसी बानगी तो प्रत्येक होली के मौके पर हरियाणा प्रदेश के गांवों में देखने को मिलती हैं।
अगर हरियाणा की लोक संस्कृति की छटा देखनी है तो यहां के गांवों में देखी जा सकती है। खास कर त्यौहारों के मौके पर यहां जिस कदर सांस्कृतिक विरासत को देखा जा सकता है वो शायद ही कहीं दूसरी जगह देखा जा सकता हो। आज होली का खुमार हर किसी के सिर पर चढ़ा हुआ है। ऐसे में हरियाणा की स्पेशल कोरड़ा होली का जिक्र ना किया जाए तो शायद बेमानी ही होगा।
प्रदेश के ग्रामीण अंचल में बसे लोग अगर किसी त्यौहार का बेसब्री से इंतजार करते हैं तो वो पर्व होली के अगले दिन आने वाला फाग ही है। इस दिन हरियाणा के गांवों की गलियों में जिस कदर हुड़दंग मचता है वो देखने लायक होता है। मजबूत रस्सी से युवकों की पिटाई प्रत्येक होली के मौके पर हरियाणा में देखने को मिलती है। प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में खासकर विवाहित महिलाएं अपने देवरों के साथ होली खेलती हैं। इस कदर मजबूत रस्सियों से बनाए गए कोरड़ों से वे अपने देवरों के शरीर पर मार करती हंै कि देखने वालों के भी पसीने छूट जाएं। इस मार को सहन करने वाले भी त्यौहार का मजा ही लेते हैं तथा होली खेलते समय उन्हें शायद ही मार की परवाह होती है।
हालांकि युवक अपना बचाव करने के लिए लाठी डंडों का प्रयोग तो करते हैं मगर वे पलटवार नहीं करते बल्कि बचाव के लिए ही ऐसा करते हैं। साथ ही कोरड़े मारने वाली महिलाओं को भी पानी से भिगोकर होली पर्व को सार्थक बनाते हैं। ऐसी ही होली खेलने वाली महिलाओं का कहना है कि जब तक शरीर पर निशान ना पड़ जाएं तब तक होली बेमजा है।
वहीं शहरी इलाकों में अब परंपराएं बदलने के चलते रंगों व गुलाल का चलन अधिक बढ़ा है। होली के रंगों से युवा वर्ग सराबोर दिख रहा है। हर कोई होली के इस हुड़दंग में शामिल है चाहे युवा हो या बच्चे। होली का हुड़दंग कुछ ऐसा है कि जिसे भी रंगो, वह बुरा नहीं मानता। हालांकि समय बदला है व पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के विचार भी बदल रहे हैं तो भी त्यौहारों की परंपरा कम नहीं हुई है। आज भी बरसों पहले अपने अंदाज में मनाई जाने वाली होली होली की तर्ज पर ही होली मनाए जाने का चलन कायम है।
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