आम बजट में घग्गर के प्रदूषण का उल्लेख, सरकार ने माना नदी के जहरीले पानी से फैल रहा है कैंसर

punjabkesari.in Saturday, Feb 29, 2020 - 02:23 PM (IST)

सिरसा (सेतिया) : घग्गर नदी के जहरीले हो चुके ‘मुंह’ पर पहली बार सरकार ने संजीदगी दिखाई है। मुख्यमंत्री की ओर से विधानसभा में आज किए गए बजट में घग्गर नदी के प्रदूषण पर जहां चिंता जाहिर की गई है, वहीं सरकार ने भी यह माना है कि औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले दूषित रसायनों एवं शहरी क्षेत्रों से आने वाले सीवरेज के पानी से कैंसर व हैपेटाइटस सी. जैसी खतरनाक बीमारियां फैल रही हैं।

सरकार ने बजट में इस नदी को प्रदूषण मुक्त करने एवं साथ निकलने वाले नालों के शुद्धिकरण के लिए योजना बनाए जाने की बात कही है। बजट में जनस्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग के अंतर्गत बिंदु नम्बर 165 में घग्गर नदी के संदर्भ में उल्लेख किया गया है। हालांकि घग्गर को प्रदूषण मुक्त करने पर बजट के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया है।दरअसल सिरसा में घग्गर नदी एक बड़े हिस्से से होकर गुजरती है। घग्गर का उद्गम हिमाचल प्रदेश में शिवालिक पहाडिय़ों से होता है। उद्गम स्थल पर घग्गर कौशल्या नदी के नाम से अस्तित्व में है यहां से मोहाली के मुबारिकपुर में यह नदी पंजाब में प्रवेश करती है।

पंजाब के पटियाला, संगरुर एवं मानसा जिलों में इस नदी का प्रवाह है। आज से डेढ़ दशक भर पहले यह नदी पाक थी। इसका मुंह सुंदर था। नदी में बच्चे-किशोर नहाते थे। पशुओं संग अठखेलियां करते थे। नदी में मछलियां, कछुए, मगरमच्छ व सांप जैसे जानवरों की प्रजातियां थी। शंख-सिप्पियां भी मिलती थी। नदी के पानी से लोग दाल-सब्जी बनाते थे। पर इंसानी दखल ने इस सुंदर नदी का मुंह जहरीला बना दिया। हरियणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार ही इस नदी पर बसे 22 शहरों एवं अनेक गांवों का सीवरेज एवं वेस्ट वाटर प्रवाहित होने के अलावा 10 दवाई कारखानों एवं एक शराब फैक्टरी का वेस्ट वाटर डिस्चार्ज होने से नदी प्रदूषित हो गई है। 

घग्गर में बी.ओ.डी., टी.एस.एस., फैकल कोलीफोरम, लीड एवं आयरन तत्व जहर घोल रहे हैं। तय मानकों से करीब 100 गुणा तक इन तत्वों के बढऩे से घग्गर का पानी जहर बन गया है। दवा-दारु के कारखाने एवं घरों का दूषित पानी इस सुंदर नदी का मुंह जहरीला बना रहा है। चिंतनीय पहलू यह है कि नदी तटबंध पर अकेले सिरसा जिले में 531 पाइप लाइन हैं।

रबी सीजन में 1 लाख हैक्टेयर में गेहूं इसी पानी से पकता है तो खरीफ सीजन में करीब 60 हजार हैक्टेयर में चावल का उत्पादन होता है। इसी पानी को कई गांव में पशु पीते हैं। तटबंधों पर बसे गांवों में इसी पानी से पशुओं का चारा व सब्जियों का उत्पादन होता है। बाद में यही गेहूं, चावल, सब्जियां इंसान खाते हैं। यह धीमा जहर नसों में जा रहा है। परिणाम स्वरूप सिरसा में कैंसर तेजी से फैल रहा है। काला पीलिया का तो सही सरकारी आंकड़ा ही नहीं है। 


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Isha

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