जाटों के विरोध का मर्ज दूर नहीं कर पाई ‘डॉक्टर मनोहर’ की डोज

2/8/2018 1:12:50 PM

अम्बाला(ब्यूरो): अमित शाह की 15 फरवरी को जींद में प्रस्तावित रैली के समानांतर रैली कर, विरोध जताने का अलख जगा चुके जाट नेता अपने कदम वापस लेने को तैयार नहीं हैं। सरकार ने जाटों के दबाव में आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज हुए केसों में से 70 केस वापस लेकर जाटों को मनाने का प्रयास किया है, परंतु जाट अब उस दौरान हुए समझौते की सभी शर्तों को मनवाने के लिए पूरा दबाव बना रहे हैं। जाटों के विरोध को देखते हुए सरकार के पसीने छूटे हुए हैं। दूसरी ओर गैर-जाट नेता सरकार के इस फैसले से पूरी तरह नाखुश नजर आ रहे हैं। सरकार के इस निर्णय से कई भाजपा नेता शाह की रैली से किनारा कर सकते हैं।

वर्ष 2016 में आरक्षण की मांग को लेकर प्रदेश के जाटों ने आंदोलन शुरू किया था। बाद में इस आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया था। तोडफ़ोड़ और आगजनी की घटनाओं से 800 करोड़ से अधिक की संपत्ति खाक हो गई थी। प्रदेश के करीब एक दर्जन जिलों में सैंकड़ों लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए गए थे। जाट नेताओं से बातचीत के बाद सरकार ने 153 केस पहले ही वापस ले लिए थे। अब जाट नेताओं ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए घोषणा की हुई है कि अमित शाह की रैली के समानांतर रैली जींद में ही की जाएगी, जिसमें प्रदेश भर से जाट ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर जींद पहुंचेंगे। अगर जाट नेता अपनी घोषणा पर डटे रहे, तो शाह की रैली में अड़चनें आना तय है। साथ ही व्यवस्था संभालना सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर देगा। 

जाट नेताओं के इस रुख को देखते हुए सरकार ने 70 केस वापस लेने का निर्णय लिया है। इन केसों से 822 आरोपियों को राहत मिलेगी। सरकार का यह कदम जाटों का विरोध शांत करने की दिशा में उठाया गया माना जा रहा है। सरकार के इस कदम को जाट नेता पर्याप्त नहीं मान रहे। वे हर हाल में समानांतर रैली करने की बात पर अडिग हैं। उनकी मांग है कि जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान सरकार ने जो समझौता किया था, उसकी सभी शर्तों को पूरा किया जाए। सिर्फ केस वापस लेना पर्याप्त नहीं है। सरकार अपने इस निर्णय से दोराहे पर खड़ी नजर आ रही है। एक ओर से निर्णय से वह जाट नेताओं को मनाने में विफल रही है, वहीं उसने अपनी ही पार्टी के गैर-जाट नेताओं को नाराज करने का काम किया है। 

भले ही कई गैर-जाट नेता खुलकर नहीं बोल रहे हैं, लेकिन उनका मानना है कि सरकार ने दबाव के आगे घुटने टेकने का काम किया है। इससे ‘डंडे का दबाव’ सरकारों को ऐसे ही झुकाने का काम करेगा। यह परिपाटी ठीक नहीं है। जिन लोगों का भारी नुक्सान हुआ है, उन लोगों की भावनाओं को सरकार के इस कदम से ठेस पहुंची है। ऐसे कोई भी समुदाय सरकार को दबाकर कानून के साथ खिलवाड़ कर सकता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अमित शाह की रैली की तैयारियों में जुटे कई गैर-जाट नेताओं का जोश सरकार के इस निर्णय से ठंडा पड़ गया है।

कई गैर-जाट नेता रैली से किनारा भी कर सकते हैं। साथ ही गैर-जाट तबके के आम लोग भी सरकार के इस निर्णय से नाराज नजर आ रहे हैं। इससे शाह की रैली की सफलता पर सवालिया निशान लग गया है। सरकार की स्थिति यह है कि गैर-जाटों की नाराजगी मोल लेने के बावजूद वह जाट नेताओं को मनाने में कामयाब नहीं हो पाई है। जाट नेता यशपाल मलिक साफ कर चुके हैं कि जब तक समझौते की सभी शर्तें पूरी नहीं होंगी, तब तक वे अपना विरोध वापस नहीं लेंगे। ऐसे में सरकार की जान सांसत में दिखाई दे रही है। जाटों को मनाने के लिए सरकार की ओर से प्रयास लगातार जारी हैं। देखना यह होगा कि खट्टर सरकार रैली में संभावित व्यवधान को रोकने के लिए क्या कदम उठाती है। 

मुसीबत में फिर फंसी सरकार 
जाटों ने न सिर्फ जींद को सील करने की चेतावनी दी है, बल्कि दक्षिणी हरियाणा से रैली में आने वाले कार्यकर्ताओं को रोहतक और भिवानी में रोकने की योजना बना रहे हैं। ऐसे में रैली की सफलता पर तो सवाल उठ ही रहे हैं, साथ ही शांति व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती भी खड़ी हो गई है। जाटों की चेतावनी को गंभीरता से लेते हुए पुलिस विभाग ने कर्मचारियों की छुट्टियां तक रद्द कर दी हैं। 

राजकुमार सैनी, सांसद, कुरुक्षेत्र
सरकार को जाटों के डंडे का डर सता रहा है। अगर ऐसे ही केस वापस लिए गए, तो कानून का मजाक बन जाएगा। सरकार के इस निर्णय से उन लोगों को गहरी ठेस पहुंची है, जिनके घर जला दिए गए थे। यह सरकार जाटों की धमकियों के सामने नतमस्तक हो चुकी है। 

यशपाल मलिक, जाट नेता
सरकार ने जाटों के साथ किए गए समझौते को पूरी तरह लागू नहीं किया है। सिर्फ केस वापस लेने से बात नहीं बनने वाली। अगर सरकार समझौते की सभी शर्तों को नहीं मानती है, तो अमित शाह की रैली का खुलकर विरोध किया जाएगा।    

सुभाष बराला, अध्यक्ष, भाजपा हरियाणा
सरकार ने यह केस पिछले समझौते के आधार पर वापस लेने का निर्णय लिया है। लोकतंत्र में आंदोलन करना सभी का अधिकार है, लेकिन कानून हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं है। रैली की तैयारियां जोरों पर है। इसमें व्यवधान डालने वालों के खिलाफ कानून अपना काम करेगा।