स्टाफ की कमी के चलते डिलीवरी हट का निकला दम

12/18/2017 2:08:11 PM

भिवानी(पंकेस):करीब 12-13 वर्ष पहले ग्रामीण इलाकों में गर्भवती महिलाओं के लिए बनाई गई डिलीवरी हट का दम निकल गया है। स्टाफ की कमी व सुविधाओं के अभाव में डिलीवरी हट की बजाय महिलाओं को डिलीवरी के लिए शहर व कस्बों के अस्पतालों के लिए रैफर करना पड़ रहा है। हालांकि कहने को पी.एच.सी. केंद्रों में डिलीवरी हट के नाम पर लेबर रूम(प्रसूति कक्ष) बनाए गए हैं लेकिन जब किसी को जरूरत पड़ती है तो इन केंद्रों पर ताला लटका मिलता है या फिर कर्मचारी न होने की बात कहकर महिलाओं व तिमारदारों को वापस भेज दिया जाता है।

सूत्र बताते हैं कि सरकार ने करीब वर्ष 2004-05 में बड़े गांवों में पी.एच.सी. केंद्रों में डिलीवरी हट बनाए थे। ताकि प्रसूति के दौरान बच्चे का जन्म कराया जा सके। कुछ दिनों तक इन डिलीवरी हट पर स्टाफ भी पूरा तैनात रहा। महिलाओं को सुविधाएं भी मिली लेकिन उसके कुछ दिनों बाद इन डिलीवरी हट के दुॢदन का दौर शुरू हुआ। अब अधिकांश प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डिलीवरी हट के नाम पर केवल भवन ही दिख रहे हैं। उन भवनों की हालत भी जर्जर हो चली है। उसके बाद किसी भी अधिकारी ने इन डिलीवरी हट की सुध नहीं ली। 

स्टाफ का टोटा, एम्बुलैंस की सुविधा नहीं
बताते है कि प्राइमरी हैल्थ सैंटरों पर एक-एक महिला कर्मचारी तैनात है। उक्त महिला कर्मचारी की दिन में भी डयूटी और रात को डिलीवरी हट पर डयूटी देनी पड़ती है। इनके अलावा यहां पर ओर कोई महिला कर्मचारी तैनात नहीं है। कई बार रात के समय में डिलीवरी के लिए महिला आ जाती है तो डिलीवरी हट में कोई सुविधा न होने की वजह से महिला कर्मचारी को सिवाय रैफर करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता। चूंकि डिलीवरी के लिए कम से कम 2 महिला कर्मचारियों की जरूरत होती है। कई दफा महिला चिकित्सक की भी जरूरत पड़ जाती है तो ऐसे में वहां पर केवल एक ही महिला कर्मचारी होती है। दूसरी तरफ किसी भी पी.एच.सी. में कोई एम्बूलैंस की सुविधा नहीं है। अगर कोई एमरजैंसी हो जाए तो महिला को बड़े अस्पताल में ले जाने की कोई सुविधा नहीं है। जिसके चलते डिलीवरी हट केवल कहने के ही महिलाओं की सुविधाओं के लिए बने हैं

सास या ननद को ले जाना पड़ता है साथ नाम न छापने की शर्त पर एक महिला कर्मचारी ने बताया कि डिलीवरी हट पर केवल एक महिला कर्मचारी को तैनात किया जाता है। कई दफा रात को कोई महिला डिलीवरी के लिए आती है तो उनको बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता है। कई बार उनको अपनी सास या ननद को अपने साथ डिलीवरी कक्ष में ले जाना पड़ता है। चूंकि कोई भी एक महिला कर्मचारी किसी महिला की डिलीवरी नहीं करवा सकती। इस कार्य में 2 से 3 महिला कर्मचारियों की जरूरत पड़ती है। पर किसी भी डिलीवरी हट या पी.एच.सी. में यह सुविधा नहीं है। वहीं एक महिला कर्मचारी ने बताया कि वह महिला कर्मचारियों की मांग को लेकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल से 3 बार मिल चुकी है। उनको हर बार कर्मचारियों की भर्ती करने का आश्वासन दिया जाता है लेकिन आज तक कर्मचारी भर्ती नहीं किए गए हैं। जिसके चलते स्टाफ की कमी बनी हुई है

डिलीवरी हट से बेहतरीन है घर पर डिलीवरी
महिला कर्मचारियों ने बताया कि किसी भी डिलीवरी हट में सुविधाएं नहीं हैं। बिजली व जनरैटर की कोई सुविधा नहीं है। कहीं पर जनरैटर रखा है तो उसमें तेल नहीं होता। अगर रात को डिलीवरी के वक्त बिजली चली जाए तो प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं है। कई बार उनके मोमबत्ती के उजियारे में महिला की डिलीवरी करवानी पड़ती है। इससे ज्यादा सुविधाएं तो महिलाओं को अपने घर पर ही डिलीवरी करवाने में मिल जाती हैं। 

मोबाइल की टार्च से डिलीवरी
एक नजदीक गांव में हर माह करीब 20 से 22 महिलाओं की डिलीवरी होती है। यहां पर बनी डिलीवरी हट में बिजली की तो सुविधा है लेकिन बिजली के कट लगने के बाद रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है। बताते हैं कि विगत में एक डिलीवरी के वक्त बिजली का कट लग गया और लेबर रूम में अंधेरा हो गया। कई डिलीवरी हट तो ऐसे हैं जहां पर बिजली की कोई सुविधा ही नहीं है। जिसके चलते महिला कर्मचारियों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है।