भारतवर्ष ऋषियों मुनियों व यतियों का देश हैं, वैदिक काल से गुरु परम्परा का होता निर्वाहन: डा रमनीक
punjabkesari.in Friday, Nov 07, 2025 - 09:36 PM (IST)
चंडीगढ (चन्द्र शेखर धरणी) : पंजाब यूनिवर्सिटी के गोल्डन जुबली सभागार में हिंदी विभाग द्वारा प्रोफेसर लक्ष्मी नारायण शर्मा जी की संस्मृति में आयोजित दो दिवसीय सेमिनार के प्रथम वक्तव्य के रूप में सद्भावना दूत भागवताचार्य स्वामी डा रमनीक कृष्ण जी महाराज ने गुरु परम्परा पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा के भारतवर्ष ऋषियों मुनियों व यतियों का देश हैं। यहां पर वैदिक काल से गुरु परम्परा का निर्वाहन होता आया है। महर्षि वेदव्यास जी ने वेदों को चार भागों में बांटा ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। एक एक वेद के एक के शिष्य बनाएं पैल, जेमिनी, वैशंपायन व सुमन्तु। पांचवां वेद महाभारत को माना जिसके शिष्य के रूप के लोमहर्षण जी को महाभारत के संपादन का कार्य दिया। इन चारों शिष्यों ने गुरु परम्परा का पूर्णतः निर्वहन करते हुए इसे आगे बढ़ाया।
भागवत महापुराण के तृतीय स्कंध में देवहूति कर्दम उपाख्यान में देवहूति अपने पुत्र कपिल मुनि को अपना गुरु मानकर उनसे परम पावन नवधा भक्ति का उपदेश ग्रहण करती है। उसी भक्तिपथ पर चलकर देवहूति साक्षात भगवान का साक्षात्कार करती हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र की पावन भूमि में अर्जुन को वह दिव्य ज्ञान प्रदत्त करते हैं, उसी पावन ज्ञात को ग्रहण कर शोक में डूबे हुए निराश शोक में डूबे हुए अर्जुन को युद्ध करने की प्रेरणा जागृत होती है। वहीं भगवान श्रीकृष्ण भागवत के द्वादश स्कंध उद्धव को सद्गुरु रूपी ज्ञान प्रदत्त करते हुए कहते हैं के हे उद्धव! संसार की जितनी आसक्तियां हैं उन समस्त आसक्तियों का नाश केवल ओर केवल सत्संग से हो सकता है। गुरु परम्परा का पूर्ण निर्वहन करते हुए भगवान श्री राम वशिष्ठ जी की शिक्षाओं पर चलते हुए मर्यादापुरुषोत्तम राम बनें। साहित्यिक जगत में साहित्य का सृजन गुरु के बिना संभव नहीं। आज भी हमारे भारतवर्ष में इन परम्पराओं को परम्परागत रूप से निर्वहन होना अत्यधिक आवश्यक है। गुरु परम्परा रहेगी तब ही हम अपने जीवन में भौतिकवाद के साथ साथ अध्यात्म मार्ग को सम्यक रूप से पुष्ट कर सकेंगे। इस साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन शनिवार 8 नवंबर तक रहेगा।।