रेबीज वैक्सीन को मसल्स में लगाया तो स्वास्थ्यकर्मी पर होगी कार्रवाई

7/17/2018 8:48:31 AM

फरीदाबाद(सुधीर राघव): राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम एवं डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों को ताक पर रखते हुए रैबीज वैक्सीन इंट्रा मस्कुलर यानी की मरीज के मांस में लगाए जाने पर स्वास्थ्य कर्मी के खिलाफ कार्रवाई होगी। फरीदाबाद बीके जिला अस्पताल की तरह ही सभी सरकारी एवं निजी अस्पतालों में भी रैबीज वैक्सीन मरीज की चमड़ी में ही लगाए जाएंगे। इसके निर्देश स्वास्थ्य विभाग और डब्ल्यूएचओ ने जारी कर दिए हैं। अभी तक शहर के अस्पतालों में रैबीज वैक्सीन मरीज के मसल्स में ही लगाए जाते थे। 

प्रदेश में सबसे ज्यादा डॉग बाइट के केस फरीदाबाद में ही होते हैं। कुत्ते के काटने से रैबीज होने की संभावना अधिक रहती है। समय पर एंटी रैबीज वैक्सीन न लगाने पर मरीज की मौत तक हो जाती है। यह वैक्सीन अभी तक मरीज को इंजेक्शन के द्वारा मसल्स में लगाई जाती थी। इसे इंट्रा मस्कुलर कहते हैं। 

राष्ट्रीय रैबीज नियंत्रण कार्यक्रम के तहत अब देशभर के डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को दिशा निर्देश दिए गए हैं। कि डॉग बाइट के केस में मरीज को अब वैक्सीन इंट्रा मस्कुलर नहीं दी जाए। इसकी जगह मरीज को इंट्रा डर्मल यानी की चमड़ी में ही इंजेक्शन लगाया जाए। ऐसा नहीं करने वाले डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों पर अब स्वास्थ्य विभाग द्वारा कार्रवाई की जाएगी। 

इससे पहले यह वैक्सीन कुत्ता काटने पर मरीज के मांस में इंजेक्शन द्वारा दी जाती थी। इंजेक्शन की निडील मांस में चुभाई जाती थी। इसके बाद धीरे-धीरे वैक्सीन का डोज दिया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब इंजेक्शन चमड़ी में ही लगाया जाएगा। 

इंट्रा मस्कुलर लगाने में डोज कम हो जाने की रहती है संभावना: 
एआरवी को इंट्रा मस्कुलर लगाने से सबसे बड़ी समस्या यह है कि वैक्सीन पूरा 0.5 एमएल डोज मांस में ही जाना चाहिए। अगर इंजेक्शन में यह थोड़ा कम हो गई या हवा निकालने में कम हो गई तो यह बेमतलब हो सकती है। वैक्सीन को चमड़ी में लगाना, मसल्स में लगाने से बहुत कम कष्टकारी होता है। जबसे एआरवी चमड़ी में लगाई जाने लगी, तबसे बच्चें भी बड़ी ही आसानी से वैक्सीन लगवा रहे है। इसके अलावा मरीज की चमड़ी में एआरवी देने से यह जल्द असर भी करने लगता है। 

Rakhi Yadav