छेद भरने के लिए मासूमों के दिल को खोलने की जरूरत नहीं

10/27/2015 9:59:22 PM

फरीदाबाद, (ब्यूरो):  बड़ी उम्र में होने वाली जीवनशैली की बीमारी अब मासूम बच्चों को भी अपने घेरे में ले रहा है। यहां तक कि नवजात बच्चें भी दिल में छेद के साथ पैदा हो रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ी परेशानी छोटे से दिल को खोलकर उसे ठीक करने में होती है। विशेषज्ञ डॉक्टरों के लिए भी यह एक बड़ी चुनौती होती है,लेकिन ऐसी बीमारी से पीड़ित बच्चों के माता-पिता के लिए एक अच्छी खबर है। अब दिल में छेद का, बिना सर्जरी इलाज संभव है। एंजियोप्लास्टी की तरह ही पैर की नस के सहारे दिल तक पहुंच कर छेद को एक डिवाइस से बंद कर दिया जाता है। इससे बच्चे को जल्द ही फायदा मिलता है और उसे अस्पताल से भी जल्दी छुट्टी मिल जाती है।

दिल में छेद पैदाइशी बीमारी  
मैक्स अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट एवं कैथलैब के निदेशक डॉ विवेका कुमार ने बताया कि बच्चों के दिल में छेद होना पैदाइशी बीमारी है। अभी तक दिल के छेद को बंद करने के लिए सर्जरी की जाती है, लेकिन अब बिना सर्जरी छेद को बंद करना संभव है। पैर की नस के सहारे एक तार डालकर दिल तक पहुंचा जाता है। इसके बाद दिल के छेद को एक डिवाइस से ढंक दिया जाता है। इस सर्जरी के परिणाम बहुत अच्छे आ रहे हैं। इसलिए सभी कार्डियोलॉजी सेंटर में इसी तकनीक से बच्चों की सर्जरी को प्राथमिकता दी जा रही है। इंडियन हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ केके  कालरा ने बताया कि दिल की धडक़न बढऩे की बीमारी (टैकीकार्डिया) से परेशान मरीजों में रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन भी कारगर तकनीक साबित हो रही है। इससे टैकीकार्डिया के मरीजों को स्थाई इलाज मिल जाता है। डॉ कालरा के मुताबिक दिल की धडक़नें बढऩे की बीमारी महीने, दो महीने या चार महीने में होती है और धडक़न 200 से 250 प्रति मिनट हो जाती है। ऐसे में अस्पताल पहुंचने पर मरीज को तुरंत इंजेक्शन से दवा देनी होती है। इसके बाद उसे पूरी उम्र दवा खानी पड़ती है। जबकि रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन में दिल की धडक़न जहां से शुरू होती है, उस नर्व को फ्रीज कर दिया जाता है। इससे धडक़नें बढऩे की संभावना नहीं होती।