दिल्ली की शिक्षा नीति: दावे बनाम वास्तविकता

punjabkesari.in Friday, Jan 31, 2025 - 05:25 PM (IST)

गुड़गांव ब्यूरो : दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था की वास्तविक स्थिति और सरकार के दावों के बीच के अंतर को उजागर करने के लिए एक पत्रकार वार्ता का आयोजन मारिगोल्ड हॉल, इंडिया हैबिटेट सेंटर में शाम 5 बजे से 6 बजे तक किया गया। इसमें जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया के शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया। इस दौरान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के सामाजिक विज्ञान संकाय के सहायक प्रोफेसर, डॉ. शुभ गुप्ता ने एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया, जिसमें दिल्ली सरकार की शिक्षा संबंधी नीतियों और जमीनी हकीकत के बीच गंभीर असमानताएं उजागर हुईं।

 

अन्यायपूर्ण संसाधन वितरण और बजटीय कटौती

दिल्ली सरकार यह दावा करती है कि उसका 25% बजट शिक्षा के लिए आवंटित किया जाता है, लेकिन अध्ययन में सामने आया कि शिक्षा के लिए दी जाने वाली धनराशि का समान रूप से वितरण नहीं किया जा रहा है। दक्षिण पश्चिम ए (South West A) जैसे संपन्न जिलों को प्रति छात्र अधिक अनुदान मिलता है, जबकि करोल बाग (अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्र), ओखला और बल्लीमारान (मुस्लिम बहुल क्षेत्र) जैसे वंचित इलाकों में शिक्षा के लिए वित्तीय संकट बना हुआ है। कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों को अधिक बजट आवंटित किया गया है, जबकि घनी आबादी वाले और हाशिए पर बसे समुदायों के जिलों को अपेक्षाकृत कम वित्तीय सहायता दी जा रही है।

 

2024-25 के लिए शिक्षा पूंजीगत व्यय में ₹543 करोड़ की कटौती के कारण पिछड़े जिलों में अवसंरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) परियोजनाएं ठप पड़ी हैं।

RPVV को SOSE में परिवर्तित करने के प्रभाव

मार्च 2021 में राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालयों (RPVV) को स्कूल ऑफ स्पेशलाइज़्ड एक्सीलेंस (SOSE) में पुनर्गठित किया गया।

इस प्रक्रिया ने सरकारी स्कूलों के छात्रों की तुलना में निजी स्कूलों के छात्रों को अधिक लाभ पहुंचाया।

SOSE स्कूल GFR (जनरल फाइनेंशियल रूल्स) का पालन नहीं करते, जिससे वित्तीय जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।

2022 से 2023 के बीच शिक्षकों के वेतन व्यय में 36% की गिरावट आई, जिससे शिक्षकों की भारी कमी होने की संभावना है।

सुरक्षा और स्वच्छता बजट में कोविड महामारी के दौरान अभूतपूर्व वृद्धि हुई, लेकिन उसके बाद सुरक्षा पर खर्च 26% और स्वच्छता पर 16.3% तक घटा दिया गया।

कोविड के दौरान जब स्कूल बंद थे, तब भी सेनिटाइज़र और मास्क की खरीद के लिए स्वच्छता बजट के अन्य बजटों से धनराशि ली गई, जिससे अनियमितता की संभावना है।

 

छात्रों की शिक्षा से व्यवस्थित बहिष्करण

2023-24 में कक्षा IX से X तक छात्रों का ड्रॉपआउट दर 44% रहा, जिससे संकेत मिलता है कि कमज़ोर छात्रों को सुनियोजित तरीके से बाहर किया जा रहा है।

कमजोर छात्रों को मुख्य धारा की शिक्षा से पटराचर विद्यालय और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (NIOS) में स्थानांतरित किया जा रहा है, ताकि X और XII कक्षा की परीक्षा के उत्तीर्ण प्रतिशत को कृत्रिम रूप से बढ़ाया जा सके।

NIOS में नामांकन पिछले एक दशक में 12.5 गुना बढ़ा है, जो मुख्यधारा की शिक्षा में गहरे संकट को दर्शाता है।

अनुसूचित जाति (SC) के छात्रों का प्रतिशत 2014 में 16.5% था, जो 2024 में घटकर 12.5% रह गया, जिससे SC छात्रवृत्ति कार्यक्रमों की असफलता उजागर होती है।

 

मासिक धर्म अनुपस्थिति और बुनियादी सुविधाओं की कमी

कुछ सरकारी स्कूलों में मासिक धर्म के दौरान 40% छात्राएं अनुपस्थित रहती हैं, और जिन स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं, वहां अनुपस्थिति दर 65% तक पहुंच जाती है।

यह दर्शाता है कि सरकारी स्कूलों में मूलभूत स्वच्छता सुविधाएं अभी भी अपर्याप्त हैं।

 

खेल और छात्रवृत्ति योजनाओं में वित्तीय अनियमितता

स्कूलों में खेल के मैदानों का आकार कम किया जा रहा है, जिससे खेल गतिविधियों पर बुरा असर पड़ रहा है और समय - समय पर खेल के मैदान छोटे होने के कारण तनाव की स्थिति पैदा होती रहती है ।

" Cash Incentives to the Outstanding Players/Sportsman and Rajiv Gandhi Sport Award – Rewards" योजना के तहत ₹13-14 करोड़ खर्च होने के बावजूद, खिलाड़ियों को मात्र ₹12 लाख आवंटित किए गए। 2023 में इस योजना का कोड बदल दिया गया, जिससे धन के दुरुपयोग की आशंका और बढ़ जाती है।

दिल्ली सरकार के दावों और जमीनी हकीकत के बीच बड़ा अंतर है। इस रिपोर्ट के निष्कर्ष शिक्षा प्रणाली में समावेशिता और गुणवत्ता को बहाल करने के लिए तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता को उजागर करते हैं, विशेष रूप से वंचित समुदायों के छात्रों के लिए।


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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