मोटिवेशनल स्पीकर डॉ. विवेक बिंद्रा : भागवत गीता सिर्फ एक धार्मिक किताब नही है
punjabkesari.in Tuesday, Jul 25, 2023 - 06:04 PM (IST)

गुडगांव ब्यूरो : ख़ुशी क्या है? हम सब ख़ुशी को अपने पिछले अनुभवों और आकाँक्षाओं के अनुसार बयान करते हैं। कोई कहेगा बहुत सारा पैसा ख़ुशी है, कोई एक स्वस्थ शरीर को ख़ुशी कहेगा और शायद कोई अपने परिवार को ख़ुशी का स्रोत बताएगा। दरअसल हम में से कोई भी नहीं जानता कि असली ख़ुशी है क्या। हम सब उस अंधे लोगों की कहानी जी रहे हैं जो नहीं जानते थे कि एक हाथी कैसा होता है। किसी ने उसकी सूंड को छू कर देखा तो कहा कि हाथी एक पाइप जैसा होता है, वहीँ दुसरे ने उसे एक ड्रम जैसा बताया जब उसने हाथी के पेट को छूआ। उसी प्रकार किसी को नहीं पता कि असली ख़ुशी क्या है, लेकिन हर कोई उसे पाना चाहता है। ऐसी ही है ज़िंदगी। काश इस ज़िंदगी को समझने की कोई कुंजी होती!
दरअसल एक ऐसी कुंजी है जो कि स्वयं भगवन श्री कृष्णा ने हमें दी है। हम सब उसे भगवद गीता के नाम से जानते हैं जो कि प्रभु श्री कृष्णा का कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडव राजकुमार अर्जुन को दिया हुआ एक दिव्य प्रवचन है। भगवद गीता एक प्राचीन वेद है जिसमें कि 700 श्लोक हैं। हम सभी ज़िंदगी में कभी ना कभी किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाते हैं जिस में से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, फिर चाहे वो कोई पारिवारिक समस्या हो, हमारे दोस्तों से सम्भंदित हो या फिर व्यापर से। भगवद गीता हमें ना सिर्फ उस परिस्थिति से बाहर निकलने का रास्ता दिखाती है बल्कि हमें एक खुश, संतुष्ट और आनंदमय मानसिक स्थिति भी प्रदान करती है।
तो चलिए भगवद गीता के प्रथम श्लोक को समझने का प्रयास करते हैं।
धृतराष्ट्र उवाच -
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव: ।
मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ।। १।।
धृतराष्ट्र कहते हैं: हे संजय मेरे और पाण्डु के पुत्र कुरुक्षेत्र की पावन धरती पर युद्ध करने की मंशा से एकत्रित हुए हैं, मुझे बताओ की वहां उन्होंने क्या किया। इस श्लोक में धृतराष्ट्र व्यास शिष्य संजय से अपनी अलौकिक दृष्टि से देख कर महाभारत के मैदान में हो रहे युद्ध का वर्णन करने को कह रहे हैं।
धृतराष्ट्र की कुनबा परस्ती और पक्षपात वाली सोच का इसी बात से पता चलता है कि उन्होंने बजाय यह कहने के कि हमारे पुत्रों ने क्या किया यह कहा कि मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया। वे एक अनिर्णायक व्यक्ति थे और शायद महाभारत के उस युद्ध का सबसे बड़ा कारण भी। ज्योतिषियों ने उन्हें पहले ही बता दिया था कि इस युद्ध में उनके सभी 100 पुत्र मारे जायेंगे, पर उन्होंने उसे रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। अगर वह चाहते तो श्री कृष्णा के साथ युधिष्ठिर और पांडवों में से किसी वरिष्ठ व्यक्ति को अपने पास बुला कर किसी संधि समझौते का प्रयास कर सकते थे। लेकिन उन्होंने वो भी नहीं किया। कह सकते हैं की धृतराष्ट्र यथास्थिति के जाल में कैद थे। हम में से भी बहुत लोग इस जाल में कैद रहते हैं, जब हम वक़्त रहते सही निर्णय नहीं ले पाते और जिसके कारण हमें नुकसान या हानि हो जाती है। अगर आपके पास ताकत है तो उसका सही समय रहते, सही और न्यायसंगत तरीके से इस्तमाल करना चाहिए। समस्याओं को कालीन के नीचे छुपा देने की मानसिकता गलत है।
हमेशा और हर क्षेत्र में यही होता है जब प्रतिभा के बजाए भाई भतीजावाद को बढ़ावा दिया जाता है फिर चाहे वो राजनीती हो, व्यापार हो या फिर मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री। किसी को बढ़ावा देना है तो एक काबिल व्यक्ति को दीजिये। सिर्फ इसलिए किसी को उठा कर ऊंची गद्दी पर बिठा देना कि उसके पास किसी प्रभावपूर्ण व्यक्ति का उपनाम है अनुचित है। बैद्यनाथ इंडस्ट्रीज इस सोच का एक अच्छा उदहारण हो सकता है जहां कि पांच भाइयों को बिना काबिलियत का इम्तिहान लिए पांच अलग अलग शाखाओं को चलाने का जिम्मा दे दिया गया और अब वो सब अपनी अपनी शाखा को अपने मुताबिक चला रहे हैं। एक और समुचित उदहारण हो सकता है दुबई और सिंगापुर जैसे देशों का। वह देश सब कुछ खुद करने का प्रयास करने के बजाए अच्छे और काबिल व्यक्ति को अपने यहां बिज़नेस करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह कुनबा परस्ती और भाई भतीजावाद तो ऐसे है जैसे तीन पीढ़ी का अभिशाप। दादा लगाए, पिता चलाये, और बेटा गँवाए।
महाभारत के युद्ध के लिए धृतराष्ट्र की धर्मपत्नी गांधारी भी उतनी ही जिम्मेदार हैं। उन्होंने भी एक भाग्यहीन उद्योग के नेता वाला काम किया जब उन्होंने अपनी आँखों पर सदा के लिए पट्टी बांध लेने का निर्णय लिया सिर्फ इसलिए क्यूंकि उनके पति नेत्रहीन थे। इसके बजाए उन्हें तो अपने पति की आँखें बनना चाहिए था जिस से की वो समय रहते सही निर्णय ले पाने में सक्षम होते। यह तो ऐसा हुआ जैसे एक उद्योग के दो मालिक हैं और दोनों में एक समान कमी है। किसी भी उद्योग में जब भी कुछ गलत होता है तो सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठा व्यक्ति ही जिम्मेदार होता है। यह उनका काम है की वो एक समर्थ और काबिल व्यक्ति को ही किसी भी नाजुक या गंभीर काम का फैसला लेने की जिम्मेदारी दें।
अनिर्णायक होना, अनैतिक होना, लालची होना, एक काबिल व्यक्ति को पहचान कर उसके काम की उपयुक्त प्रशंसा ना करना, और आ सकने वाली कठिन परिस्थितियों को पहले से ना पहचान पाना ही वह मुख्य कारण हैं जिनकी वजह से किसी भी उद्योग या बिज़नेस का पतन होता है। इसका एक प्रमुख उधारण एनरॉन नामक एक अमरीकी कंपनी का हो सकता है। 2001 की शुरुआत में वो कंपनी सालाना तकरीबन 8 लाख करोड़ रूपए की कमाई कर रही थी और उसी साल के अंत तक वो कंपनी दिवालिया हो गयी, सिर्फ अपने धूर्त और अनैतिक प्रभंदन के कारण।
क्या बनना है यह सीखना है तो भगवन श्री कृष्णा से सीखिए, और क्या नहीं बनना है यह धृतराष्ट्र से।