गाँधी और सांप्रदायिक एकता-हम स्वराज के कितने नजदीक : स्तंभकार अभिषेक गुप्ता

punjabkesari.in Monday, Oct 02, 2023 - 08:08 PM (IST)

गुड़गांव ब्यूरो : राजनीतिक विश्लेषक एवं स्तंभकार अभिषेक गुप्ता गांधी जी के जीवन पर अपने विचार रखते हुए बताया कि 1947 में अंग्रेजी शासन से भारत स्वतंत्र हुआ तब गाँधी जी का मानना था कि भारत को राजनैतिक आजादी तो मिल गई लेकिन शहरों और गांवों की दृष्टि से अभी सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना बाकी है. वास्तविक स्वराज सिर्फ राजनैतिक स्वतंत्रता हासिल करने से नहीं होता है बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता से ही हम स्वराज के समीप पहुँच सकते हैं . हम सभी इस बात से अवगत हैं कि देश स्वतंत्र होने के बाद भी यह चर्चा बार बार होती रहती है कि हम स्वराज के कितने नजदीक हैं ? लोकतंत्र में जनता की शक्ति बढ़नी चाहिए और जनता अपने पैरों पर खड़ी होनी चाहिए  पर जनता परावलंबी बनती चली गई और सत्ता निरंकुश होती गई . नैतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि परिवर्तन जनता के अपने अभिक्रम और प्रयत्न पर निर्भर करते हैं. राजसत्ता अगर अनुकूल हो तो उसे सहायता कर सकती. गाँधी जी का अंतिम राजनैतिक सन्देश यही था कि एक स्वतंत्र समाज में राजनैतिक दलों को जनसेवा के माध्यम के रूप में देखना चाहिए न कि जनता पर शासन करने के अधिकार के रूप में. इसलिए गाँधी जी ने राजनैतिक स्वतंत्रता को पर्याप्त नहीं मानते हुए पूर्ण स्वराज को प्राप्त करना ही देश का लक्ष्य सामने रखा.

 

राजनीतिक विश्लेषक एवं स्तंभकार अभिषेक गुप्ता कहते हैं कि एक दिलचस्प बात है कि समकालीन भारतीय राजनीति में समाजवाद के जनक, स्वतंत्रता सेनानी, कांग्रेस विरोधी राजनीति के अगुआ तथा महात्मा गाँधी के अनन्य शिष्य रहे डॉ. राम मनोहर लोहिया भारत विभाजन के समय युवा थे और देश की स्वतंत्रता और विभाजन के घटनाक्रम को बहुत करीब से देखा और समझा . 1960 में उनकी किताब “Guilty Men of India`s Partition” नाम से प्रकाशित हुई. यह किताब हिन्दी में अनुवाद होकर “भारत विभाजन के गुनहगार” के नाम से उपलब्ध है. जिसमें डॉ. लोहिया ने विभाजन के लिए महात्मा गाँधी को दोषी बिल्कुल नहीं माना है.  बहरहाल, गाँधी कहते हैं, ‘सभी धर्म न्यूनाधिक सच्चे हैं. सबकी उत्पत्ति एक ही ईश्वर से है. फिर भी सब धर्म अपूर्ण हैं क्योंकि वे हमें मनुष्य द्वारा प्राप्त हुए हैं और मनुष्य तो कभी पूर्ण नहीं होता.’ पैगम्बर के प्रति सम्मान भाव के बावजूद गाँधी इस्लामी कहानियों में नैतिक सन्देश खोजने का भी प्रयास करते हैं. उमर के बारे में वे लिखते हैं कि ‘मुझे ऐसी आशंका है कि इस पवित्र और न्यायप्रिय मनुष्य के कार्यों को आम मुसलमानों के सामने विकृत रूप में पेश किया जा रहा है. साम्प्रदायिक सद्भाव का मूल निश्चित रूप से हिन्दू और मुस्लिम एकता है लेकिन हिन्दू और मुसलमान एकता का तात्पर्य केवल हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता से ही नहीं है परन्तु उन सब लोगों के बीच एकता से है जो विश्वास करते हैं कि भारत उनका घर है चाहे वे किसी भी सम्प्रदाय को मानने वाले हों.  

 

राजनीतिक विश्लेषक एवं स्तंभकार अभिषेक गुप्ता कहते हैं कि  इस प्रकार कबीर और गाँधी एक युग-चिन्तक और एक प्रखर व्यक्तित्व् के रूप में अन्यतम हैं. कबीर और गाँधी युग के निर्माता थे. अपने युग और समाज की विषमताओं के प्रति जागरूक रहकर उन्होंने चिरंतन सत्य को व्यक्त किया. उन्होंने जो कुछ कहा निर्भीकता से कहा, मानव कल्याण को ध्यान में रखते हुए कहा और केवल वही कहा जो उनके अन्तः करण ने उन्हें कहने को प्रेरित किया. उन दोनों का उदय उस काल में हुआ था जब हिन्दू और मुसलमानों में अनेक प्रकार के ब्राह्याचार फैले थे. हिन्दू, मुसलमान, ब्राह्मण और शुद्र को एक ही पंक्ति में खड़ा कर उन्होंने युग को मानवता का एक नया सत्य प्रदान किया.  कबीरदास निर्गुण ब्रह्म के उपासक है फिर भी वह “राम” को अपने साधना का माध्यम बनाते हैं . यद्यपि राम दशरथसुत और सगुण साकार हैं फिर भी कबीर निर्गुण राम की साधना पर बल देते हैं, उनका निर्गुण ब्रह्म गुणहीन नहीं बल्कि गुणातीत है जो जगत के कण कण में व्याप्त है . ठीक इसी प्रकार गाँधी भी आत्मा और परमात्मा से सम्बन्ध अनेक विचारों की अभिव्यक्ति की है . इस प्राकर गाँधी और कबीर का समाजशास्त्रीय दर्शन और भक्ति गंध से सुवासित है. शायद कहने की आवश्यकता नहीं है कि उच्च है और दिव्य है . इसलिए कहने की जरुरत नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में गहन सम्मान भाव का अवलंब लेकर G20  सदस्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के करीबन 30 नेता राजघाट पहुँचे जहाँ एक काले संगमरमर का मंच उस स्थान को चिन्हित किया जहाँ महात्मा गाँधी का अंतिम संस्कार किया गया था.


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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