द प्रोटोकॉल’ नलिन सिंह की फिल्म महात्मा गाँधी के वैचारिक पर आधारित
punjabkesari.in Saturday, Nov 20, 2021 - 08:27 PM (IST)

गुड़गांव ब्यूरो: वैचारिक रूप से परस्पर विरोधी फिलॉसफी और गतिशील रूप से लोकतांत्रिक स्थान में सुधार के युग में, नलिन सिंह दर्शकों के लिये एक पीरियड फिल्म, 'द प्रोटोकॉल' लेकर आये हैं। यह फिल्म दो विश्व-प्रसिद्ध नेताओं- महात्मा गाँधी और एडॉल्फ हिटलर के बीच विचारधाराओं के टकराव को उजागर करती है। अभिनेता, सह-निर्माता, पटकथा लेखक और निर्देशक नलिन सिंह ने ‘माई वर्जिन डायरी’, ‘इन्द्रधनुष’, ‘गांधी टू हिटलर’ और ‘ए नाइट बिफोर द सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी कुछ प्रसिद्ध फिल्में बनाई हैं, जिन्हें दर्शकों और इस इंडस्ट्री के समीक्षकों द्वारा काफी पसंद और सराहा गया है। उनका नया प्रोजेक्ट, ‘द प्रोटोकॉल’ एक 25 मिनट की शॉर्ट फिल्म है, जो दिसंबर के मध्य में ओटीटी प्लेटफार्म्स और फिल्म समारोहों में रिलीज होने के लिये तैयार है। महात्मा गाँधी और हिटलर के बीच विचारधाराओं के संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमती कहानी पहले से ही काफी सुर्खियाँ बटोर चुकी हैं।
यह फिल्म भारतीय दर्शकों के लिये है और महात्मा गाँधी के वैचारिक मतभेद पर आधारित है। हाल ही में महात्मा गांधी के मशहूर वैचारिक वक्तव्य पर एक्टर कंगना रनौत का बयान आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि एक दुश्मन आपके एक गाल पर मारे तो दूसरा भी आगे कर देना चाहिये, जोकि उनके ‘अहिंसा’ के मूल सिद्धांत को दर्शाता है। विचारों का अपना स्वरूप पेश करते हुए कंगना ने कहा कि यदि कोई दूसरा गाल आगे बढ़ाता है तो उसे दया या भीख मिलेगी। इस शॉर्ट फिल्म में विचारों के उसी मतभेद को दर्शाया गया है। साथ ही महात्मा गाँधी के जीने के तरीकों के कारणों और विचारों के बारे में बताया गया है, जो उन्होंने पूरी दुनिया को सिखाया।
यह कहानी दो मुख्य किरदारों यानी महात्मा गाँधी और हिटलर के इर्द-गिर्द घूमती है और दिखाती है कि कैसे दोनों ने विभिन्न विचारधाराओं और शासन के तरीकों के माध्यम से दुनिया के एक हिस्से पर राज किया। हिटलर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए, कहानी दिखाती है कि कैसे अपने अंतिम दिनों में उन्होंने ईवा ब्राउन से शादी की और दूसरों के पढ़ने के लिये एक प्रशंसापत्र छोड़ दिया, जो एक पत्र पर लिखा गया था। फिल्म उन परस्पर विरोधी दर्शन के बारे में बात करती है जो दुनिया के दो शक्तिशाली व्यक्ति से जुड़े थे। गांधी जी के पास जहाँ दिमाग की ताकत थी, वहीं हिटलर के पास बंदूकों की ताकत थी।
कहानी वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को चित्रित करती है जो आज भी दो दर्शनों के बीच विभाजित है। जहाँ गाँधी जी जैसे कुछ लोग अहिंसा में विश्वास करते हैं, वहीं हिटलर जैसे अन्य लोग आँख के बदले आँख में विश्वास करते हैं। जहाँ गाँधी जी मन के परिवर्तन में विश्वास करते थे, वहीं दूसरी ओर हिटलर मन को मारने में विश्वास करते थे। यह आगे स्वतंत्रता के बाद के युग के बारे में बात करता है जहाँ महात्मा गाँधी को उनके प्रति लोगों के प्यार और भक्ति के कारण राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाने लगा। इन विरोधाभासी विचारों को एक एंकर ने पॉडकास्ट में सुनाया, जिसने दर्शकों को पूरी विजुअल कहानी पेश कर दी। यह फिल्म विश्व इतिहास और विश्व राजनीति को बदलने वाले युग का एक निष्पक्ष दृष्टिकोण होगा।
फिल्म में सामाजिक संदेश के बारे में बताते हुए नलिन कहते हैं, “यह फिल्म पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक सिद्धांतों के उत्थान का एक सजग प्रयास है, इसलिये अखंड भारत के सपने पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसे सिफे भाईचारे और अपने इतिहास तथा स्वतंत्रता सैनानियों के प्रति सम्मान के माध्यम से हासिल किया जा सकता है। भारत एक बहु-सांस्कृतिक देश है और यहाँ काफी धार्मिक विचार हैं। हमारे स्वंतत्रता सैनानियों के प्रयासों के जरिये लोकतांत्रिक संविधान के सपने को पूरा किया जा सकता है। इस सोच के साथ हमें इसे दुनिया के दर्शकों के बीच कला के माध्यमों के जरिये प्रचारित किया जाना चाहिये। यह फिल्म बदलाव की शुरूआत की दिशा में बढ़ाया गया कदम है।”