ड्राई डीएसआर का उदय: कैसे भारतीय किसान कम लागत में उगा रहे अधिक फ़सल

punjabkesari.in Tuesday, Nov 11, 2025 - 07:43 PM (IST)

गुड़गांव ब्यूरो: पंजाब के एक गाँव में, एक किसान बलदेव सिंह हर साल आने वाली उस चुनौती का सामना कर रहे थे, जिससे हजारों किसान जूझते हैं। मानसून देर से आया था, गाँव के तालाब में पानी सीमित था, और भूमिगत जल पंप करने के लिए बिजली भी निर्धारित समय पर ही मिल रही थी। परंपरागत रूप से, वे धान की पौध को रोपाई के लिए पहले खेत में पानी भरने के लिए बारिश का इंतज़ार करते। लेकिन इस साल, बलदेव ने कुछ नया अपनाया– ड्राई डायरेक्ट सीडेड राइस (DDSR)। पारंपरिक तरीके से नर्सरी में पौधा उगाने और फिर रोपाई करने की बजाय, उन्होंने सूखी, अच्छी तरह से तैयार की गई मिट्टी में सीड ड्रिल की मदद से सीधे धान के बीज बो दिए। कुछ ही दिनों में, खेत में समान रूप से अंकुर निकल आए। उन्होंने पहले की तुलना में प्रारंभ में ही लगभग 30% पानी की बचत की, मजदूरी पर खर्च कम किया, और अपने 4 एकड़ खेत की बुवाई अपने पड़ोसियों से करीब दो हफ्ते पहले पूरी कर ली। 

 

डॉ. सुमंत होल्ला असिस्टेंट जनरल मैनेजर, सीड्स रिसर्च, किसानक्राफ्ट ने बताया "बलदेव का अनुभव इस ओर संकेत करता है कि आज देश भर के किसानों की आवश्यक्ता , सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि धान की खेती का भविष्य बनता जा रहा है–ड्राई डीएसआर। पारंपरिक धान की रोपाई भारत में सबसे पानी और श्रम-गहन कृषि प्रक्रियाओं में से एक रही है। किसान अपने खेतों को हफ्तों तक जलमग्न रखते हैं, और सिर्फ 1 किलो चावल उगाने में लगभग 3,000–5,000 लीटर पानी खर्च होता है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाकों में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है, जिससे यह प्रणाली अब वांछनीय नहीं है। साथ ही, मजदूरी की लागत भी बढ़ रही है, क्योंकि ग्रामीण श्रमिक अन्य व्यवसायों की ओर जा रहे हैं।

 

डॉ. सुमंत होल्ला असिस्टेंट जनरल मैनेजर, सीड्स रिसर्च, किसानक्राफ्ट ने आगे कहा की "ड्राई डायरेक्ट सीडेड राइस (DDSR) एक व्यावहारिक और सिद्ध विकल्प बनकर उभरा है। इस विधि में बीजों को सीधे सूखी, अच्छी तरह तैयार की गई मिट्टी में बोया जाता है, जिसमें न तो नर्सरी की ज़रूरत होती है, न ही खेत की पडलिंग (कीचड़ बनाना)। इससे किसान 50% तक पानी की बचत, 15–20% तक लागत में कमी, और मीथेन उत्सर्जन में भारी गिरावट हासिल कर सकते हैं। यह तरीका फसल चक्र को छोटा करता है, श्रम की आवश्यकता घटाता है, और अगली फसल की समय पर बुवाई को संभव बनाता है। जब इसमें खरपतवार नियंत्रण और पोषक तत्व प्रबंधन को शामिल किया जाता है, तो DDSR पारंपरिक विधियों के बराबर या उससे बेहतर उपज भी दे सकता है। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक भरोसेमंद, सतत और आय बढ़ाने वाला समाधान है। ड्राई डीएसआर के फायदे सिर्फ पानी और श्रम की बचत तक सीमित नहीं हैं। यह विधि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी काफी कमी लाती है, क्योंकि जलमग्न खेतों से निकलने वाली मीथेन गैस लगभग समाप्त हो जाती है। अनिश्चित मानसून वाले क्षेत्रों में, DDSR किसानों को जल्दी बुवाई करने और कम अवधि वाली किस्मों के उपयोग का अवसर देता है, जिससे अगली रबी फसल के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। सबसे अहम बात–कुल लागत घटने के साथ-साथ उपज समान रहने से किसानों को अधिक लाभ होता है। विशेष रूप से छोटे किसानों के लिए, जिनकी आय पहले ही सीमित होती है, यह एक लाभकारी, जलवायु-संवेदनशील समाधान है। भविष्य में, यह तरीका देरी से बुवाई और पराली जलाने की समस्या को भी काफी हद तक समाप्त कर सकता है, जिससे कृषि की सतत क्षमता बढ़ सकती है। फिर भी, इतने स्पष्ट फायदों के बावजूद, भारत में ड्राई डीएसआर को अपनाने की गति धीमी है। कई किसान अब भी घास-फूस (खरपतवार) की समस्या, उपयुक्त किस्मों के चयन, और तकनीकी जानकारी की कमी को लेकर आशंकित हैं। इस विधि में खेत की उचित तैयारी और समय पर जैविक या रासायनिक खरपतवार नियंत्रण ज़रूरी होता है, और यदि समर्थन पर्याप्त न हो, तो छोटे किसान इसे जोखिम भरा मानते हैं। प्रशिक्षण और विस्तार सेवाएँ भी इतनी तेज़ नहीं रही हैं कि इन सफल उदाहरणों को गाँव-गाँव तक पहुँचा सकें।

 

धान की खेती की समस्याओं का समाधान करने के लिए,  ड्राई डीएसआर प्रणाली को लोकप्रिय बनानाहोगा। किसानों को सीधे बुवाई के लिए उपयुक्त बीज, प्रायोगिक प्रशिक्षण, और मैदान स्तर पर प्रदर्शन की जरूरत है। सरकार और संस्थानों को किसान-नेतृत्व वाले पायलट कार्यक्रमों का समर्थन करना चाहिए, जिससे आत्मविश्वास नीचे से ऊपर फैले, न कि सिर्फ नीति-निर्माताओं से नीचे तक। इसके साथ ही, बीज ड्रिल और अन्य यंत्रों को किफायती कीमत पर उपलब्ध कराना या किराए पर देने की व्यवस्था करनी होगी, ताकि छोटे और मध्यम किसान भी इसका लाभ उठा सकें। साथ ही, ऐसे धान के किस्मों पर निरंतर अनुसंधान ज़रूरी है जो खरपतवारों का सामना कर सकें और बदलते मौसम के अनुरूप हों।

 

ड्राई डीएसआर कोई एकमात्र समाधान नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से धान की खेती के सबसे उत्साहजनक नई विधियों में से एक है। यह किसानों को कम संसाधनों में ज्यादा उत्पादन करने की राह दिखाता है – कम पानी, कम श्रम, और कम पर्यावरणीय लागत के साथ। बलदेव सिंह जैसे किसानों का अनुभव यह दिखाता है कि यह पद्धति जमीनी स्तर पर सफल हो सकती है। अब असली ज़रूरत यह है कि इन अलग-अलग सफलताओं को एक व्यापक आंदोलन में बदला जाए। अगर हमको  अपना खाद्य सुरक्षा भविष्य सुरक्षित करना है, साथ ही भूजल की रक्षा, उत्सर्जन में कटौती, और ग्रामीण श्रम पर दबाव कम करना है, तो ड्राई डीएसआर को एक प्रचलित प्रणाली में बदलना ही होगा। नींव तैयार है, अब ज़रूरत है सामूहिक प्रयासों की, जिससे इस परिपाटी को आगे बढ़ाया जा सके।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Gaurav Tiwari

static