गुरुनानक देव जी के बताए इन तीन स्तंभों पर टिका है सिख धर्म : डॉ विवेक बिंद्रा

punjabkesari.in Monday, Nov 27, 2023 - 08:13 PM (IST)

गुड़गांव, ब्यूरो:  सिख धर्म के संस्थापक और उनके पहले गुरु, गुरुनानक देव जी की 554वीं जयंती इस बार 27 नवंबर को मनाई जा रही है जिसे गुरुपर्व भी कहा जाता है। ये वो अलौकिक शक्ति हैं जिन्होंने संसार को सत्य का मार्ग दिखाया, धर्म की इज्जत करना सिखाया और इंसानों को दूसरों की सेवा करने का असली मतलब सिखाया। गुरुनानक देव जी के जन्मदिवस पर लोग अखंड पाठ करते हैं और भूखों को भोजन करवाकर उनके जन्मदिन को मनाते है। आज उनकी 554वीं जयंती जानते हैं कि कैसे वो लोगों के इतना प्रेरणादायी बने।

 


बचपन से ही दिव्य थे गुरुनानक देव जी गुरुनानक देव जी में बचपन से ही दैवीय शक्तियां दिखने लगी थी। चार साल की उम्र से इन्होंने ध्यान लगाना शुरू कर दिया था, छह साल की उम्र तक इन्होंने सारी धार्मिक किताबों को पढ़ लिया था। सात साल का होते होते इन्होंने संस्कृत, हिंदी और पर्शियन जैसी कई सारी भाषाओं को भी सीख लिया था। जिसके बाद आठ साल की उम्र में उन्होंने “इक ओंकार” का संदेश दुनिया भर को दिया था। महान लेखक रवींद्र नाथ टैगोर जी से एक बार किसी ने पूछा कि आपने भारत का नेशनल एंथम लिखा है, लेकिन क्या आप पूरी दुनिया का एक इंटरनेशनल एंथम लिख सकते हैं? इसपर रवींद्र नाथ टैगोर जी ने कहा कि वो तो श्री गुरुनानक देव जी गुरुग्रंथ साहिब में पहले ही लिख चुके हैं। जो कि है “इक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभऊ निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैभम गुर प्रसादि जपु आदि सच जुगादि सच है भी सच नानक होसी भी सच” गुरु नानक देव जी ने दिए हैं सिख धर्म को तीन मजबूत स्तंभ गुरुनानक देव जी ने सिख धर्म को तीन स्तंभ दिए हैं जिनके दम पर आजतक सिख लोग चलते आए हैं और पूरी दुनिया में सिखों के आचरण को आदर्श बनाते रहे हैं। पहला है वंड चखना, दूसरा है कीरत करना, तीसरा और आखिरी है नाम जपना।

 


वंड चखना -

सबसे पहले बात करते हैं पहले स्तंभ “वंड चखना” के बारे में, इसका मतलब होता है कि सभी को साथ लेकर चलना, हमेशा सबका साथ देना। यही कारण है कि सिख धर्म में सेवा धर्म को ही सबसे बड़ा माना गया है। सिखों में लंगर करना एक बहुत बड़ी सेवा मानी जाती है जिसकी शुरुआत खुद गुरुनानक देव जी ने ही की थी। जब वो बारह साल के थे तब उनके पिता ने उन्हें 20 रुपए देकर बाजार भेजा और कहा इससे सामान खरीदना और मुनाफे के साथ बेचकर वापस आना। वो अपने भाई के साथ दूसरे गांव गए जहां उन्होंने देखा कि कुछ लोग बहुत बीमार और भूखे हैं। उन्हें देखकर गुरुनानक देव जी ने अपने सारे पैसे उनके खाने का इंतजाम करने में खर्च कर दिए, जिससे लंगर करने की परंपरा शुरू हुई। घर पहुंचने पर जब उनके पिता ने उनसे पूछा की ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि दूसरों को मदद करने में ही सच्चा सौदा है। आज उसी जगह पर “सच्चा सौदा” नाम का गुरुद्वारा फरुकाबाद पाकिस्तान में मौजूद है।

 


कीरत करना -
दूसरा स्तंभ है “कीरत करना”, इसका मतलब होता है सच्चाई और ईमानदारी। हर एक सिख इस बात का सच्चे दिल से पालन करता है यही कारण है कि आपने कभी भी किसी भी सिख को कभी भी चोरी और बेईमानी करते हुए नहीं देखा होगा। गुरुनानक देव जी अपनी सीख से कई लोगों के हृदय परिवर्तन भी किए हैं। सज्जन सिंह नाम का एक व्यक्ति धर्मशाला चलाया करता था, संत जैसा उसका लिबास था लेकिन असल में वो धर्मशाला में आने वाले लोगों के सामान को चुराया करता था। अगर चोरी करते पकड़ा जाता था तो उस व्यक्ति की हत्या कर दिया करता था। एक बार जब गुरुनानक देव जी उसकी धर्मशाला ने रुके, जब तो ध्यानमग्न थे तो सज्जन सिंह ने उनका सामान चोरी करने की भी कोशिश की। लेकिन जैसे ही उसने सामान चुराने की कोशिश की तो उसे अदृश्य थप्पड़ पड़ने लगे। तब गुरुनानक देव ने कहा कि ईश्वर को कोई धोखा नहीं दे सकता। ये शब्द सुनते ही सज्जन सिंह का हृदय परिवर्तन हो गया और सिख धर्म अपनाकर अपना समस्त जीवन लोगों की सेवा में व्यतीत कर दिया।

 


नाम जपना -

नाम जपना” सिख धर्म का तीसरा स्तंभ है, इसमें सभी को भगवान के दिव्य नामों और मंत्रों का जाप करने को कहा गया है। भगवान का नाम जपने से ही बिगड़े काम भी बन जाते हैं जैसे ही द्रौपदी ने श्रीकृण का नाम लिया था तो ही दुशासन से उनकी रक्षा हो सकी थी। गुरुनानक देव जी की ये बातें अगर आपने अपने जीवन में उतार ली तो आपका जीवन भी सफल हो जायेगा। इस बारे में पूरी वीडियो आप डॉ विवेक बिंद्रा के यूट्यूब चैनल पर जाकर देख सकते हैं।


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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