प्रयास और परिश्रम का अनोखा मिश्रण-मदन पालीवाल की अनुठी जीवनगाथा

punjabkesari.in Monday, Sep 16, 2024 - 08:53 PM (IST)

गुड़गांव,  (ब्यूरो): राजस्थान का सबसे बड़ा स्टेडियम, देश के 33 शहरों में 147 थिएटर, एक बड़ा राजस्थानी खाद्य उद्योग, प्रतिदिन साढ़े तीन लाख किताबें और अन्य सामग्री बनाने वाली एक प्रिंटिंग प्रेस, विभिन्न प्रकार की मशीनरी का एक विनिर्माण संयंत्र, 55000 टन से अधिक के वार्षिक उत्पादन के साथ पीवीसी पाइप और फिटिंग की फैक्ट्री, राजस्थान के प्रमुख शहरों में रियल एस्टेट विकास, एक हजार से अधिक मेहमानों को समायोजित करने की क्षमता का होटल, एक फिल्म निर्माण कंपनी और इन सब के उपर.. भगवान शिव की 369 फीट ऊंची मूर्ति का निर्माण और उससे पर्यटन को मिली गति..मदन पालीवाल का यह करियर आश्चर्यजनक है। खास बात यह है कि उनका जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ और बिना किसी सहारे के केवल कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के दम पर उन्होंने यह सफलता हासिल की।

 

 

मिराज ग्रुप के चेयरमैन मदन पालीवाल, जिन्होने 5000 प्रत्यक्ष कर्मचारियों को रोज़गार प्रदान किया हुआ हैं और कारोबार चलाते हैं, रहते हैं बहुत सरलता से! नाथद्वारा के रहने वाले और अभी भी यहीं रहने वाले पालीवाल को शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी पसंद नहीं। उनके द्वारा बनाई गई गौशालाओं में गायों व नंदी की देखभाल, उन्होने लगाए हुए लाखों पेड़, खेतों की ताजी सब्जियां, स्वच्छ वातावरण, शुद्ध भोजन यही उनका जीवन है। इस जीवन में उन्होंने कितनी मेहनत की, इसकी कोई सीमा नहीं। उनके अनुसार, “जीवन में संघर्ष हर कोई करता है, लेकिन सबको सफलता नहीं मिलती। जो प्रकृति के उपहार, दृढ़ संकल्प और अस्तित्व में श्रद्धा इन पर विश्वास करता है, वह निश्चित रूप से सफल हो जाता हैं”। इन्ही विचारों से उन्होंने अपने जीवन को अर्थ दिया हैं और अपने उद्योगों को बढ़ाया हैं।

 

 

बुनियादी सुविधाओं से वंचित एक छोटे से गांव में मदन पालीवाल ने पढ़ाई की, वह भी गरीबी से जूझते हुए। स्नातक के अंतिम वर्ष में उन्हें छोटीसी सरकारी नौकरी मिल गई और उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। तब तक जो कर सकते थे वह काम करते रहे। अंग्रेजी और गणित में कमजोर होने के कारण उन्होंने स्कूल से ही संस्कृत विषय ले लिया। आज उनसे बात करने समय वे समय-समय पर रामचरित मानस के श्लोक का वर्णन करते हैं और संत कबीर, तुलसीदास के दोहों का उल्लेख करते हैं, उसका कारण हैं उनके पारिवारिक संस्कार और संस्कृत विद्यालयों में हुई शिक्षा।

 

 

नौकरी करते समय वे जिस बस से जाते थे उसमें उनके मित्र ने उन्हें एक दिन तम्बाकू पेश की। मित्र के हाथों में कालापन देख उन्होंने सोचा की क्यों न स्वच्छ तरीके से तम्बाकू बनायीं जाए। यही गंभीर सोच उन्हें आज के इस मुकाम पर ले आई। उस समय, पालीवाल ने ब्याज पर 200 रुपये का ऋण लेकर तंबाकू और चूने का मिश्रण बना कर पनवाड़ी की दुकान पर रखना चालू किया। 80 के दशक में भारत सरकार द्वारा लिए गए मिराज लड़ाकू विमान से प्रेरित होकर उन्होने कंपनी का नाम मिराज रखा। व्यवसाय बढ़ा और बढ़ता ही गया। समय के साथ, उन्होंने तम्बाकू व्यवसाय बंद कर दिया, लेकिन व्यवसाय का मिराज नाम बरकरार रखा। उनके समूह का मिराज नाम आकाश में विमान की छलांग का बोध कराता है और पालीवाल की विशाल यात्रा को भी व्यक्त करता है।

 

 

आज 65 साल की उम्र में मदन पालीवाल अपने बच्चों को बिज़नेस में मार्गदर्शन देते रहते है। बिज़नेस के साथ साथ वे अध्यात्म के लिए भी समय निकालते है। नाथद्वारा में भगवान शंकर की भव्य मूर्ति स्थापित कर उन्होंने अपने गाँव का नाम विश्व मानचित्र पर स्थापित किया है। “यह काम मैंने नही किया, मुझसे विश्वात्मा ने कराया हैं,” ऐसा पालीवाल बडी विनम्रता से कहते हैं। “अगर मै यहां कोई भी उद्योग स्थापित करता, तो उससे केवल रोज़गार पैदा होता; शिव प्रतिमा से लोगों को रोजगार भी मिलता है और पर्यटन को बढ़ावा भी मिलता है। इसके अलावा, मिराज ग्रुप समाज का कर्ज चुकाने में विश्वास रखता हैं और नाथद्वारा को वैश्विक आध्यात्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध बनाना भी लोगों का कर्ज चुकाने का एक तरीका है,'' पालीवाल बताते हैं।

 

प्रसिद्धि की ओर न देखनेवाले पालीवाल राजस्थान में एक सम्मानित व्यक्तित्व हैं। उनके मुख से जो शब्द निकलते हैं, वे खोखले नहीं होते, बल्कि उन शब्दों में अनुभव की, संघर्ष की खनक होती है। इसलिए, “जीवन में कभी हार मत मानना; प्रयास में असफलता आयें तो ये सिद्ध होता हैं की सफलता का प्रयत्न पुरे मन सें नही हुआ। पुनः ठीक तरह से प्रयास करना और करते रहना,” पालीवाल सलाह देते हैं, जो बहुत मूल्यवान है।


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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