3 साल में 14 गुना बढ़े उत्तरी राज्यों में पॉक्सो मामले, हरियाणा में 3 से 1020

7/30/2019 9:52:14 AM

चंडीगढ़ : पिछले कुछ वर्षों में बच्चों के लैंगिक शोषण के मामले देश में काफी तेजी से बढ़े हैं। इनमें उत्तरी राज्यों का भी योगदान कम नहीं है। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, चंडीगढ़ तथा दिल्ली में 2014 में पॉक्सो कानून (प्रोटैक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सैक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट) तहत कुल 348 केस दर्ज थे, जो 2016 में बढ़कर 4,971 यानी 14 गुना से भी अधिक हो गए।

देश में बढ़ती इस समस्या पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते नाराजगी जाहिर करते हुए सरकार को हिदायत दी थी कि 2 महीनों में हर उस जिले में ऐसे मुकद्दमों के लिए स्पैशल कोर्ट स्थापित किए जाएं,जहां 100 से अधिक केस हों। मई 2012 में बने पॉक्सो कानून तहत 2014, 2015 तथा 2016 में हरियाणा में क्रमश: 03, 440 व 1020 केस दर्ज किए गए, जबकि हिमाचल प्रदेश में इनकी वर्षवार संख्या 22, 03, 205 थी। इसी प्रकार पंजाब में 25,18,596, राजस्थान में 191, 222, 1479, चंडीगढ़ में शून्य (0), 01, 51 तथा दिल्ली में संख्या 107, 86,1620 थी।

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) के अनुसार देश में बच्चों के साथ बलात्कार के पंजीकृत केसों की संख्या वर्ष 2009 में 5,484 थी जो 2014 में बढ़कर 13,766 हो गई, यानी 151 प्रतिशत की बढ़ौतरी। एन.सी.आर.बी. ने पॉक्सो तहत डाटा जमा करने का काम 2014 से ही शुरू किया है।

...तो अब तक दर्ज मुकद्दमों को निपटाने में क्रमश: 55 व 101 साल लग जाएंगे
बच्चों के अधिकार व सुरक्षा के लिए काम कर रहे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित ‘कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाऊंडेशन’ (के.एस.सी.एफ.) ने पॉक्सो मुकद्दमों को निपटाने की रफ्तार पर निराशा जाहिर करते हुए कहा कि गुजरात व अरुणाचल में,जहां बैकलॉग बहुत ज्यादा है,यदि यही रफ्तार रही तो अब तक दर्ज मुकद्दमों को निपटाने में ही क्रमश: 55 और 101 साल लग जाएंगे। कुल पंजीकृत केसों के मुकाबले वर्ष 2016 में मुकद्दमे निपटाने की दर मात्र 10 फीसदी थी। दोषियों को सजा सिर्फ 30 फीसदी मामलों में ही मिली। यदि यही रफ्तार रही तो पंजाब तथा नागालैंड जैसे प्रदेशों के मुकद्दमों को 2 साल लगेंगे।

पॉक्सो कानून बनने के पहले बच्चों के  लैंगिक शोषण के मुकद्दमे भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) की 3 धाराओं तहत दर्ज किए जाते थे। बलात्कार धारा 376,महिला के साथ अभद्रता धारा 354 और अप्राकृतिक सैक्स धारा 377 के तहत। वर्ष 2018 में पॉक्सो तथा सी.आर.पी.सी. कानूनों में संशोधन कर प्रावधान किया गया कि ऐसे मामलों में पुलिस जांच 2 महीनों में पूरी होनी चाहिए जबकि मुकद्दमा 6 महीनों में। सुप्रीम कोर्ट ने भी बाद में हाईकोर्टों को निर्देश दिए कि वे ये सुनिश्चित करें कि पॉक्सो केस स्पैशल कोर्टों द्वारा सुने जाएं, कोई स्थगन न हो और जांच के लिए पुलिस प्रमुखों द्वारा विशेष टीमें बनाई जाएं।

मुकद्दमों को निपटाने में देरी की वजह के विषय में नैशनल कमीशन फॉर प्रोटैक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एन.सी.पी.सी.आर.) के सदस्य यशवंत जैन का कहना है कि हर केस को रिपोर्ट करने की कानूनी बाध्यता और लोगों में जगरूकता की वजह से मुकद्दमों की संख्या लगातार बढ़ रही है,जबकि कोर्टों की संख्या काफी कम है। एन.सी.पी.सी.आर. ही पॉक्सो मामलों की निगरानी करती है। इसके अलावा पुलिस जांच, फॉरैंसिक जांच इत्यादि में होने वाली देरी भी काफी हद तक इसके लिए जिम्मेदार है।

Shivam