कोरोना से निपटने में काम आ रहा 123 साल पहले बना कानून, गिरफ्तारी व सजा तक का प्रावधान, जानिए

3/15/2020 3:49:07 PM

चंडीगढ़ (धरणी): विश्व में फैले कोरोना वायरस के आतंक से निपटने में 123 साल पुराना कानून काम आ रहा है, जिसके तहत गिरफ्तारी व सजा तक का प्रावधान है। इस कानून के लागू होने से अगर कोई भी व्‍यक्ति सरकार के आदेशों को नजरअंदाज करता है तो उसपर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान इस कानून के तहत किया गया है। साथ ही आईपीसी की धारा 188 के तहत भी एक अपराध है। ये कानून राज्य एवं केंद्र सरकारों को किसी महामारी के प्रसार को रोकने के लिए अतिरिक्त शक्तियां प्रदान करने वाला है। केंद्र सरकार के निर्देश पर राज्य में इस कानून को लागू किया जा चुका है। इसमें सरकारी आदेश को न मानने पर गिरफ्तारी एवं सजा देने तक का प्रावधान भी है। 

आईए जानते हैं कि एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 के बारे में-
एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा 2 के प्रावधानों को लागू करने का निर्णय कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता में एक समीक्षा बैठक में 11 मार्च को लिया गया था। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 की धारा 2 के प्रावधानों को लागू करने की सलाह दी जानी चाहिए ताकि स्वास्थ्य मंत्रालय की सभी सलाहों को ठीक से लागू किया जाए।

क्या है एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897
इस एक्ट में कुल मिलाकर 4 सेक्शन हैं और संभवत: यह सबसे छोटा एक्ट है। इस एक्ट के सेक्शन 2 में इसे लागू करने के लिए कुछ शक्तियां राज्य और सेक्शन 2 (ए) की शक्तियां केंद्र सरकार को किसी महामारी को दूर करने या कण्ट्रोल करने के लिए दी गई हैं।

एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा-2 में लिखा है,
जब राज्य सरकार को किसी समय ऐसा लगे कि उस राज्य के किसी भाग में कोई खतरनाक महामारी फैल रही है या फैलने की आशंका है, तब राज्य सरकार ये समझती है कि उस समय मौजूद कानून इस महामारी को रोकने के लिए नाकाफी है तो राज्य सरकार कुछ उपाय कर सकती है। इन उपायों में लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम बताए जाते हैं।

इसी एक्ट की धारा 2 बी में राज्य सरकार को यह अधिकार होगा कि वह रेल या बंदरगाह या अन्य प्रकार से यात्रा करने वाले व्यक्तियों को, जिनके बारे में निरीक्षक अधिकारी को ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा और यदि कोई संदिग्ध संक्रमित व्यक्ति है तो उसकी जांच भी किसी निरीक्षण अधिकारी द्वारा करवा सकती है।

एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा-2 (ए) में लिखा है, 
जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फैल चुकी है या फैलने की संभावना है और केंद्र सरकार को यह लगता है कि मौजूदा कानून इस महामारी को रोकने में सक्षम नहीं हैं तो वह (केंद्रीय सरकार) कुछ कड़े कदम उठा सकती हैं। किसी भी संभावित क्षेत्र में आने वाले किसी व्यक्ति, जहाज का निरीक्षण कर सकती है।

एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 की धारा-3 में लिखा है,
इसमें एक सख्त प्रावधान भी है। अगर एपीडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 का सेक्शन 3 लागू हो गया, तो महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा और इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पीनल कोड की धारा 188 के तहत सजा मिल सकती है। इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति इस बीमारी को रोकने के लिए कोई अच्छा कदम उठाता है तो उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी। 

भारत सरकार कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। उम्मीद है कि एपीडेमिक डिजीज एक्ट,1897 के प्रावधान लागू होने से इस बीमारी को देश में फैलने से रोकने में मदद मिलेगी। विश्वस्तर पर सनसनी फैलाने वाले कोरोना वायरस से लोगों में खौफ बना है। केंद्र और राज्य सरकार कोरोना वायरस की रोकथाम को लेकर भरसक प्रयास कर रहे हैं। वायरस के लक्षण दिखाई देने पर मरीजों को चिकित्सा उपलब्ध कराई जा रही है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए चिकित्सा शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। वायरस की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने कड़ी कार्रवाई की है। 

केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास हैं अतिरिक्त शक्तियां 
इस कानून में प्रावधान है कि सरकार किसी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा करने वाले यात्रियों की जांच कर सकती है। इस तरह के वायरस से संदिग्ध शख्स को अलग-थलग किया जा सकता है या तुरंत ही अस्पताल में भर्ती किया जा सकता है। संक्रमण फैलने की आशंका के मद्देनजर ये कानून ऐसे किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार भी देता है।

क्या है जुर्माना लगाने का प्रावधान? 
इस कानून के लागू होने के बाद यदि कोई राज्य, प्रशासनिक अधिकारी या फिर कोई आम आदमी सरकार के आदेशों को नजरअंदाज करता है तो इस कानून के तहत उसपर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। कानून का पालन न करना आईपीसी की धारा 188 के तहत एक अपराध माना जाता है।

Shivam