जसवंती की यातनाओं से तंग आई बेटियों ने उजागर किया ‘सफेद महल का काला सच’
4/28/2018 10:39:32 AM
रोहतक (देवेंद्र दांगी): मई 2012 का वह दूसरा सप्ताह था जब रोहतक स्थित अपना घर से भागने के बाद दिल्ली में पकड़ी गई 3 बच्चियों ने दिल्ली पुलिस एवं राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के सामने अपने साथ हुए जुल्म का दास्तां बताई और उसके बाद पूरी तैयारी करके राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की टीम ने 8/9 मई को अपना घर पर रेड कंडक्ट की थी। अपना घर नाम से बनाई गई इस तथाकथित सामाजिक संस्था को भारत विकास संघ नाम की एन.जी.ओ. चलाती थी, जिसकी कर्ताधर्ता जसवंती की ही टीम थी। बाल संरक्षण आयोग की टीम ने उस रोज छापा मारकर 100 से अधिक छोटी बच्चियों एवं किशोरियों तथा महिलाओं को अपना घर नाम की इस अघोषित जेल से मुक्त करवाया गया था।
डरी-सहमी इन बच्चियों एवं युवतियों को भरोसे में लेकर जब टीम के सदस्यों ने बातचीत की तो बड़ा खुलासा हुआ था कि यहां पर रहने वाली लड़कियों का शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक शोषण भी किया जाता था। इस सनसनीखेज खुलासे के बाद प्रदेश की सियासी फिजां में भी काफी उठापटक हुई और तत्कालीन भूपेंद्र हुड्डा सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच के लिए यह केस सी.बी.आई. को सौंप दिया था। इसके बाद सी.बी.आई. की स्पेशल टीम ने जांच शुरू की और गहराई में जाकर छानबीन कर जसवंती देवी एवं उसके पूरे रैकेट को बेनकाब करते हुए उनके खिलाफ ठोस सबूत जुटाने पर फोकस किया। जांच को गति प्रदान करते हुए सी.बी.आई. ने अगस्त 2012 में इस मामले में चालान पेश किया था जिसमें अपना घर की संचालिका जसवंती को मुख्यारोपी बनाया गया।
उसके समेत करीब 10 लोगों को इस केस में आरोपित किया गया जिनमें जसवंती की बेटी सिमी, जसवंती की सहेली तथा दामाद जयभगवान एवं स्टाफ सदस्यों के अलावा रोहतक की तत्कालीन बाल विकास परियोजना अधिकारी अंग्रेज कौर हुड्डा का भी नाम शामिल था। जसवंती देवी, उसकी बेटी सिम्मी, भाई एवं दामाद तथा कुछ अन्य पर बच्चियों के बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, अनैतिक तस्करी, मारपीट, चोटें मारने, यातनाएं देने, धमकी, छेड़छाड़ करने के अलावा बिना सहमति के लड़कियों का गर्भपात करवाने तथा अवैध तौर पर बच्चियों से श्रम करवाने के साथ-साथ उनके साथ अमानवीय क्रूरता बरतने जैसे आरोप फे्रम हुए थे। आरोपी जयभगवान और सतीश पर गैंगरेप की धाराएं जांच के बाद जोड़ी गई थीं।
जज के सामने बिलखते हुए सुनाई आपबीती
उपरोक्त तमाम दोषियों को सजा के मुहाने तक पहुंचाने में लिंक एविडैंस ने तो ठोस आधार दिया ही साथ ही पीड़ित बच्चियों की गवाही ने भी इस केस में सजा दिलवाने में मुख्य भूमिका निभाई। सी.बी.आई. की तरफ से इस केस में तकरीबन 121 गवाह बनाए गए जिन्होंने पूरे मामले में सुनवाई के दौरान बच्चियों के साथ हुए अमानवीय कृत्यों तथा पूरे घटनाक्रम के बारे में ठोक कर गवाही दी। इन बच्चियों ने न सी.बी.आई. की स्पैशल कोर्ट के जज के सामने न केवल अपने साथ की गई हैवानियत सुनाई बल्कि आरोपियों की शिनाख्त भी की। करीब एक दर्जन पीड़िताओं की ठोस गवाही तथा सी.बी.आई. टीम के द्वारा मेहनत-मशक्कत करके जुटाए गए मजबूत साक्ष्यों ने इस केस को डिसाइड करवाने में सबसे अहम भूमिका निभाई। डिफैंस की तरफ से भी करीब 2 दर्जन गवाह बनाए गए थे।