हाशिए पर इनेलोः कुनबा क्या बिखरा जनाधार ही बिखर गया, विधानसभा चुनाव तय करेंगे सियासी वजूद

punjabkesari.in Monday, Jun 24, 2024 - 06:50 PM (IST)

अंबाला (सुमन भटनागर ): 2019 से पहले इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) सूबे का एक ऐसा दमदार सियासी दल था, जिसका सत्ता में और विपक्ष में रहते हुए भी में डंका बजता था। हरियाणा में वह कई बार सत्ता पर काबिज रहा तो कई बार प्रमुख विपक्षी दल भी बना रहा। एक समय था जब ग्रामीण इलाकों में उसकी तूती बोलती थी। आज आलम यह है कि उसका वजूद भी खतरे में पड़ा हुआ है। 2014 के विधानसभा चुनावों में इनेलो ने 19,  2009 में 31 व 2000 में 47 सीटें जीती थीं। 1999 में एक दौर ऐसा भी आया जब इनेलो ने लोकसभा की 5 सीटों पर जीत दर्ज की।   

क्षेत्रीय दल होते हुए भी लम्बे अरसे तक सूबे की राजनीति में इनेलो का रूतबा किसी राष्ट्रीय दल से कम नहीं था। उसके संस्थापक व सर्वोच्च नेता ताऊ देवी लाल देश के उपप्रधानमंत्री रहे व कई दशकों तक संयुक्त पंजाब के समय से प्रदेश की राजनीति में उनका जबरदस्त दखल रहा। बाद में उनकी सियासी विरासत को ओम प्रकाश चौटाला ने संभाला। अब इनेलो की कमान अभय चौटाला के हाथ में है जिनकी विधानसभा के अन्दर व बाहर एक दबंग और जुझारू नेता के रूप में अलग ही पहचान है।

अक्टूबर 2018 में गोहाना में इनेलो की हुई की एक रैली में ओम प्रकाश चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला और उनके छोटे भाई दिग्विजय चौटाला के समर्थकों ने अभय चौटाला के खिलाफ जम कर नारेबाजी की थी, जिससे खफा होकर ओम प्रकाश चौटाला ने अनुशासनहीना के आरोप में दुष्यंत व दिग्विजय को पार्टी से निकल दिया था। बाद में उनके पिता अजय चौटाला को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।  दिसंबर 2018 में अजय व उनके दोनों बेटों ने जननायक जनता पार्टी का गठन किया। 

कुछ महीने बाद ही 2019 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव आ गए। अजय चौटाला व उसके दोनों बेटों को पार्टी से निकाले जाने को लेकर इनेलो कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी थी। इनेलो के काफी खासतौर पर युवा कार्यकर्ता जजपा के साथ जुड़ गए और 2019 के विधानसभा चुनावों में इनेलो को कुल एक सीट व 2.5 फ़ीसदी वोट मिल पाए, जबकि 2014 के विधानसभा में उसकी 19 सीटें थी व करीब 24 फीसदी वोट शेयर था। दूसरी और नयी नवेली पार्टी जजपा को 10 सीटें मिल गयीं और उसका वोट शेयर भी करीब 15 फीसदी रहा। इनेलो के लिए यह बड़ा झटका था और जजपा के लिए एक संजीवनी। 

हार के बाद में मायूस नहीं हुए अभय

सूबे की सियासत में देवी लाल की तरह एक योद्धा माने जाने वाले ओम प्रकाश चौटाला व अभय चौटाला इस कमरतोड़ हार के बाद मायूस नहीं हुए। कुछ महीने पहले उन्होंने पार्टी के संगठन में राम पाल माजरा जैसे कुछ पुराने साथियों के साथ लाकर नए सिरे से कार्यकर्ताओं में उर्जा भरने की शुरुआत की। अभय ने 90 विधानसभा क्षेत्रों में लोगों से सीधा संपर्क बनाने के लिए 1100 किलोमीटर की पद यात्रा शुरू की। जिससे गांवों में पार्टी का जनाधार बढ़ा और इनेलों में फिर नया हौसला व आत्मविश्वास दिखाई दिया, लेकिन लोकसभा चुनाव में उसका कोई फायदा दिखाई नहीं दिया। दूसरी और दुष्यंत चौटाला भाजपा से हाथ मिला कर उपमुख्यमंत्री बन गए। सत्ता के चलते भी बड़ी तादाद में युवा जजपा से जुड़ गए और दुष्यंत ने पूरे प्रदेश में अपना एक मजबूत संगठन खड़ा कर लिया। यह अलग बात है कि शहरी क्षेत्रों में जजपा अपनी पहचान खड़ी नहीं कर पायी। इस बीच दुष्यंत ने अन्य सूबों में भी पांव पसारने की कोशिश की, लेकिन उसमें कोई कामयाबी नहीं मिली। सत्ता की विसात में भाजपा व जजपा में भी उनकी खिलाफत बढ़ने लगी और आखिर भाजपा ने लोकसभा चुनाव से पहले दुष्यंत से रिश्ता तोड़ लिया। अब उसके विधायक भी कई खेमों में बंट गये हैं। 

बिखराव का दोनों दलों ने झेला नुकसान

2024 का लोकसभा चुनाव इनेलो व जजपा के लिए एक बड़ा इम्तिहान था। जजपा को उम्मीद थी कि 2019 की तरह फिर कोई करिश्मा हो जाएगा, लेकिन इन चुनावों में उसके सभी प्रत्याशियों की जमानतें जब्त हो गयीं और वोट शेयर भी मुश्किल से एक ही रह गया। अभय चौटाला समेत इनेलो के भी सभी प्रत्याशियों की जमानतें जब्त हो गयीं, लेकिन पिछली बार के वोट शयर में कुछ इजाफा जरूर हुआ। उसे कुल 1.87 फीसदी वोट ही पड़े। अभय सिंह चौटाला ने कुरुक्षेत्र से जरूर करीब 78708 वोट हासिल किए। माना जा रहा है कि  इस टूट का नुकसान इनेलो व जजपा दोनों को झेलना पड़ा है। कहा जा रहा कि आज भी यदि दोनों दल एक जुट हो जाएं तो सूबे की एक बड़ी ताकत बन सकते हैं। 

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Content Editor

Saurabh Pal

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