बरोदा उपचुनाव: किस्मत पर कल करेंगे मतदाता फैसला, आज होगी कयामत की रात

11/2/2020 7:51:21 PM

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे सोनीपत संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बरोदा विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव ने पूरे प्रदेश के सियासी पारे को उफान पर लाया हुआ है। 3 नवम्बर को होने वाले इस चुनाव के दृष्टिगत जहां सभी राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाते हुए चुनावी प्रचार में पूरा दमखम लगा दिया है तो वहीं रविवार को प्रचार के अंतिम दिन भी नेताओं ने काफी दौड़धूप की।

अब चूंकि मतदान में चंद घंटों का समय शेष रह गया है ऐसे में सोमवार का दिन और रात कयामत भरे होंगे तो 3 नवम्बर को मिलने वाले जनादेश से पहले राजनेता घर-घर जाकर व्यक्तिगत संपर्क साधते हुए अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास करेंगे लेकिन बरोदा के मतदाता उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला मंगलवार को करेंगे और परिणाम भी मंगलवार को अर्थात 10 नवम्बर को आएंगे। अब देखना ये होगा कि ये मंगलवार किस के लिए मंगलमय होगा। बेशक बरोदा में गर्माए चुनावी माहौल में समूची सियासत का पारा पूरे शबाब पर है मगर बरोदा में हो रहे इस उपचुनाव में सभी के मुद्दे अपने अपने हैं।

भाजपा-जजपा गठबंधन जहां विकास का दम भरते हुए बरोदा की जंग जीतने पर यहां की तस्वीर बदलने का दावा करते हैं तो वहीं नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा इस जीत की मार्फत क्षेत्र में फिर से चौधर लाने की बात कर रहे हैं। इसी प्रकार इनैलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला भी बरोदा उपचुनाव जीतने पर इनैलो के सत्ता में वापसी के दावे करते हुए इस चुनाव में उतरे हुए हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कमोबेश बरोदा में यह उपचुनाव अपने आप में एक अलग कहानी कहते हुए नजर आ रहा है क्योंकि बरोदा में जो सियासी बिसात बिछी है उसमें गोटे के रूप में हरेक दल ने अपने ही मुद्दे को आगे किया हुआ है।

इसलिए दिलचस्प बन रहा बरोदा
गौरतलब है कि करीब पौने दो लाख मतदाताओं वाले बरोदा विधानसभा क्षेत्र में 3 नवम्बर मंगलवार को मतदान होना है। जाट बाहुल्य इस विधानसभा क्षेत्र में सत्तारुढ़ भाजपा-जजपा संयुक्त रूप से कमल खिलाने के प्रयास में है तो वहीं कांग्रेस अपने गढ़ को बरकरार रखने व इनैलो वापसी की दिशा में प्रयासरत है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 से पूर्व यह सीट इनैलो के खाते में रही है और इसके बाद से निरतंर कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा यहां से निर्वाचित हुए हैं मगर अब उनका निधन हो गया और इस वजह से यह सीट रिक्त हो गई।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार भले ही भाजपा-जजपा सत्ता में है और इस सीट के परिणाम से 'सत्ता' पर कोई खास असर पड़ता दिखाई न दे रहा हो मगर जीत को सुनिश्चित करने के लिए भाजपा-जजपा ने पूरा जोर लगाया हुआ है और मतदाताओं से विकास की खातिर वोटों की अपील भी की है लेकिन इस सीट पर दो पूर्व मुख्यमंत्रियों भूपेंद्र सिंह हुड्डा और ओमप्रकाश चौटाला ने जिस लिहाज से प्रचार किया है उससे माहौल बड़ा दिलचस्प बनता हुआ दिखाई दे रहा है, क्योंकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने चुनावी प्रचार के दौरान हर बार हर सभा में इस बात का विशेष रूप से जिक्र किया है कि बरोदा में जीत का अर्थ उनकी चौधर वापस लाना है, अर्थात यहां की जीत उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले जाएगी।

इसके अलावा ओमप्रकाश चौटाला भी बड़े दावे से इस मुद्दे को हवा देते रहे हैं कि बरोदा ही अगली सरकार का फैसला करेगा क्योंकि यदि इनैलो यहां विजयी हुई तो भाजपा में भगदड़ मचेगी और ऐसे में मध्यावधि चुनाव होने तय हो जाएंगे और उसके बाद यकीनी तौर पर इनैलो की सरकार बनेगी। पर्यवेक्षकों के अनुसार सभी राजनीतिक दलों के यही मुद्दे हैं और इन्हीं मुद्दों को फोकस करते हुए चुनाव लड़ा भी जा रहा है मगर अब देखना ये है कि बरोदा के मतदाता आखिर किस दल के साथ जाकर खड़े होंगे?

सर्द मौसम में आ रहा पसीना
चाहे भाजपा-जजपा हो, कांग्रेस हो अथवा इनैलो या अन्य राजनीतिक दल सभी ने पूरे उत्साह और उम्मीद के आसरे प्रचार में खूब पसीना बहाया है। सर्द मौसम में भी बरोदा का सियासी पारा पूरे उफान पर है और सर्दी की शुरूआत के साथ उम्मीदवारों व सभी दलों के नेताओं के माथे पर पसीना दिखाई दे रहा है। अब जबकि शोरगुल प्रचार खत्म हो गया है तो चुनाव से पहले का यह आखिरी दौर हर किसी की धड़कनें बढ़ाने वाला है। बरोदा उपचुनाव को लेकर सोमवार की आखिरी रात को भी चुनावी सरगॢमयां बढ़ती दिखाई देंगी और हर कोई आखिरी वक्त तक मतदाता को अपने पक्ष में लाने का पूरा प्रयास भी करेगा।

Manisha rana