युवा हाथों में विरासत सौंपने की शुरूआत

5/1/2019 9:28:49 AM

अम्बाला(रीटा/सुमन): अभी तक हरियाणा में दिग्गज नेताओं की चुनावी मुहिम व राजनीतिक विरासत को उनके बेटे संभालते आए हैं लेकिन इस चुनाव में लोकसभा की 5 ऐसी सीटें हैं जहां बेटों को चुनाव जिताने के लिए राजनीति के धुरंधर उनके मम्मी-पापा ने दिन-रात एक किया हुआ है। उन्हें उम्मीद है कि उनके बेटे राजनीति में उनके नाम को ऊंचा करेंगे और वर्षों से संभाल कर रखी गई उनकी राजनीतिक विरासत को मजबूती देंगे।

जब भी बंसी लाल चुनावी मैदान में उतरे तो उनके बेटे सुरेंद्र सिंह ने एक सारथी की तरह उनके चुनाव की सारी जिम्मेदारी संभाली। भजन लाल के चुनावी कमान को उनके दोनों बेटे कुलदीप बिश्नोई व चंद्रमोहन संभालते रहे हैं। देवी लाल को उप-प्रधानमंत्री के ओहदे तक पहुंचाने में उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला की बड़ी भूमिका रही। भूपेंद्र हुड्डा को 2 बार मुख्यमंत्री बनाने में उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने खूब पसीना बहाया। 

उद्योगपति ओम प्रकाश जिंदल को राजनीति की ऊंचाइयों तक पहुंचाने में उनके बेटे नवीन जिंदल ने जमकर मेहनत की। ओम प्रकाश चौटाला के जेल जाने पर उनके जनाधार को जिंदा रखने के लिए अभय चौटाला ने अपनी पूरी ताकत झोंके रखी।नए दौर में अब कुछ बड़े नेताओं ने खुद को राजनीति में पीछे करके अपने बेटों के लिए सेफ  पैसेज बनाने की कोशिश की है ताकि सियासी फील्ड में अपनी जगह बनाने में उन्हें कोई खास दिक्कत न आए।

भर्ती घोटाले में सजा काट रहे अजय चौटाला चुनाव नहीं लड़ सकते लेकिन उन्होंने अपने दोनों बेटों दुष्यंत चौटाला व दिग्विजय चौटाला को हिसार व सोनीपत से चुनावी मैदान में उतारा है। बेटों के राजतिलक के लिए उन्होंने अपने पिता ओम प्रकाश चौटाला से भी टकराव मोल लिया। इन दिनों वह पैरोल पर हैं लेकिन दोनों बेटों के प्रचार अभियान में जुटे पड़े हैं। यही नहीं उनकी पत्नी नैना चौटाला ने भी बेटों के लिए दिन-रात एक कर रखा है।

कुलदीप बिश्नोई हिसार से 2011 के उपचुनाव में सांसद बने लेकिन 2014 में दुष्यंत चौटाला से हार गए। इस बार पार्टी आलाकमान से अड़कर उन्होंने अपने बेटे भव्य बिश्नोई को टिकट दिलवाया। उम्र के लिहाज से भव्य के पास राजनीतिक पारियां खेलने के लिए काफी वक्त पड़ा है। अब कुलदीप व उनकी पत्नी रेणुका बिश्नोई बेटे को जिताने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोडऩा चाहते। भव्य की दादी जसमा देवी भी अब पोते भव्य के लिए दस्तक दे रही हैं।

इनैलो के राजनीतिक वजूद को बचाने में लगे अभय चौटाला ने अपने बेटे अर्जुन सिंह को कुरूक्षेत्र की चुनावी रणभूमि में उतारा है। वह और उनकी पत्नी कांता चौटाला ने शायद ही कभी इतना पसीना बहाया हो जितना अर्जुन के लिए बहा रहे हैं। इस सीट के साथ अभय का ही नहीं बल्कि इनैलो का भविष्य भी जुड़ा हुआ है। कहा जा रहा है इस बार कुरुक्षेत्र में वही अर्जुन जीतेगा जिसका सारथी कोई कृष्ण होगा। इस चुनाव में कृष्ण कौन है और वह किसके चुनावी रथ पर सवार है इसका खुलासा 23 मई को ही हो पाएगा।        

भूपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक से 4 बार सांसद बने लेकिन बाद में उन्होंने यह सीट अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को सौंप दी। हालांकि भूपेंद्र सिंह खुद सोनीपत से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन रोहतक उनके लिए प्रतिष्ठा की सीट बनी हुई है। सोनीपत से ज्यादा ताकत उन्होंने अपने बेटे की सीट रोहतक में लगाई हुई है। हुड्डा की पत्नी आशा हुड्डा भी सोनीपत से रोहतक में सक्रिय हैं। केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र सिंह ने अपने आई.ए.एस. बेटे बृजेंद्र सिंह को राजनीति में स्थापित करने के लिए अपनी केंद्रीय मंत्री की कुर्सी यहां तक राज्यसभा की सदस्यता को भी दांव पर लगा दिया।

वह और उनकी पत्नी प्रेमलता सिंह हिसार से बेटे को कामयाब करने के लिए दिल्ली छोड़ हिसार में डेरा डाले हुए हैं। वीरेंद्र को सत्ता की राजनीति का लंबा अनुभव है। उन्हें यह भी अंदाजा है कि समाज में एक अफसर की बजाए एक नेता का क्या रूतबा होता है।

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