जींद की सियासी भूमि पर ‘कमल’ खिलाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती

1/19/2019 9:40:33 AM

जींद (संजय अरोड़ा): ‘हॉट’ सीट जींद पर 28 जनवरी को होने वाले उपचुनाव में तमाम दलों की प्रतिष्ठा दांव पर है। 2014 के विधानसभा चुनाव में 47 सीटों के जरिए पहली बार हरियाणा में अपने बलबूते सरकार बनाने वाली भाजपा के लिए जींद का उपचुनाव बड़ी चुनौती माना जा रहा है। यह चुनौती भाजपा के लिए इसलिए बड़ी है, क्योंकि अब तक हुए 12 चुनाव में भाजपा के लिए जींद की सियासी जमीन बंजर ही रही है और यहां पर कभी कमल नहीं खिला है। खास बात यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में हरियाणा में मोदी लहर होने के बावजूद बेशक भाजपा 47 सीटें जीत गई, लेकिन जींद सीट उससे करीब 2,282 वोटों से खिसक गई। वैसे इस बार तमाम दलों की ओर से हैवीवेट उम्मीदवार उतारे जाने के बाद यह चुनाव पूरी तरह से दिलचस्प भी बना हुआ है।

गौरतलब है जींद में 1967 से 2014 तक 12 सामान्य चुनाव हुए हैं। हरियाणा गठन के बाद यहां पहली बार उपचुनाव हो रहा है। जींद की सीट पर भाजपा ने पहली बार साल 1991 में चुनाव लड़ा। उस चुनाव में भाजपा के शामलाल को करीब 6,621 मत मिले और वे चौथे स्थान पर रहे। इसके बाद 1996 में गठबंधन के चलते यह सीट हरियाणा विकास पार्टी के हिस्से आई। भाजपा के गठबंधन सहयोगी ने जरूर 1996 में यह सीट जीती,तब हविपा के बृजमोहन सिंगला विधायक बने थे। इसके बाद साल 2000 के चुनाव में भाजपा के रामेश्वर दास 4,262 वोटों के साथ चौथे जबकि साल 2005 के चुनाव में भाजपा के श्रीनिवास वर्मा 11,437 वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे।

2009 के चुनाव में तो भाजपा के स्वामी राघवनंद को महज 507 ही वोट मिले। साल 2014 के चुनाव में भाजपा के सुरेंद्र बरवाला 29 हजार 273 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। वह महज 2,282 वोटों के अंतर से हार गए। ऐसे में भाजपा के लिए यह उपचुनाव बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इस बार जींद उपचुनाव के जरिए विधानसभा पहुंचने की राह किसी भी दल के लिए आसान नहीं मानी जा रही क्योंकि तमाम दलों की ओर से हैवीवेट उम्मीदवार मैदान में उतारे और पूरी ताकत झोंके जाने के बाद चुनावी पूरी तरह से दिलचस्प बना हुआ है और मुकाबला बहुकोणीय माना जा रहा है।

Deepak Paul