बदले-बदले बड़े सरकार नजर आते हैं...

8/10/2019 10:37:49 AM

अम्बाला (रीटा/सुमन) : पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जो कुछ महीने पहले तक अपनी रैलियों व कार्यकत्र्ताओं के बीच राहुल गांधी तथा सोनिया गांधी का नाम लिए थकते नहीं थे,अब उनका नाम लेने से परहेज करने लगे हैं। अभी यह आंकलन करना मुश्किल है कि इसके पीछे उनकी पार्टी से कोई नाराजगी है या फिर बगावत की तैयारी। फिलहाल उनके तेवर कुछ बदले नजर आ रहे हैं जिसे लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। 

रोहतक महारैली के लिए प्रदेशभर में शुरू की गई कार्यकत्र्ताओं की बैठकों में वह सोनिया व राहुल का नाम तक नहीं ले रहे। कांग्रेस के मौजूदा हालातों पर गौर करें तो नजर आता है कि यदि आलाकमान ने 10 अगस्त को बुलाई वर्किंग कमेटी में प्रदेश कांग्रेस की बागडोर हुड्डा को सौंपने को लेकर कोई ठोस फैसला न लिया गया तो हुड्डा खेमे का पार्टी से बगावत करना तकरीबन तय है। रैली को लेकर हुड्डा व उनके नेताओं ने पूरे प्रदेश में कार्यकत्र्ता सम्मेलन के नाम पर ताकत टटोलने की जो मुहिम शुरू की है उससे भी कुछ संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। 

हुड्डा की बैठकों में नहीं दिख रहे तंवर व शैलजा समर्थक
गत दिवस हुड्डा के अम्बाला,जगाधरी व कुरुक्षेत्र में की गई बैठकों में शैलजा व अशोक तंवर खेमे का कोई भी नेता नहीं पहुंचा वहीं बैठकों में सोनिया व राहुल गांधी की बजाय हुड्डा के नारे लगाए गए। हुड्डा ने भी अपने भाषणों में एक बार भी सोनिया व राहुल का जिक्र नहीं किया। उन्होंने यह भी साफ  किया कि महारैली में आलाकमान के किसी भी नेता को बुलावा नहीं भेजा गया है।

नई पार्टी बनाने में जुटे!
हुड्डा के करीबी सूत्रों की मानें तो नई पार्टी बनाने को लेकर दीपेंद्र हुड्डा,कर्ण सिंह दलाल,कुलदीप शर्मा व हुड्डा खेमे के कुछ और नेता मंथन में जुटे हैं। दिल्ली में बैठे कांग्रेस के आला नेताओं को भी इसकी भनक लगने लगी है लेकिन अभी वे कोई प्रतिक्रिया देने की बजाय हालातों पर निगाह रखे हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक 4 अगस्त को रोहतक में हुए हुड्डा समर्थकों के कार्यकत्र्ता सम्मेलन की रिपोर्ट भी ऊपर से तलब की गई है।

सर्वमान्य फार्मूला  निकालने की कोशिश
पार्टी को इस बात का अंदेशा है कि यदि प्रदेश की कमान हुड्डा को सौंप दी तो पार्टी में एकता की बजाय बिखराव भी हो सकता है। शैलजा,अशोक तंवर व किरण चौधरी किसी भी कीमत पर हुड्डा का वर्चस्व मंजूर नहीं करेंगे। कहा जा रहा है कि वर्किंग कमेटी की बैठक में लोकसभा चुनाव की को-आॢडनेशन कमेटी की तर्ज पर कोई सर्वमान्य फार्मूला निकालने की कोशिश हो सकती है। यह किस हद तक परवान चढ़ती है कहना अभी मुश्किल है। इस समय कांग्रेस जिस हाशिए पर है,उसे देखते हुए हरियाणा को लेकर कोई भी एक तरफा फैसला लेना उसके लिए आत्मघाती साबित हो सकता है।

Isha