चार माह बाद ''बंद'' के जरिए किसानों का सरकार को बड़ा ''संदेश''!

punjabkesari.in Saturday, Mar 27, 2021 - 09:57 AM (IST)

संजय अरोड़ा: केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर सरकार से लौहा लेते हुए धरने पर बैठे किसानों को आज ठीक चार माह हो चुके हैं। इन चार माह के दौरान यह आंदोलन कई दिशाओं में भी गया और अनेक मर्तबा उतार-चढ़ाव भी देखने को मिले मगर दिल्ली की सीमाओं को घेर कर बैठे हुए इन किसानों की मांग आज भी जस की तस है। आंदोलन के दौरान ट्रैक्टर मार्च के जरिए भी किसान सरकार से आमने-सामने की स्थिति में आए तो अब शुक्रवार को भारत बंद से भी एक संदेश देने का प्रयास किया लेकिन कहना न होगा कि यह आंदोलन भले ही जिस भी दौर से गुजरा हो मगर स्थिति वैसी ही है। 

bharat bandh affected in haryana

हालांकि जब दिल्ली की सीमाओं की पिछले वर्ष 26 नवम्बर को घेराबंदी की गई थी तब शुरूआती दौर में अनुमान यही लगाया जा रहा था कि संभवत: यह आंदोलन जल्द खत्म हो जाएगा अथवा सरकार की ओर से की जा रही वार्ताओं में इसका कोई न कोई हल निकल आएगा मगर यह आंदोलन न केवल 4 माह से जारी है बल्कि किसानों की ओर से प्रदेश में मंत्रियों व विधायकों का घेराव करते हुए लगातार आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है और किसान आंदोलन भी जोर पकड़े हुए है। यही नहीं इस चार माह के दौरान करीब 300 किसानों की मौत भी हो चुकी है। माना यह भी जा रहा है कि गेहूं कटाई व बिजाई के बाद यह आंदोलन और तेजी पकड़ सकता है। खास बात ये भी है कि दिल्ली से सटी हरियाणा की सीमाओं पर जहां किसान धरने पर बैठे हैं वहां पिछले दिनों किसानों ने अस्थाई तौर पर मकानों का निर्माण भी शुरू किया जिसे सरकार द्वारा नोटिस देने के साथ साथ गिरा भी दिया।

ऐसे तेज हुआ किसानों का यह आंदोलन
गौरतलब है कि 5 जून 2020 को केंद्र सरकार की ओर से तीन कृषि अध्यादेश लाए गए। सितम्बर 2020 में इन तीनों अध्यादेशों को लोकसभा और राज्यसभा में पास करवाकर कानून का रूप दे दिया। तीनों कानूनों को लेकर सबसे पहले विरोध के स्वर पंजाब से उठे और उसके बाद हरियाणा में भी यह एक बड़ा मुद्दा बन गया। दोनों ही प्रदेशों में अनाजमंडी सिस्टम दूसरे राज्यों की तुलना में अधिक मजबूत है। इन कानूनों के खिलाफ बीती 26 नवम्बर से जारी किसानों के इस आंदोलन को शुक्रवार को पूरे 4 माह हो चुके हैं। इन चार माह से लगातार चल रहे आंदोलन के मद्देनजर किसान संगठनों की ओर से शुक्रवार को किए गए भारत बंद का असर हरियाणा में भी पूरी तरह से नजर आया। भारत बंद को लेकर न केवल किसानों ने बल्कि दुकानदारों, आढ़तियों ने भी समर्थन दिया। अधिकांश स्थानों पर बाजार पूरी तरह से बंद रहे और कई जगह जाम लगे तो रेलवे ट्रैक भी किसानों की ओर से जाम कर दिए गए। राकेश टिकैत की ओर से किसान आंदोलन को लेकर हरियाणा के करनाल के असंध में दिल्ली में फिर से कूच करने के बयान के बाद यह आंदोलन और तेज हो गया और हरियाणा से भी भारी तादाद में किसान आंदोलन का हिस्सा बन गए। वहीं ऐलनाबाद से विधायक पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद अब टिकरी बॉर्डर पर इनेलो की ओर से जननायक चौधरी देवीलाल अस्पताल बनाकर आंदोलन को गति दिए जाने की कवायद हुई है।

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किसानों ने तैयार की विशेष रणनीति
बेशक शुक्रवार को किसानों का भारत बंद केंद्र सरकार को एक संदेश देने में कामयाब रहा लेकिन फसली सीजन को देखते हुए लग रहा था कि किसान गेहूं कटाई में व्यस्त हो जाएंगे लेकिन किसान संगठनों ने अपने इस आंदोलन के दृष्टिगत फसली सीजन को लेकर एक खास रणनीति तैयार की और इसका प्रभाव भी नजर आया। इस रणनीति के तहत किसानों ने रोटेशन प्रणाली को अपने पर लागू किया है ताकि उनका यह आंदोलन कमजोर न पड़े। बताया गया है कि इस प्रणाली के तहत पहले कुछ किसान खेत में काम करने जाएंगे और जब ये लौट आएंगे तो इसके बाद अन्य किसान जाएंगे। इस प्रकार फसल की कटाई व बिजाई का सीजन पूरा होने तक रोटेशन प्रणाली के तहत किसानों के कुछ जत्थे खेतों में रहेंगे तो कुछ सीमाओं पर और किसान संगठनों की रणनीति के मुताबिक जैसे ही फसली सीजन पूरा हो जाएगा तब समूचा किसान वर्ग खेतों से फिर सीमाओं की ओर कूच करेगा। ऐसे में मई माह में किसान आंदोलन के फिर से जोर पकडऩे की पूरी संभावना है।

अब तक ऐसे चलता रहा आंदोलन
कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा यह आंदोलन अब तक कई मोड़ों से गुजरा। पिछले वर्ष 10 सितम्बर को हरियाणा के पिपली में किसानों ने रैली रखी। इस दौरान किसानों पर लाठीचार्ज हुआ। इसके बाद 6 अक्तूबर 2020 को किसानों ने सिरसा में रैली की। इस रैली में कई किसान नेता व पंजाब के कलाकारों ने शिरकत की। इस रैली के बाद जैसे ही किसानों ने सिरसा के बरनाला रोड पर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला व बिजली मंत्री रणजीत सिंह की कोठी का घेराव करने के लिए उस तरफ कूच किया तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। बाद में सिरसा में किसान शहीद भगत सिंह स्टेडियम में पड़ाव डालकर बैठे रहे। कांग्रेस और इनेलो ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और उसी दिन इनैलो ने जहां जिला स्तर पर प्रदर्शन किए तो कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ट्रैक्टर यात्रा लेकर हरियाणा में पहुंचे। इसके अलावा हर रोज हाइवे जाम होने लगे। टोल प्लाजों पर किसान धरना देने लगे। यह सिलसिला चलता रहा। 

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पंजाब के किसान संगठनों ने 26 नवम्बर को दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया। पंजाब के किसानों ने दिल्ली कूच के लिए हरियाणा के बॉर्डर इलाकों से होकर जाना था। हरियाणा सरकार ने 25 नवम्बर तक सभी बॉर्डर इलाकों को सील कर दिया। बड़े पत्थर लगा दिए। पंजाब के किसान पूरे प्रबंध के साथ निकले थे। बुलडोजर, जे.सी.बी, खाने-पीने का सामान साथ था। किसानों ने पत्थर सड़क से हटा दिए और दिल्ली पहुंच गए। किसानों ने दिल्ली के सिंघू, टिकरी, गाजीपुर बॉर्डर पर पड़ाव डाल लिया जो आज चार महीनों से लगातार जारी है। इसके बाद हरियाणा के किसान भी यहां पहुंचने लगे। बाद में राजस्थान और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान भी आने लगे। आंदोलन बड़ा रूप लेने लगा। पंजाब ने आंदोलन की अगुवाई की। पंजाब के स्थापित फिल्मी सितारे और गायक आंदोलन का हिस्सा बने। रजाइयों, गद्दों से लेकर वाशिंग मशीन, ब्रांडेड कपड़ों का लंगर लगातार चलाया गया। किसान आंदोलन में छोटे बच्चों से लेकर 80 साल के बुजुर्ग नजर आए। कहीं कोई शिकन या शिकवा नहीं, चेहरों पर जोश, उत्साह नजर आया।

अब तक असफल रही हैं सभी वार्ताएं
किसान नेताओं के साथ केंद्र सरकार ने 4 दिसम्बर 2020 को पहली वार्ता की। अब तक 11 दौर की वार्ताएं हुई। 30 दिसम्बर 2020 को हुई वार्ता में केंद्र सरकार ने किसानों की 4 में से दो मांगों को मंजूर कर दिया। 21 जनवरी को कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर की ओर से किसानों को 18 माह तक तीनों कानून लागू न करने की भी बात कही। इस पर भी किसान नेता नहीं माने। 26 जनवरी को किसानों की ओर से दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकाली गई। इस दौरान कई जगहों पर ङ्क्षहसा की घटनाएं हुई। पुलिस के साथ झड़प हुई। लाल किले पर काफी भीड़ पहुंच गई। वहां पर निशान साहिब फहराया गया। दिल्ली पुलिस ने लाल किले प्रकरण को लेकर 200 से अधिक किसानों पर मामले दर्ज किए। पंजाबी फिल्म अभिनेता दीप सिद्धू सहित करीब 120 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इस घटना के बाद आंदोलन का रुख ही बदल गया। किसान नेताओं ने भी लाल किले की घटना से स्वयं को दूर बताते हुए इसे साजिश बता दिया। आंदोलन में भीड़ घटने लगी। अधिकांश किसान ट्रैक्टर लेकर घरों की ओर चले गए। अब राकेश टिकैत की चेतावनी के बाद किसान एक बार फिर दिल्ली का रुख कर सकते हैं। देखना ये होगा कि इस चेतावनी के मद्देनजर सरकार क्या प्रभावी कदम उठाती है?

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Content Writer

vinod kumar

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