चुनौती से बड़ा लक्ष्य: सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष, 75 सीट का टारगेट

6/16/2019 1:57:44 PM

ब्यूरो: लोकसभा चुनावों में प्रदेश की सभी सीटों पर बम्पर जीत के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता की वापसी के लिए भाजपा का संघर्ष शुरू हो गया है। भाजपा को ना सिर्फ राज्य सरकार के खिलाफ एंटी इन्कमबैंसी के लिएकाम करना है बल्कि राज्य के जातीय समीकरण के हिसाब से भी अपनी गोटियां फिट करनी हैं।

लोकसभा चुनाव के दौरान तो पार्टी को प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे का फायदा हो गया लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान उसे मु?यमंत्ी खट्टर के नाम पर ही वोट मांगने हैं लिहाजा सत्ता में वापसी की इस चुनौती के बीच पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने 75 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है और यह लक्ष्य राजनीतिक चुनौती से भी बड़ा लग रहा है। उल्ले्रखनीय है कि पार्टी ने  इससे   पूर्व छत्तीसगढ़ के लिए 65 और 2015 मेंबिहार के लिए 185 सीटों का लक्ष्य तय किया था लेकिन उस पर कामयाबी नहीं मिल सकी।

हालांकि इसके लिए भाजपा विशेष रणनीति पर काम कर रही है और इसी के तहत ही वह विधानसभा सीटों की टिकट का बंटवारा लोकसभा की सीटों वाले फार्मूले के तहत करने की तैयारी में है। यह भी कहा जा रहा है कि पार्टी के 30 प्रतिशत से अधिक वर्तमान विधायकों की टिकट भी पार्टी क्षेत्र में उनकी कार्यप्रणाली को देखते हुए काट सकती है और इस बात का इशारा खुद सी.एम.भी कर चुके हैं । वहीं अमित शाह द्वारा जीत के लिए दिए 75 पार के लक्ष्य को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के नेता जी-जान से जुट भी गए हैं।

उल्लेखनीय है कि 2014 में भाजपा को 47 सीटों पर जीत मिली थी और उसने इन सीटों के दम पर सरकार भी बनाई थी लेकिन प्रदेश भाजपा के लिए इस बार चुनौती यह है कि आलाकमान ने पिछली बार की 47 सीटों से कहीं बड़ा लक्ष्य उनके लिए निर्धारित कर दिया है उधर आलाकमान ने अपनी सर्वे टीम को भी मैदान में उतारकर प्रदेश की प्रत्येक सीट पर अपनी पैनी नजरें लगा दी हैं।

ज्ञात रहे कि प्रदेश में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं और इस बार के 75 पार के मिशन को पूरा करना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर मानी जा रही है। इस चुनौती के साथ मुख्यमंत्री के माथे पर ङ्क्षचता की लकीरें आना स्वाभाविक है। 

मुख्यमंत्री के लिए खुद को साबित करने की चुनौती
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर की गूंज थी और देश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। इसी मोदी लहर के चलते 2014 के प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पहली बार भाजपा नीत सरकार पूर्ण बहुमत के साथ बनी थी। अब जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला है तो विधानसभा चुनावों में भी इस जीत को दोहराना मुख्यमंत्री खट्टर के लिए आसान काम नहीं।
हालांकि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा जाता है जबकि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे अहम होते हैं। लोग जन प्रतिनिधि की छवि को देखते हैं और वोट देते हैं। भाजपा की स्थिति प्रदेश में विपक्षी पाॢटयों से बेहतर होने के बावजूद 75 सीटों का लक्ष्य उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। मुख्यमंत्री खट्टर के लिए यह चुनौती इसलिए भारी हो सकती है क्योंकि गत चुनावों में उनको संघ का चेहरा होने के चलते मुख्यमंत्री पद मिल गया था परन्तु अब उनके शासनकाल की गुणवत्ता पर ही उनकी सत्ता वापसी मुमकिन मानी जा रही है। 

Shivam