भाजपा ने मौके की राजनीति देखकर हरियाणा में बदले ‘पार्टनर’

5/20/2019 8:34:27 AM

पानीपत(खर्ब): लोकसभा चुनाव में हरियाणा भाजपा या पूर्व जनसंघ के लिए यह तीसरा मौका है जब उसने तीसरी बार अकेले,अपने दम पर सभी सीटों पर लोकसभा का चुनाव लड़ा है अन्यथा भाजपा ने मौके की राजनीति देखकर प्रदेश में अपने ‘पार्टनर’ बदलकर चुनाव लड़े हैं जिनमें से कुछ में उन्हें सफलता मिली है तो कुछ में सफाया भी हो गया। हरियाणा बनने के बाद से 3 चुनाव छोड़कर भाजपा या जनसंघ किसी दूसरी पार्टी के सहयोग के साथ लोकसभा में किस्मत आजमाती रही है।

यदि पहले व अब के चुनाव की चर्चा करें तो भाजपा ने 1991 में लोकसभा का चुनाव सभी सीटों पर लड़ा था। इसके बाद 2004 का चुनाव भी भाजपा ने अपने दम पर सभी सीटों पर लड़ा था। 2019 में भी भाजपा पुन: सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। एग्जिट पोल के नतीजे तो आ गए हैं लेकिन 23 मई को परिणाम कुछ आगे-पीछे रह सकते हैं।

जनसंघ से पहले सांसद बने थे सूरजभान
हरियाणा बनने के बाद 1967 में लोकसभा चुनाव हुए इसमें काग्रेस ने 7 और जनसंघ ने 1 सीट जीती थी। जनसंघ के उस समय सूरजभान अंबाला से सांसद बने थे। इसके बाद हरियाणा में लोकसभा के चुनाव 1971 में हुए इसमें भी जनसंघ को 1 सीट मिली थी जिसमें जनसंघ के रोहतक से मुख्त्यार सिंह मलिक सांसद बने थे।1977 में हुए चुनाव में भारतीय लोक दल ने सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी। रोचक बात यह थी कि जनसंघ ने भी भारतीय लोक दल के चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लड़ा था।

उस समय सूरजभान अंबाला से और मुख्तयार सिंह मलिक सोनीपत से चुनाव जीतकर सांसद बने थे।1980 के लोकसभा चुनाव में अंबाला से सूरजभान तीसरी बार सांसद बने। इस दौरान भाजपा बन चुकी थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त समर्थन मिला तथा सभी लोकसभा की 10 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की। भाजपा को कोई सीट नहीं मिल पाई। 1989 में भी भाजपा ने जनता दल के साथ गठबंधन करते हुए 2 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिनमें अंबाला से भाजपा के सूरजभान जीते और करनाल से सुषमा स्वराज दूसरे नंबर पर रह गई थीं।

1991 में पहली बार हरियाणा की सभी 10 सीटों पर भाजपा ने उतारे प्रत्याशी 
सन1991 में भाजपा ने अपने दम पर सभी 10 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे लेकिन इसी दौरान राजीव गांधी की हत्या होने से कांग्रेस के पक्ष में लहर चली और कांग्रेस ने 9 सीटों पर जीत हासिल की जबकि भाजपा सभी सीटों पर हार गई। इस चुनाव में प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई थी। इसके बाद भाजपा ने पुन: गठबंधन की राजनीति का धर्म निभाते हुए 1996 के लोकसभा चुनाव में चौधरी बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी के साथ गठबंधन किया।

यहां भाजपा को गठबंधन की राजनीति रास आई और भाजपा के अंबाला से सूरजभान, करनाल से आई.डी.स्वामी, फरीदाबाद से रामचंद्र बैंदा,महेंद्रगढ़ से कर्नल राम सिंह चुनाव जीतकर केंद्र में पहुंचे। साथ में गठबंधन पार्टी हविपा के कुरुक्षेत्र से ओम प्रकाश जिंदल,भिवानी से सुरेंद्र सिंह और हिसार से जयप्रकाश ने जीत हासिल की थी।

वहीं 2 सीट कांग्रेस को मिली थी और सोनीपत से आजाद प्रत्याशी अरविंद शर्मा सांसद बने थे। सरकार गिरने पर फिर 1998 में लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने फिर हविपा से गठबंधन धर्म निभाया जिसमें फरीदाबाद से भाजपा के रामचंद्र बैंदा और भिवानी सीट से हविपा के सुरेंद्र सिंह ही चुनाव जीत पाए।
 
हविपा को छोड़ 2004 व 2009 में इनैलो से मिलाया था ‘हाथ’
भाजपा ने 1999 में हविपा से गठबंधन के संबंध तोड़ लिए और ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नैशनल लोक दल से गठबंधन कर लिया। कारगिल युद्ध के बाद हुए चुनाव में गठबंधन ने सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की। इस दौर में भाजपा मजबूत हो चुकी थी जिस कारण भाजपा ने इनैलो के साथ गठबंधन तोड़ लिया तथा 2004 के आम चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए लेकिन वह सिर्फ  एक सीट को जीतने में कामयाब रही जबकि 4 सीटों पर जमानत तक जब्त हो गई।

इस दौरान सिर्फ सोनीपत से किशन सिंह सांगवान ही चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। 2004 में अकेले चुनाव लड़ कर एक सीट प्राप्त करने वाली भाजपा ने फिर गठबंधन करते हुए 2009 का लोकसभा चुनाव इनैलो के साथ मिलकर पांच- पांच सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन इस बार दोनों ही पार्टियां सभी सीटों पर चुनाव हार गईं और कांग्रेस ने 10 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की। 1 सीट कांग्रेस छोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाने वाले कुलदीप बिश्नोई के खाते में गई थी जो हिसार से सांसद बने थे।

kamal