मोदी लहर के बावजूद जीते थे दीपेंद्र हुड्डा, रोहतक पर भाजपा की निगाहें

2/12/2019 12:37:27 PM

रोहतक (विशेष): अब तक हुए रोहतक संसदीय क्षेत्र के 17 चुनावों में 9 में से हुड्डा समर्थक उम्मीदवार ही जीते हैं। निकटवर्ती 3 दशकों में यह सीट हुड्डा परिवार के पास ही रही है। वर्ष 1991 में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तत्कालीन उप प्रधानमंत्री देवी लाल को हराकर अपना वर्चस्व दिखाया था। इस जीत के बाद 30 वर्ष पश्चात इनके परिवार के पास पुन: यह सीट आई थी। इससे पूर्व भूपेंद्र सिंह के पिता रणवीर सिंह हुड्डा यहां से सांसद चुने गए थे। वर्ष 1996 व 1998 में भूपेंद्र सिंह ने इतिहास रचते हुए इस सीट पर जीत दर्ज की थी।  हालांकि रोहतक संसदीय क्षेत्र कांग्रेस का मजबूत गढ़ शुरू से नहीं था। 1970 से लेकर 1980 के  मध्य दशक तक यह सीट जनसंघ और जनता पार्टी ने जीती थी। यह चौंकाने वाली बात है कि 2014 के चुनावों में मोदी लहर के बावजूद भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र ने यह सीट जीत ली थी।  नरेंद्र मोदी तब भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार थे और भाजपा ने हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से 7 पर कब्जा किया था। 

मेयर चुनावों एवं जींद उपचुनाव की हार ने दीपेंद्र को दिखाई खतरे की झंडी 

जब मोदी लहर कम थी तो हरियाणा में कांग्रेस की 2009 में 9 सीटें थीं और 2014 में उसने मात्र एक रोहतक सीट ही जीती जोकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा एवं 3 बार के सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने जीती। 41 वर्षीय राजनीतिज्ञ दीपेंद्र हुड्डा अपने दम पर अभी भी बने हुए हैं जबकि प्रदेश स्तर पर कांग्रेस का ग्राफ नीचे की ओर आ रहा है। 2014 के लोकसभा चुनावों से लेकर दिसम्बर 2018 के निगम चुनावों तक कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता ही जा रहा है। 

2014 के लोकसभा चुनावों के पश्चात कांग्रेस पार्टी के कुछ खास न कर पाने के बावजूद दीपेंद्र अपने संसदीय क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास होने का दावा करते हैं। इनका कहना है कि वर्ष 2005 से जब से वह यहां के सांसद बने हैं यहां बहुत ही विकास का काम हुआ है। इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमैंट, डिजाइन इंस्टीच्यूट आफ नैशनल रैप्यूट तथा एम्स सैंटर का नींव पत्थर 2014 में मोदी सरकार के केंद्र में आने से पहले ही रखा जा चुका था। दीपेंद्र ने अपना पहला चुनाव 27 वर्ष की आयु में लड़ा था जब उसके पिता ने यह सीट वर्ष 2005 में विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए छोड़ी थी। दीपेंद्र के दादा रणबीर सिंह हुड्डा ने रोहतक सीट 1952 एवं 1957 में जीती थी। 

चर्चा है कि अब कांग्रेस प्रत्याशी के समक्ष भाजपा कथित तौर पर पूर्व सैन्य प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग को मैदान में उतारना चाहती है। भाजपा प्रदेश प्रभारी विश्वास सारंग का कहना है कि वह कांग्रेस को हराने की नीतियां बना रहे थे। दूसरी ओर हुड्डा का कहना है कि आरक्षण के लिए ङ्क्षहसक जाट आंदोलन ने विशेषकर रोहतक को निशाना बनाया जाना भाजपा की रणनीति थी। रोहतक के मेयर चुनावों में हार से पहले दीपेंद्र को अब तक का अजेय उम्मीदवार माना जाता था परंतु जींद उपचुनाव के दौरान कांग्रेस को आभास हुआ कि उन्हें पूरा जोर लगाना चाहिए।

उन्होंने जींद में सभी दिग्गज नेताओं को चुनाव प्रचार अभियान में उतारा परंतु पार्टी के शीर्ष नेता एवं प्रत्याशी रणदीप सिंह सुर्जेवाला तीसरे नंबर पर रहे। ऐसा पहली बार होगा कि दीपेंद्र को अपने पिता के सत्ता से बाहर होने पर यह चुनाव अपने दम-खम पर लडऩा होगा। वर्ष 2005 में जब उन्होंने अपना पहला चुनाव जीता था तब दीपेंद्र के पिता सांसद थे और 2009 एवं 2014 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री थे। दीपेंद्र के लिए इस चुनाव में जाट बनाम गैर जाट का मुद्दा भी अपनी विशेष भूमिका अदा करेगा। 

Deepak Paul