धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में भी चल रही है छठ पूजा, दूसरे दिन खरना का छठ मैया का प्रसाद करण
punjabkesari.in Tuesday, Nov 09, 2021 - 03:17 PM (IST)
कुरुक्षेत्र( विनोद): उत्तर प्रदेश एवं बिहार की भांति ही धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में भी पर्वांचल समाज के लोगों द्वारा छठ पर्व बड़े भक्तिभाव के साथ मनाया जा रहा है। महिलाएं पूरी आस्था के साथ व्रत रखे हुए हैं। श्री पूर्वांचल छठ पर्व महासभा से जुड़े प. अनिल शास्त्री व सरिता देवी ने बताया कि पिछले कई वर्षों से कुरुक्षेत्र में छठ पूजा होती है। मंगलवार को छठ पर्व का दूसरा दिन है। उन्होंने बताया कि दूसरे दिन भी व्रती महिलाएं छठ पर्व की पूजा एवं प्रक्रिया पूरी करने में श्रद्धा से जुटी रही। यह छठ का पर्व चार दिनों का होता है और इसका व्रत सभी व्रतों में सबसे कठिन होता है। इसलिए इसे महापर्व के नाम से जाना जाता है।
बताया कि हिन्दू पंचाग के अनुसार छठ पूजा का खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है। खरना को लोहंडा भी कहा जाता है। इसका छठ पूजा में विशेष महत्व होता है। उन्होंने बताया कि खरना के दिन छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद बनाया जाता है। खरना के दिन भर व्रत रखा जाता है और रात को प्रसाद स्वरूप खीर ग्रहण किया जाता है। यह छठ पर्व पूजा 11 नवम्बर तक है। छठ पर्व में खरना के महत्व के बारे में विस्तार से बताया कि खरना का मतलब शुद्धिकरण होता है। जो व्यक्ति छठ का व्रत करता है उसे इस पर्व के खरना वाले दिन उपवास रखना होता है। इस दिन केवल एक ही समय भोजन किया जाता है। यह शरीर से लेकर मन तक सभी को शुद्ध करने का प्रयास होता है। इसकी पूर्णता अगले दिन होती है। खरना पर प्रसाद ग्रहण करने का भी विशेष नियम है।
जब खरना पर व्रती प्रसाद ग्रहण करता है तो घर के सभी लोग बिल्कुल शांत रहते हैं। क्योंकि मान्यता के अनुसार शोर होने के बाद व्रती खाना खाना बंद कर देता है। साथ ही व्रती प्रसाद ग्रहण करता है तो उसके बाद ही परिवार के अन्य लोग भोजन ग्रहण करते हैं। मंगलवार को कुरुक्षेत्र अर्बन एस्टेट में पूर्वांचल समाज की महिलाओं ने खरना पूजन किया। खरना के दिन रसिया का विशेष प्रसाद बनाया जाता है। यह प्रसाद गुड़ से बनाया जाता है। इस प्रसाद को हमेशा मिट्टी के नए चूल्हे पर बनाया जाता है और इसमें आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। खरना वाले दिन पूरियां और मिठाइयों का भी भोग लगाया जाता है। छठ पूजा का महापर्व नई फसल के उत्सव का भी प्रतीक है। सूर्यदेव को दिए जाने प्रसाद में फल के अलावा इस नई फसल से भोजन तैयार किया जाता है।