सी.एम. राहत कोष में दी जाने वाली मदद का प्रारूप बदलने से नाराज हैं मंत्री

3/22/2018 11:58:23 AM

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): प्रदेश के मंत्री भले ही खुलकर कुछ न बोलें, लेकिन मंत्रियों में सरकार के प्रति नाराजगी की सुगबुगाहट चल रही है। इसका एक कारण मुख्यमंत्री की घोषणाओं के तहत होने वाले विकास के लिए विभागों में पर्याप्त बजट न मिलना बताया जा रहा है। दूसरा कारण मुख्यमंत्री राहत कोष के तहत गंभीर बीमारियों में दिए जाने से भी नाराजगी है। इसके अलावा सभी कार्यों व तबादलों में सी.एम.ओ. की सीधी दखलांदाजी भी एक कारण है।

मुख्यमंत्री की घोषणाओं के तहत होने वाले कार्यों के लिए मंत्रियों के विभागों में मिलने वाला बजट की राशि के खर्च किए जाने से ऐसे काम ठंडे बस्ते में चले जाते हैं, जिन्हें मंत्री या विभाग करवाना चाहता है। सुगबुगाहट यह भी है कि सी.एम. घोषणा में कई बार ऐसी घोषणाएं करवा दी जाती हैं, जो बाद में ठंडे बस्ते में चली जाती है। हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय के आगमन पर भी यह शिकायत उन तक पहुंचाई थी।

यह निर्धारित हुआ कि भविष्य में मुख्यमंत्री जिस भी क्षेत्र में जाएंगे, अपने स्थानीय प्रतिनिधियों को विश्वास में लेंगे व कार्यक्रम की पूर्व सूचना भी देंगे। सी.एम. घोषणा के चक्कर में मंत्रियों के विभागों के पैसे खर्च होने के कारण मंत्री चाहकर भी अपने विभाग में मर्जी से काम नहीं करवा पाते। इस बारे में कई बार हल्के-फुल्के लेवल पर आंशिक आवाज अंदरूनी रूप से बुलंद भी हुई है।

सी.एम. रिलीफ फंड के तहत जनहित के कई क्षेत्रों में जारी होने वाली राशि केवल क्रोनिक डिजीज मरीजों को दिए जाने के मुद्दे पर मंत्रिमंडल के कई मंत्री विरोध जता चुके हैं। पिछले अढ़ाई वर्षों से उठ रही इस आवाज को कुछ मंत्रियों ने लिखित रूप से भी मुख्यमंत्री तक अपनी भावनाओं को पहुंचा चुके हैं। मंत्रियों के इस पत्र का जवाब नहीं मिलने से ङ्क्षचतित हैं। सूत्र बताते हैं कि सी.एम. रिलीफ फंड पर जब यह फैसला लिया गया तो मंत्रियों को विश्वास में नहीं लिया गया। मंत्रियों का सुझाव था कि सी.एम. रिलीफ फंड के तहत अपराधों, आगजनी, हादसों या प्राकृतिक आपदाओं के शिकार लोगों को दिया जाए। इसके अलावा कार्यों व तबादलों में सी.एम.ओ. की सीधी दखलांदाजी व शक्तियों का केन्द्रीयकरण भी आड़े आ रहा है। 

मंत्री चाहकर भी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते। अगर मंत्रीगण कोई नोट भेजते हैं तो वह सी.एम.ओ. में ही अटक जाता है। एक चपड़ासी से उच्च स्तर तक के ट्रांसफर में मुख्यमंत्री कार्यालय का सीधा हस्तक्षेप होता है।  मंत्रियों को केवल जनरल तबादलों के दिनों ही क्लास-टू तक की ट्रांसफर्स का अधिकार दिए जाने की परम्परा सरकार में रही है। एक अन्य कारण और चर्चा में है। सूत्रों के अनुसार आम जनता के काम न होने की शिकायत व नौकरियां में विधायकों की बेबस स्थिति। नौकरियों में राजनीतिक सिफारिशों के न चलने से भी भाजपा विधायक अंदरूनी तौर से दुखी हैं।

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