कमिश्नर चंद्रशेखर का बड़ा खुलासा- हिसार में किसानों ने 24 मई को दिया था प्रशासन को भरोसा

5/28/2021 7:46:04 PM

हिसार/चंडीगढ़ (धरणी): 24 मई को प्रशासन और किसानों के बीच समझौता हुआ था, जिसमें प्रशासन किसानों पर दर्ज किए गए मुकदमें वापस लेने के लिए राजी हो गया था, ये तो सभी को मालूम ही है, लेकिन किसानों ने भी प्रशासन को आश्वासन दिया था कि वो आगे से किसी भी सरकारी कार्यक्रम का विरोध नहीं करेंगे, ना ही हुड़दंग मचाएंगे और ना ही घेराव करेंगे, इसकी जानकारी शायद ही किसी को रही हो।

कमिश्नर चंद्रशेखर ने कहा कि यह बहुत ही संतोषजनक तथा प्रशंसनीय विषय है कि आंदोलित किसानों की शीर्ष संयुक्त समिति के नेताओं ने घोषणा के साथ-साथ आश्वासन दिया है कि आंदोलन के दौरान किसी भी सरकारी कार्यक्रम में बाधा नहीं पहुंचाई जाएगी और कानून के दायरे में रहकर मांगें रखी जाएंगी।

उन्होंने कहा है कि किसान नेताओं की सकारात्मक भूमिका के कारण ही सरकार ने 16 मई के पुलिस केस वापिस लेने का निर्णय लिया है। सरकार ने किसानों की मांग को मानते हुए प्रदर्शन के दौरान स्वर्ग सिधारने वाले किसान के एक परिजन को डीसी रेट पर नौकरी देने की अनुमति प्रदान की है।

दरअसल, 16 मई को घटना वाले दिन जितने पर्चे और एफआईआर दर्ज हुए, उनको वापस लेने को लेकर किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी प्रशासन पर लगातार धोखा देने का आरोप लगा रहे थे कि वो मुकदमे वापस नहीं ले रहा है, यही कहते हुए चढ़ूनी ने 24 मई को हिसार में कमिश्नर ऑफिस के घेराव की किसानों को कॉल भी दी, जिसके बाद किसान नेताओं की प्रशासन के साथ बैठक हुई, जो कि दो घंटे तक चली, बैठक में किसानों ने 4 मांगें रखी। जिसमें-

1. 16 मई को दर्ज किए गए सारे मुकदमें वापस लिए जाएं।
2. लाठीचार्ज करने वाले पुलिस वालों की पहचान कर उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाएं।
3. 16 मई से पहले भी हिसार में जितने मुकदमें दर्ज किए गए थे, उसे वापस लिया जाए।
4. जिस किसान की क्रांतिमन पार्क में हार्ट अटैक से मौत हुई थी, उसके परिवार में एक डीसी रेट पर नौकरी दी जाए।

जिसके बाद प्रशासन ने किसान नेताओं की दो मांगों को मान लिया, कि जिस किसान की मृत्यु हुई, उसके परिवार के किसी एक सदस्य को वो डीसी रेट पर नौकरी देने पर राजी हो गया, दूसरा कि एक महीने का समय लेकर प्रशासन ने 16 मई को किसानों पर दर्ज हुए मुकदमें वापस लेने पर हामी भर दी। 

बैठक में दोनों तरफ से जो भरोसा दिया गया वो सब जुबानी था, कहीं कुछ लिखित में नहीं हुआ था। प्रशासन ने डिप्टी स्पीकर रणवीर गंगवा पर हुए हमले में दर्ज एफआईआर वापस लेने से साफ मना कर दिया।

अब हुआ ये है कि जो लोग उस दिन हिसार में इकट्ठा हुए थे, किसान नेताओं की कॉल से कम और मुकदमों से पीछे छुड़ाने की वजह से ज्यादा हुए थे। ये वही हिसार, बरवाला और नारनौंद का इलाका है, जहां हजारों की संख्या में लोग जाट आरक्षण और रामपाल मामले में गंभीर मुकदमे पहले से ही झेल रहे हैं, इसलिए अब वो डीएसपी पर ट्रैक्टर चढ़ाने, पुलिस कर्मियों को पीटने और कोविड अस्पताल को नुकसान पहुंचाने जैसे गंभीर मुकदमों को झेलने की स्थिति में नहीं है, इसलिए जो लोग नामजद हैं, उनका किसान नेताओं पर भारी दबाव है। वो चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी मुकदमों से पीछा छूटे।

जुबानी समझौता होने की वजह से अब सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि किसान नेता प्रशासन से किए अपने भरोसे पर कितना खरे उतरते हैं? अगर आगे भी इन्होंने प्रशासनिक काम में हिंसा फैलाने और तोड़फोड़ करने की कोशिश की तो ये जुबानी समझौता फिसलकर वहीं फिर से खड़ा हो सकता है, क्योंकि मुकदमों को वापस लेने में न्यायपालिका की बहुत बड़ी भूमिका होती है।

जो लोग जाट आरक्षण और रामपाल मामले में मुकदमों का ताप झेल रहे हैं, वो अब और मुकदमे झेलने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिए किसान नेताओं ने प्रशासन के सामने जो Commitment किया है, उसे उन्हें अब हर हाल में पूरा करना ही होगा। इसको लेकर उन पर आंतरिक दबाव बहुत ज्यादा है।
 

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Content Writer

Shivam