संवैधानिक रूप से राज्यसभा चुनाव में व्हिप बेअसर, इन चुनावों में दलबदल कानून भी लागू नहीं होता
5/30/2022 8:58:39 PM
चंडीगढ़(धरणी): आगामी 10 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव में संवैधानिक रूप से राज्यसभा चुनाव में व्हिप इसलिए बेअसर है कि इस व्हिप को मानना या न मानना विधायकों के अपने विवेक पर ही निर्भर है। इसके साथ ही इन चुनावों में दलबदल कानून भी लागू नहीं होता है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां पूरी तरह से मुस्तैद नजर आ रही हैं। चूंकि जजपा के सहयोग से भाजपा सत्ता सीन है और अभी तक पूरी मजबूती से सरकार चला रही है, ऐसे में राज्यसभा की दो सीटों में से एक सीट पर भाजपा की विजय अभी से तय मानी जा रही है और भाजपा द्वारा मैदान में उतारे गए प्रदेश के पूर्व परिवहन मंत्री कृष्णलाल पंवार की राज्यसभा में पहुंचना तय हो चुका है।
आकंडों के लिहाज से दूसरी सीट कांग्रेस के खाते में जा रही है और विपक्ष के नेता द्वारा सभी 31 विधायकों के उनके साथ होने का दावा भी किया जा रहा है लेकिन माना जा सकता है कि कांग्रेसी लीडर कुलदीप बिश्नोई के पार्टी हाईकमान से नाराज होने के चलते कांग्रेस को छह साल पहले हुए स्याही कांड की पुर्नावृत्ति होने का खतरा सता रहा है।
ग़ौरतलब है कि छह साल पहले दो सीटों के लिए हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान 14 विधायकों का वोट पेन की स्याही बदले होने के चलते रद्द कर दिया गया था जिसके चलते कांग्रेस और इनेलो द्वारा संयुक्त रूप से मैदान में उतारे गए आर के आनंद को राज्यसभा में पहुंचने से बस कुछ दूरी से ही वापिस लौटना पडा था जबकि जिन सुभाष चंद्रा की चुनाव में जीत हासिल न कर पाने की उम्मीद लगाई जा रही थी, वे सुभाष चंद्रा इसी स्याही कांड के चलते ही राज्यसभा में पहुंच गए थे।
राज्यसभा की दो सीटों में से एक पर कांग्रेस की जीत काफी महत्वपूर्ण मानी जानी जा सकती है और इस जीत के अनेक मायने भी हैं। यह जीत कहीं न कहीं पिछले लंबे समय से चुनावों में केवल हार का मुंह देखने वाली कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी साबित हो सकती है तो विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की साख और नेतृत्व भी इसी जीत से जुडा हुआ है। हुड्डा ने हाल ही में कुलदीप बिश्नोई का पत्ता कटवाते हुए जहां हाईकमान हाऊस में अपनी पैठ को साबित कर दिखाया है वहीं अपने करीबी पूर्व विधायक उदयभान को प्रदेशाध्यक्ष बनवाकर मैसेज भी दिया है कि कांग्रेस में चलेगी तो केवल उन्हीं की। ऐसे में उदयभान के नेतृत्व में होने वाले इस पहले और भारीभरकम चुनाव पर उदयभान और भूपेंद्र हुड्डा की साख भी जुडी़ है। राज्यसभा में सांसदों की अधिक संख्या होना हर पार्टी के लिए इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसी संख्या के हिसाब से ही राष्ट्रपति चुनाव में भी हर दल अपनी दावेदारी पेश करता है और राष्ट्रपति चुनाव में इन सांसदों की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा चंडीगढ़ में अपनी पार्टी के विधायकों के साथ बैठक करके राज्यसभा चुनाव में अपने वोट का उपयोग पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में करने का व्हिप जारी कर चुके हैं । सविंधान के जानकार व हरियाणा विधानसभा के पूर्व कार्यकारी सचिव राम नारायण यादव का कहना है कि लोकतांत्रिक प्रणाली और संवैधानिक रूप से राज्यसभा चुनाव में व्हिप इसलिए बेअसर है कि इस व्हिप को मानना या न मानना विधायकों के अपने विवेक पर ही निर्भर है। इसके साथ ही इन चुनावों में दलबदल कानून भी लागू नहीं होता है यानि किसी पार्टी का विधायक यदि दूसरी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में अपना वोट देता है तब पार्टी नेतृत्व इसमें किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं कर पाएगा।
पिछले राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी कुछ ऐसा ही नजारा देख भी चुकी है और मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कुलदीप बिश्नोई की नाराजगी पार्टी के लिए हानिकारक साबित हो सकती है, पार्टी इस बात से भी अंजान नहीं है। ऐसे में कांग्रेस को एक एक कदम सोच समझ कर और फूंक फूंक ही रखना पड रहा है। कल 31 मई को राज्यसभा चुनाव नामांकन का अंतिम दिन है, कांग्रेस की तरफ से कांग्रेस के बडे चेहरे और हाईकमान के चहेते अजय माकन को मैदान में उतारा जा रहा है।
जाहिर है कि अजय माकन को जितवाना कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष उदयभान और विपक्ष के नेता हुड्डा के लिए बडी चुनौती और कांग्रेस के विधायकों पर अपनी पकड़ दिखाने का एक बडा मौका है लेकिन आया राम गया राम सरीखी राजनीति के जनक हरियाणा प्रदेश में यह चुनाव कांग्रेस के लिए इतना आसान भी नहीं रहने वाला है। हालांकि पिछली बार जिस तरीके से सुभाष चंद्रा ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोकी थी, उस प्रकार से अभी तक कोई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में नहीं उतरा है, जिसे देखते हुए एक सीट पर भाजपा और दूसरी पर कांग्रेस का वर्चस्व और जीत का बराबर बराबर ही आंकलन किया जा रहा है लेकिन कल नामांकन के अंतिम दिन यदि कोई नेता अपने नाम की घोषणा करते हुए ताल ठोकता है तब यह सीधे सीधे कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
इन तमाम राजनीतिक समीकरणों और चुनावी अटकलों के बीच भाजपा के लिए भी एक खतरे की घंटी बजती दिखती है। भाजपा हाईकमान ने टिकट कृष्ण लील पंवार को थमा दिया है। ऐसे में जजपा क्या इस बात को सहजता और शालीनता से स्वीकार करेगी अथवा किसी प्रकार की रणनीति, कूटनीति का सहारा लिया जाएगा, यह 10 जून को ही सामने आ पाएगा।