OPD में इलाज पर मेडिकल प्रतिपूर्ति से इनकार करना अवैध, सरकार ने की अपील खारिज
punjabkesari.in Wednesday, Jan 29, 2025 - 06:06 PM (IST)
चंडीगढ़( चंद्र शेखर धरणी ): पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि सरकारी कर्मचारी की पत्नी के क्रोनिक किडनी डिजीज के इलाज के लिए मेडिकल प्रतिपूर्ति से इनकार करना केवल इस आधार पर कि इलाज आउट पेशेंट डिपार्टमेंट में हुआ अविवेकपूर्ण वर्गीकरण है।हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान में राज्य को कल्याणकारी राज्य कहा गया है। राज्य को अपने कर्मियों के प्रति उदार होना चाहिए, लेकिन इस मामले में सरकार ने अमानवीय रवैया अपना लिया है।
चीफ जस्टिस शील नागु और जस्टिस सुधीर सिंह की खंडपीठ ने कहा कि जब किसी रोगी का इलाज डाक्टरों के विशेषज्ञ पर निर्भर करता है, तो उसे ओपीडी में किया गया इलाज बताकर खर्च की भरपाई से इनकार करना उचित नहीं है। खासकर जब बीमारी पुरानी हो और उसे लगातार इलाज की आवश्यकता हो।रोहतक निवासी हरियाणा सरकार के एक कर्मचारी की पत्नी को 2014 से 2016 तक क्रोनिक किडनी डिजीज का इलाज मिला। इस दौरान दो बार आपातकालीन स्थिति में इलाज किया गया। हालांकि, सरकार ने यह कहते हुए मेडिकल खर्च की भरपाई से इनकार कर दिया कि ओपीडी में हुआ इलाज आपातकाल की श्रेणी में नहीं आता।इस पर संबंधित कर्मचारी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
सिंगल बेंच ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया और सरकार को निर्देश दिया कि वह मेडिकल खर्च की गणना कर उसका भुगतान करे। इस फैसले को चुनौती देते हुए हरियाणा सरकार ने अपील दायर की थी।हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने सरकार की अपील को खारिज करते हुए कहा कि क्रोनिक बीमारी के मरीजों को लगातार इलाज की जरूरत होती है। क्रोनिक किडनी डिजीज जैसी बीमारी से पीड़ित मरीज को दिल का दौरा या स्ट्रोक जैसी गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने यह स्वीकार किया कि इलाज किसी स्वीकृत अस्पताल में हुआ था। इसलिए केवल ओपीडी में इलाज होने के आधार पर मेडिकल प्रतिपूर्ति से इनकार करना अनुचित है।
हरियाणा सरकार की मेडिकल प्रतिपूर्ति नीति के अनुसार, आपातकालीन स्थिति में अस्वीकृत अस्पताल में इलाज लेने पर ही खर्च की भरपाई नहीं की जा सकती। लेकिन इस मामले में मरीज ने स्वीकृत अस्पताल में इलाज करवाया था। कोर्ट ने कहा कि क्रॉनिक बीमारी वह स्थिति होती है जो लंबे समय तक बनी रहती है और पूरी तरह से ठीक नहीं होती। का मरीज अन्य बीमारियों के भी ज्यादा खतरे में होता है। इस आधार पर कोर्ट ने हरियाणा सरकार की अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने एकल बेंच के आदेश को बरकरार रखा। हाई कोर्ट के इस फैसले से हरियाणा के हजारों कर्मचारियों को राहत मिलेगी जो क्रॉनिक बीमारी का ओपीडी में इलाज करवाने पर प्रतिपूर्ति नहीं पाते थे।