स्वर्ण जयंती कार्यक्रमों के खर्चों का ब्यौरा दें विभाग: खेमका

1/21/2018 12:02:56 PM

चंडीगढ़(धरणी): हरियाणा के चर्चित आई.ए.एस. अफसर एवं खेल विभाग के प्रधान सचिव अशोक खेमका की नजर अब स्वर्ण जयंती कार्यक्रम के खर्चों पर पड़ गई है। खेमका ने प्रदेश भर में स्वर्ण जयंती के नाम पर खर्च करने वाले संबंधित विभागों के अफसरों से उपयोग प्रमाण पत्र (यू.सी.) मांगा है। खेमका ने यह दांव ऐसे समय चला जब संबंधित विभागों के अफसरों ने खेल विभाग से 11 करोड़ की बकाया राशि की डिमांड की थी।

यह डिमांड आते ही खेमका के तेवर तल्ख हो गए और उन्होंने कागजी प्रक्रिया के तहत प्रदेश के सभी उपायुक्तों एवं अन्य विभागों के अफसरों से यू.सी. मांग लिया। खेमका की ओर से यह फरमान जारी किया गया है कि खर्च किए गए पैसों का पक्का बिल जी.एस.टी. नंबर के साथ मुख्यालय में भेजा  जिसमें उक्त राशि का मिलान करने के बाद ही फिर डिमांड की गई राशि को स्वीकृत किया जाएगा। खेमका के इस मास्टर स्ट्रोक से अफसरों की नींद उड़ गई है। अब अफसरशाही किसी तरह से बिल जुटाने की कवायद में जुट गई है। इससे पहले इस बजट राशि पर खेल मंत्री अनिल विज ने भी सवाल उठाया था।

बीते साल हरियाणा की स्वर्ण जयंती प्रदेशभर में धूमधाम से मनाई गई। स्वर्ण जयंती के कार्यक्रम का जिम्मा खेल विभाग को सौंपा गया। मसलन खेल विभाग स्वर्ण जयंती कार्यक्रम का नोडल विभाग था। इसी विभाग के जरिए ही स्वर्ण जयंती कार्यक्रम के लिए बजट जारी किए गए। स्वर्ण जयंती कार्यक्रम का शुभारंभ करनाल में हुआ था जिसके लिए 4 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई थी। उसके बाद प्रदेश भर में कार्यक्रमों के लिए सभी उपायुक्तों को 54-54 लाख रुपए की राशि स्वीकृति की गई

यानी करीब 12 करोड़ रुपए जिला स्तर पर खर्च किए गए। महीनों तक कार्यक्रम की धूम रहने के बाद स्वर्ण जयंती कार्यक्रम का समापन हिसार में किया गया जिस पर 5 करोड़ रुपए खर्च किए गए। मसलन खेल विभाग की ओर से अब तक करीब 22 करोड़ रुपए की राशि जारी की जा चुकी है लेकिन कार्यक्रम कराने वाले संबंधित विभागों के अफसरों ने फिर से खेल विभाग के पास 11 करोड़ रुपए देने की डिमांड कर दी। अफसरों ने कहा कि अभी कई लोगों का पैसा बकाया है जिसके लिए उन्हें पैसे भेजे जाएं। वहीं स्वर्ण जयंती कार्यक्रम पर खर्च किए गए करोड़ों रुपए की राशि पर विपक्षी दलों की ओर से गंभीर आरोप लगाया जा चुका है। ऐसे में अब खेमका का नया फरमान उन अफसरों के लिए मुसीबत बन सकता है जो कार्यक्रम के नाम पर कमाई कर चुके हैं। देखना यह होगा कि संबंधित अफसर किस तरह से खर्च किए गए पैसों को वैरीफाई करते हैं।