Haryana Election Result: क्या जाटों के प्रति झुकाव ने डुबो दी कांग्रेस की लुटिया, BJP ने कैसे पलट दिया चुनाव ?
punjabkesari.in Friday, Oct 11, 2024 - 02:41 PM (IST)
हरियाणा डेस्क (कृष्ण चौधरी) : हरियाणा में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से चंडीगढ़ से दिल्ली तक कांग्रेस में हड़कंप मचा हुआ है। 8 अक्टूबर को जो नतीजे आए वो कांग्रेस नेताओं के गले नहीं उतर रहे। चुनाव प्रचार के दौरान प्रदेश से भाजपा सरकार की विदाई और कांग्रेस की जबरदस्त वापसी का माहौल खड़ा करने वाले नेताओं को अब ये समझ नहीं आ रहा कि इस प्रचंड विफलता पर क्या प्रतिक्रिया दी जाए।
हाईकमान से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तक एकबार फिर चुनावों में ईवीएम को खलनायक बनाने में जुट गए हैं। इन सबके बीच सियासी हलकों में भी इस बात पर खूब मंथन हो रहा है कि आखिरी चुनाव से पहले बेहद मजबूत नजर आ रही कांग्रेस कैसे 40 सीट तक नहीं जीत पाई। वहीं जिस भाजपा के लिए दर्जन भर सीटें ही मिलने का दावा किया जा रहा था, उसने न केवल जीत की हैट्रिक लगाई बल्कि हरियाणा में अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन किया। इन सारे सवालों का जवाब 8 तारीख को आए उस नतीजे में छिपा है, जिसने नतीजों से पहले जबरदस्त उत्साह से लबरेज कांग्रेस को सदमे में और लोकसभा में हार के बाद पस्त आ रही बीजेपी को दोबारा जोश से भर दिया।
जाट बनाम नॉन जाट का है ये बदलाव
दरअसल विगत 10 वर्षों में हरियाणा के समाज में कुछ ऐसा बदलाव हुआ जिसे बड़े-बड़े राजनीतिक धुरंधर और मीडिया के पंडित भी नहीं भांप सके। ये बदलाव जाट बनाम नॉन जाट का है। जाट दबदबे वाले हरियाणा की सियासत में अब नॉन जाट वोटर्स प्रभावी भूमिका में आ चुके हैं, अब तक जाट नेताओं की हुक्म बजाने वाला ये तबका अपनी सियासी ताकत को पहचान चुका है और इस चुनाव में बखुबी इसका अहसास भी करा दिया तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस को इसी का खामियाजा भुगतना पड़ा। इसका जवाब है हां, क्योंकि हरियाणा की राजनीति में चौटाला परिवार के कमजोर होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जाटों के सबसे कद्दावर चेहरे के रूप में उभरे।
हुड्डा की कांग्रेस पर मजबूत पकड़ को देखते हुए संख्या बल और संसाधन से संपन्न में माने जाने वाला जाट तबका तेजी से उनके पीछे लामबंद हुआ। इनमें वो जाट भी शामिल हैं, जो चौटाला परिवार के करीबी और कांग्रेस के विरोधी रहे थे। कभी हरियाणा में नॉन जाट राजनीति करने वाली कांग्रेस ने भी इसे हाथों हाथ लिया। चुनाव से पहले ही कांग्रेस ने जाट कम्युनिटी की तरफ जिस तरह का झुकाव और एग्रेशन दिखाना शुरू कर दिया था, उसे देखकर OBC, ब्राह्मण, पंजाबी और वैश्य बिरादरी खुद को अलग-थलग महसूस करने लगी थी। इतना ही नहीं अति उत्साही हुड्डा समर्थकों ने कांग्रेस की दिग्गज दलित नेता और सांसद कुमारी सैलजा को ही निशाना बनाना शुरु कर दिया। उनके खिलाफ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इससे नाराज सैलजा चुनाव प्रचार छोड़ घर बैठ गईं और करीब एक पखवाड़ा कैंपेन से दूर रहीं। इसके बाद हाईकमान के दखल के बाद वो चुनाव प्रचार में उतरीं, लेकिन कभी भी अपनी नाराजगी को जाहिर करने से संकोच नहीं किया जिससे लोकसभा चुनाव में जाटों के साथ कांग्रेस को वोट करने वाले दलित वर्ग के अंदर एक नकारात्मक संदेश गया।
कांग्रेस की इस राजनीति से गैर जाट बिरादरियों के मन में कहीं न कहीं असुरक्षा का भाव आ गया, जिसे भाजपा सही समय पर भांपने में सफल रही। इसके बाद उसने बेहद चतुराई कांग्रेस के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया। भाजपा के तमाम नेताओं ने दमदार तरीके से सैलजा के अपमान और उपेक्षा के मुद्दे को उठाया गया। जमीन पर संघ और भाजपा के कार्यकर्ता लोगों तक ये संदेश पहुंचाने में कामयाब रहे कि कांग्रेस की सरकार बनने का मतलब है हुड्डा की सरकार और हुड्डा मतलब जाटों की सरकार। कांग्रेस के पोस्टरों और प्रचारों में जिस तरह हुड्डा बाप-बेटे का दबदबा दिख रहा था, उसने गैर जाट मतदाताओं में असुरक्षा की भावना को और मजबूत किया। इसका नतीजा यह हुआ कि जाटों को छोड़कर दूसरे वर्गों का बड़ा हिस्सा अपनी नाराजगी को छोड़ते हुए भाजपा के साथ आ गया। असंध से चुनाव हारने वाले कांग्रेस प्रत्याशी शमशेर सिंह गोगी भी इसे अपने पराजय की बड़ी वजह मानते हैं।
प्रत्याशियों के ऐलान से लेकर चुनाव प्रचार तक, कांग्रेस का जोर 22 से 25% जाटों और 20 से 22% SC मतदाताओं पर रहा। इसके मुकाबले भाजपा ने अपनी गैर-जाट पॉलिसी पर चलते हुए 30 से 32% OBC, 9 से 10% पंजाबी, 8 से 9% ब्राह्मण वोटरों पर फोकस किया। कांग्रेस ने 90 विधानसभा सीटों में से 27 पर जाट बिरादरी के कैंडिडेट उतारे। इनमें से 13 जीते, गैर-जाट की राजनीति करने वाली BJP ने 16 सीटों पर जाट नेताओं को उतारा। उसके 6 उम्मीदवार विजयी रहे, दलित समुदाय से कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने 17-17 कैंडिडेट उतारे, जिनमें 9 कांग्रेस और 8 बीजेपी के जीतने में सफल रहे। बीजेपी ने पंजाबी समुदाय के 11 कैंडिडेट उतारे जिनमें 9 जीतने में सफल रहे। वहीं कांग्रेस ने 8 प्रत्याशी उतारे जिनमें तीन को ही जीत नसीब हो सकी। इसी तरह ब्राह्मण समुदाय से भाजपा ने 11 प्रत्याशी उतारे, जिनमें 7 जीतने में सफल रहे। कांग्रेस ने इस वर्ग से 5 प्रत्याशियों को उतारा, जिनमें महज एक कैंडिडेट ही जीत सका। इसी प्रकार अहीर और गुर्जर वर्ग के 13 उम्मीदवारों को बीजेपी ने मैदान में उतारा, जिनमें से 10 अपनी सीट निकालने में कामयाब रहे। कांग्रेस ने इस वर्ग के 10 लोगों को टिकट दिया, जिनमें महज दो ही अपनी सीट निकाल पाए।