दीपों के त्यौहार में चाइनीज लड़ियों के आगे फीके पड़े मिट्टी के दीये

10/15/2019 10:13:54 AM

भिवानी (सुखबीर) : इस बार दीपावली की रौनक न केवल अपने घर में देखना, बल्कि गरीब लोगों के घरों को भी रोशन करे ऐसी दीपावली मनाना। शायद यह बात आपने खूब पढ़ी व सुनी होगी लेकिन वास्तविकता की ओर नजर दौड़ाएं तो गरीब कुम्हार जो दीपावली से 2 से 3 महीने पहले ही दीपावली के लिए मिट्टी के दीये बनाने लगता है। मगर उस कुम्हार की खुद की दीपावली कैसी मनेगी इस बात का अंदाजा उसे भी नहीं है।

इसको लेकर शहर में दीये बनाने वाले कुम्हारों से बातचीत की तो उनका यही कहना था कि वे दूसरों का घर रोशन करने के लिए प्रयास जरूर करते हैं लेकिन आजकल विदेशी लाइटों की चमक उनके घरों में रोशनी नहीं करती। यहां बता दें कि पिछले कुछ सालों से हमारे देश में दीपावली के त्यौहार पर सस्ती चाइनीज बिजली से चलने वाली लाइटों का चलन बढ़ा है। वहीं, देसी लाइटों की खपत इसलिए कम होती है क्योंकि ये चाइनीज लडिय़ों से थोड़ी महंगी होती हैं।

दूसरी ओर, पिछले कुछ सालों से चीन द्वारा आतंकवाद पर पाकिस्तान का साथ देने पर हमारे देश के लोग चाइनीज सामान को नहीं करने की पिछले 3 साल से शपथ लेते आ रहे हैं। इनमें खासकर देश के लोग दीपावली के त्यौहार पर चाइनीज लडिय़ों का विरोध ज्यादा करते हैं। मगर इस साल ज्यों-ज्यों दीपावली नजदीक आ रही है, शहर में चाइनीज लडिय़ों की फिर से डिमांड बढ़ती जा रही है। वहीं, पिछले 2 साल में इस तरह की चाइनीज लडिय़ों की बिक्री में कमी आई थी। 

कुम्हारों की कालोनी 2 महीने से बना रही दीये
जब पिछले 2 साल में चाइनीज लडिय़ों की बिक्री में कमी आई तो शहर में मिट्टी से बने दीयों की मांग बढ़ी थी। दूसरी ओर, शहर के हनुमान ढाणी का एरिया जिसे कुम्हारों का एरिया कहा जाता है इन दिनों दीपावली की खुशियों में दूसरों के घरों में रौनक लाने के उद्देश्य से दिन-रात दीये बनाने के काम में जुटी हुई है। ये लोग ऐसा इस काम में अब से नहीं, बल्कि पिछले 2 महीने से लगे हुए हैं कि कहीं इस बार पिछले 2 सालों की तरह आर्डर ज्यादा हों तो किसी प्रकार की कमी न रहे जाए। 

यह बोले ज्योतिषाचार्य 
इस बारे में शहर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य और लेखक रविंद्र लाखोटिया ने बताया कि मिट्टी के दीयों से न केवल वायु प्रदूषण कम होता है, बल्कि दीये जलाने से वातावरण शुद्ध होता है। उन्होंने कहा कि एक समय था जब लोग अपने घरों की मुंडेरों पर सरसों के तेल वाले मिट्टी के दीये जलाते थे। उन्होंने कहा कि हम दूसरों के घरो को रोशन करने की बात तो हम हमेशा करते हैं लेकिन जब समय आता है तब सस्ती लाइटों व चमचमाती रोशनी में हम अपने आप से किए वायदे भी भूल जाते हैं। 
 

Isha