हाई कोर्ट के फैसले से प्रभावित होगी 15 लाख के करीब बच्चों की शिक्षा : कुलभूषण  शर्मा

3/29/2024 7:44:14 PM

चंडीगढ़ (चंद्रशेखर धरणी): पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में मनोहर जायसवाल की जनहित याचिका जो कई वर्षों से चल रही थी जनवरी माह में हाईकोर्ट द्वारा फैसला ले लिया गया है कि बिना मान्यता प्राप्त स्कूल बंद कर दिए जाए। जिस पर निसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने बातचीत के दौरान बताया कि निसा रिव्यू व ऑर्डर मोडिफिकेशन की याचिका दायर करने की सोच रहा है।इस मामले में शिक्षस विभाग द्वारा गलत आंकड़ों वाला एफिडेविट पेश किया गया, जिसमें केवल 282 स्कूल ही दिखाए गए, जबकि यह आंकड़ा 4500 स्कूलों से भी अधिक का है। अगर ऐसा हुआ तो लाखों बच्चों की शिक्षा प्रभावित होगी  और हजारों लोगों का रोजगार प्रभावित होगा। शर्मा ने कहा कि कोर्ट को जानबूझकर गुमराह करने का काम किया गया है। अगर सही संख्या स्कूलों की बताई जाती तो हाई कोर्ट किसी ओर तरीके से विचार करती। सरकार से पूछा जाता कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चे कहां शिफ्ट हो पाएंगे।


 जनता की भलाई सोचना जनप्रतिनिधियों का परम कर्तव्य :शर्मा

 शर्मा ने कहा कि गलत संख्या देने के कारण आए फैसले के बाद स्कूल संचालक डरे हुए हैं। अफरातफरी का माहौल है। उन्हें नोटिस वितरित किए जा रहे हैं कि पहली तारीख से स्कूल नहीं चला पाएंगे। एनरोलमेंट और दाखिले नहीं कर पाएंगे। कुछ स्कूल संचालकों को एफ आई आर दर्ज करने की भी धमकी दी जा रही है। ऐसा अराजकता का माहौल प्रदेश में बना हुआ है। शर्मा ने कहा कि इसलिए मुख्यमंत्री से मुलाकात के भी हम प्रयास कर रहे हैं, जल्द उनसे मुलाकात कर मामले की स्थिति से अवगत करवाया जाएगा। शर्मा ने कहा कि मेरे संज्ञान में आया है कि अपने अधिकारियों को बचाने के लिए आनन-फानन में विभाग द्वारा गलत एफिडेविट दिया गया है लेकिन ऐसे में हमारे जनप्रतिनिधि मुख्यमंत्री -शिक्षा मंत्री और विधायकों की जिम्मेदारी है कि वह स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों- शिक्षकों तथा स्कूल संचालकों की ओर भी ध्यान दें। क्योंकि वह जनता के प्रतिनिधि हैं जनता की भलाई सोचना उनका परम कर्तव्य है। उन्हें बच्चों के भविष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।


गलत आंकड़े पेश करने वालों के खिलाफ होनी चाहिए करवाई :शर्मा

 शर्मा ने कहा कि कैसे गलत आंकड़े पेश हुए, स्कूल कोई छुपकर नहीं चल रहे थेज़ कोई शराब या अफीम बेचने का यह कारोबार नहीं है जो किसी के संज्ञान में ना हो, सरकारी स्कूलों के आसपास भी स्कूल मौजूद हैं। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि जनता कहीं भी भटके, बच्चों का भविष्य कितना भी प्रभावित हो, जनप्रतिनिधियों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। या तो अधिकारी उन्हें गुमराह कर रहे हैं या फिर उन्हें किसी के भले या बुरे में कोई रुचि ही नहीं है, ऐसा माहौल बना हुआ है। जनता की वेलफेयर का पहला उद्देश्य होना चाहिए। लोगों के रोजगार की ओर ध्यान देना चाहिए। 4500 से 5000 स्कूलों में अगर 15 -15 टीचर भी हो तो देखें कितनो के रोजगार प्रभावित होंगे। 10 से 15 लाख बच्चे छोटी संख्या नहीं है। मुख्यमंत्री को पूछना चाहिए था कि कितने बच्चों का भविष्य प्रभावित होगा। कहना चाहिए था कि अगर गलत आंकड़े दिए तो नौकरी से भी हटाया जा सकता है। 

शिक्षा जैसा पुनीत कार्य करने वालों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई क्यों ? : शर्मा

अगर स्कूलों को बड़ी-बड़ी धमकियां दी जा सकती हैं, अगर लाखों बच्चों को प्रभावित किया जा सकता है, हजारों अध्यापकों का रोजगार छीना जा सकता है तो क्या इन अधिकारियों द्वारा अनऑथराइज्ड एफिडेविट देने पर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती। अनऑथराइज्ड स्कूल तो बताया जा सकते हैं क्या इस एफिडेविट को अनऑथराइज्ड नहीं बताया जा सकता। इतने सालों से चल रहे स्कूल उनके संज्ञान में क्यों नहीं आए, इतना बड़ा महकमा क्या कर रहा था, जबकि इन स्कूलों की इनफार्मेशन हर जगह उपलब्ध है। लेकिन अधिकारियों को काम करने की या तो आदत नहीं है या जानबूझकर बच्चों के भविष्य को प्रभावित किया जा रहा है। एक तरफ हमारे प्रधानमंत्री रोजगार खुद सृजन करने की बात कहते हैं, महिला सशक्तिकरण के नारे दिए जाते हैं, बीएड पढ़े हुए अगर स्कूल खोल रहे हैं तो यह क्या उनका गुनाह है। शिक्षा जैसा पुनीत कार्य करने वाले पढ़े लिखे लोगों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई क्यों की जा रही है।


यह कैसा लोकतंत्र कि छोटे-छोटे बच्चों की पसंद हत्या की जा रही है :शर्मा

 शर्मा ने बताया कि आरटीआई से मिली जानकारी अनुसार प्रदेश के सरकारी स्कूल ही नोमस पूरे नहीं करते। यमुनानगर में 65 स्कूल जिनमे 5 से कम टीचर हैं, कुछ स्कूलों में एक-एक टीचर भी मौजूद है। जिन स्कूलों में 5 क्लास रूम चाहिए उनमें एक-एक दो-दो कमरे बने हुए हैं। शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर के क्षेत्र यमुनानगर का यह हाल है। जिसमें 63 स्कूल ही रूल्स पूरे नहीं कर रहे। गुरुग्राम में 49 स्कूलों में 5 से कम टीचर है। 37 स्कूलों में 5 से कम कमरे हैं। हर जिले के ऐसे ही हाल हैं। प्रदेश सरकार ने अगर 600 करोड रुपए के टैबलेट दे दिए तो यह तो तय है कि पैसे की कोई कमी नहीं है। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर यह लोग बढ़ाना नहीं चाहते। बच्चों को व्यवस्थाएं नहीं देना चाहते। अगर सरकारी स्कूलों का यह हाल है तो फिर प्राइवेट पर ही गाज क्यों। शर्मा ने कहा कि हम नहीं चाहते कि सरकारी स्कूल बंद किए जाएं, क्योंकि बच्चे प्रभावित होंगे। उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से उम्मीद की है कि इस मामले में कड़ा संज्ञान लेते हुए स्कूल संचालकों, उसमें पढ़ा रहे अध्यापक और पढ़ रहे बच्चों के भविष्य की ओर ध्यान दें। शर्मा ने कहा कि सरकारी स्कूलों में डबल शिफ्ट की भी बात की जा रही है। आखिर यह कैसा लोकतंत्र है कि छोटे-छोटे बच्चों की पसंद को छीना जा रहा है, क्या उनकी पसंद की हत्या की जानी चाहिए।

 

Content Writer

Isha