नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी कम नहीं हुई कांग्रेस में गुटबाजी

9/15/2019 10:40:38 AM

चंडीगढ़ (बंसल) : कांग्रेस विधायक दल के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेशाध्यक्ष कु. शैलजा के लिए पार्टी में गुटबाजी अभी भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के बयानों से लगता नहीं कि पार्टी एकजुट होकर मैदान में उतरेगी। हालांकि हुड्डा व शैलजा ने 2 दिन पहले विधानसभा चुनाव का रोडमैप पेश कर सभी को साथ लेकर आगे बढऩे की बात कही थी लेकिन हालात को देख ऐसा नहीं लगता है। तंवर का कहना है कि उनके कार्यकाल दौरान जैसा कुछ नेताओं ने सहयोग किया वैसा ही वह करेंगे।

बता दें कि तंवर भी समर्थकों की अलग से बैठकें ले रहे हैं जिस तरह पहले हुड्डा करते थे। तंवर की सक्रियता कम नहीं हुई और समर्थकों को विश्वास दिलाया है कि जिन लोगों ने उनके लिए पसीना बहाया है, उन्हें टिकट अवश्य मिलेगी।  हालात को देख यह भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस में टिकट वितरण को लेकर खूब विवाद रहेगा। तंवर ने कुछ स्थानों पर कार्यकत्र्ताओं को इशारा कर दिया था कि इस व्यक्ति को पार्टी टिकट दी जाएगी। इसके चलते गत दिन समर्थकों की बैठक भी बुलाई थी और उन्हें विश्वास दिलाया कि विधानसभा चुनाव से लेकर संगठन में पर्याप्त जगह मिलेगी। जिस तरह तंवर समर्थकों की अलग से बैठकें ले रहे हैं तो यही कहा जा सकता है कि वह भी समानांतर कांग्रेस चला रहे हैं। 

शैलजा-हुड्डा के सामने तंवर-किरण को मनाने की चुनौती
हुड्डा और शैलजा के लिए सबसे बड़ी चुनौती तंवर को मनाना है,क्योंकि लोकसभा क्षेत्र की बैठकों में तंवर समर्थक शामिल नहीं होते हैं तो पार्टी की गुटबाजी का संदेश पूरे प्रदेश में जाएगा। हुड्डा तथा शैलजा ने किरण चौधरी को मनाने के प्रयास किए हैं और इसी कड़ी में हुड्डा उनके निवास पर भी गए थे। माना जा रहा है कि अभी बात नहीं बनी है और किरण ने हुड्डा व शैलजा से दूरी बनाई हुई है। हालांकि हाईकमान द्वारा गठित कमेटियों में तंवर व किरण को शामिल किया गया है और किरण अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं लेकिन फिर भी संदेश यही जा रहा है कि गुटबाजी कायम है। विश्लेषकों का कहना है कि हुड्डा व शैलजा को मजबूती से भाजपा से लड़ाई लडऩी है तो पहले पार्टी को एकजुट करना होगा। 

कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं के लिए यह बात भी उलझन की विषय बनी हुई कि जिला और ब्लॉक स्तर पर पदाधिकारियों की नियुक्तियांं नहीं हुई है जिससे अपने ही संगठन मेें कमजोरी नजर आती है। उनका कहना है कि संगठन में बदलाव के बाद पार्टी में कुछ जोश जरूर आया है लेकिन संगठन पदाधिकारी न होने से जमीनी स्तर पर पार्टी कमजोर दिखाई देती है। हुड्डा स्वयं भी मानते रहे हैं कि संगठन की कमजोरी की वजह से पार्टी को पूर्व चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। विधानसभा चुनाव सिर पर होने के चलते जल्दबाजी में जिला और ब्लॉक स्तर पर नियुक्तियां नहीं हो सकती तो ऐसे में लोकसभा और विधानसभा स्तर पर नियुक्त प्रभारियों के जिम्मे ही चुनाव की कमान रहेगी।

Isha